AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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UP Politics: अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा की स्थापना नहीं हुई, बल्कि PM नरेंद्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत ने 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव की नई राजनीतिक दिशा भी तय कर दी।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जहां रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी, वहीं अब 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा स्थापित कर BJP ने एक बड़ा संदेश दिया है। इस ऐतिहासिक अवसर पर PM नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि राम मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ की वैचारिक नींव भी है।
अपने संबोधन में PM मोदी ने गुलामी की मानसिकता के अंत, सांस्कृतिक डि-कॉलोनाइजेशन और हिंदू एकता की ऐसी लकीर खींचने की कोशिश की जिनका राजनीतिक जवाब ढूंढना कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मंदिर परिसर में PM मोदी, RSS प्रमुख मोहन भागवत और CM योगी आदित्यनाथ के भाषणों ने यह संकेत दिया कि अयोध्या केवल धार्मिक केंद्र नहीं है।
विकास मॉडल से रामराज्य का जुड़ाव
गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का लक्ष्य, 2035 तक तय किया गया
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य 2047 तक तय किया गया
जातिवाद की काट करने के लिए हिंदू समरसता का गढ़ा नया नारा
सियासी जानकार मानते हैं कि PM नरेंद्र मोदी, RSS प्रमुख मोहन भागवत और CM योगी आदित्यनाथ के भाषणों की धुरी राम के आदर्श रहे, लेकिन संदेश के भीतर राजनीतिक संकेत स्पष्ट नजर आए। तीनों नेताओं ने बिना किसी दल का नाम लिए रामत्व को नकारने वालों पर निशाना साधा, जिससे कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष कटाक्ष के दायरे में आ गया।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अयोध्या को करीब 70 सालों तक उपेक्षा झेलनी पड़ी, जबकि पिछले 11 सालों में सरकार ने इसके विकास को प्राथमिकता दी। उन्होंने दावा किया कि आज अयोध्या विश्व-पटल पर आस्था की राजधानी के रूप में उभर चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अब तक लगभग 45 करोड़ श्रद्धालु अयोध्या दर्शन कर चुके हैं। यह आंकड़ा स्वयं अयोध्या के बदलते स्वरूप और महत्व को दर्शाता है।
अयोध्या में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा सहारा बन रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, जैसे काशी, प्रयागराज, विंध्यवासिनी, मथुरा और वृंदावन में विकास कार्यों के बाद पर्यटन में तेजी से वृद्धि हुई है, उसी तरह अयोध्या भी आर्थिक बदलाव के नए दौर में प्रवेश कर चुका है। पर्यटन ने इन धार्मिक शहरों की सांस्कृतिक पहचान को तो मजबूत किया ही है, साथ ही रोजगार, कारोबार और स्थानीय बाजारों पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के चुनाव में यूपी में हिंदू वोटों का जातिगत आधार पर बिखराव BJP को नुकसान पहुंचा गया था। इसी वजह से इस बार आयोजन में जातीय संतुलन बिठाने पर खास जोर दिया गया। यह स्पष्ट संकेत है कि BJP अब 80:20 के नए नैरेटिव को फिर से मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। यानी 80 प्रतिशत हिंदुओं को एकजुट करने के लिए राम मंदिर परिसर में सभी समाजों और जातियों के महापुरुषों की मूर्तियों को स्थान दिया जा रहा है। जिससे 80 फीसदी हिंदू समाज को एकजुट किया जा सके। कार्यक्रम में सोनभद्र और मिर्जापुर जैसे जिलों से बड़ी संख्या में आदिवासी, पिछड़े समुदाय के लोग और साधु-संतों को आमंत्रित किया गया।
PM मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ''विकसित भारत 2047 तभी संभव है, जब हम अपने भीतर राम के आदर्शों को जगाएं। राम केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।'' शबरी, निषादराज, अहिल्या, जटायु और गिलहरी जैसे पात्रों का जिक्र कर उन्होंने संदेश दिया कि राम किसी कुल, जाति या वर्ग को नहीं देखते वे भक्ति और समर्पण को महत्व देते हैं। इस प्रतीकात्मक संदर्भ के जरिए PM मोदी ने दलित, आदिवासी और OBC समाज को सीधे जोड़ने की कोशिश की।
वहीं, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने भगवान राम के मंदिर के लिए चले 500 साल के लंबे संघर्ष को याद करते हुए माहौल को भावुक कर दिया। उन्होंने खास तौर पर कारसेवकों की भूमिका, अशोक सिंघल और महंत रामचंद्र दास परमहंस जैसे साधु-संतों के योगदान और उनकी कुर्बानियों का उल्लेख किया, जो आंदोलन की रीढ़ रहे।
अयोध्या में धर्मध्वजा स्थापना के चलते जिस तरह हिंदू समाज की व्यापक एकता का प्रदर्शन हुआ, उसने BJP की नई चुनावी रणनीति का संकेत साफ कर दिया है। संदेश यह है कि आगामी चुनाव 2024 की तरह जातिगत बिखराव वाले नहीं होंगे, बल्कि 2017 की तर्ज पर एक बार फिर 80:20 के ध्रुवीकरण की ओर बढ़ सकते हैं। जहां 80% हिंदू समाज एक तरफ दिखाई दे और 20% अल्पसंख्यक दूसरी ओर।
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Updated on:
26 Nov 2025 10:31 am
Published on:
26 Nov 2025 10:21 am


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