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भारतीय लोकतंत्र में वंशवादी पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों का बोलबाला

21 फीसदी से अधिक जनप्रतिनिधियों का संबंध राजनीतिक परिवारों से कर्नाटक में 29 फीसदी माननीय वंशवादी पृष्ठभूमि के

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भारत की विकास यात्रा में वंशवादी राजनीति को दूर कर स्वच्छ राजनीति को बढ़ावा देने की भले ही कोशिशें होती रही हैं, लेकिन आज भी वंशवादी पृष्ठभूमि से चुनकर आए नेताओं का बोलबाला है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लगभग हर 5 में से 1 जनप्रतिनिधि वंशवादी पृष्ठभूमि से है।
एडीआर ने राज्य विधानसभाओं, लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों के कुल 5204 वर्तमान सदस्यों का विश्लेषण किया है। इनमें से 1107 (लगभग 21 प्रतिशत) वर्तमान सदस्यों की पृष्ठभूमि वंशवादी है। संस्था ने कहा है कि भारत में वंशवादी राजनीति का अर्थ वह परंपरा है, जहां राजनीतिक शक्तियां कुछ परिवारों के भीतर केंद्रित रहती हैं। एक ही परिवार के कई सदस्य निर्वाचित पदों या राजनीति में प्रभावशाली भूमिकाओं पर आसीन होते हैं। अक्सर राजनीतिक प्रभाव या नेतृत्व एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता है, और परिवार के नाम, संपत्ति और नेटवर्क का लाभ मिलता है। स्वतंत्रता के बाद से ही वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र की एक स्थायी विशेषता रही है। इसके चलते योग्यता-आधारित राजनीति, जवाबदेही और समान प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़े होते हैं।


दक्षिण में कर्नाटक वंशवादी राजनीति में सबसे आगे

देशभर में 4091 विधायकों में से 816, लोकसभा के 543 सांसदों में से 167, राज्यसभा के 224 सांसदों में से 47 और राज्य विधान परिषदों के 346 सदस्यों में से 77 वंशवादी पृष्ठभूमि के हैं। उत्तर भारत में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 141 (23 फीसदी) और राजस्थान में 43 (18 फीसदी) वंशवादी पृष्ठभूमि जुड़े हैं। दक्षिण भारत में सबसे अधिक कर्नाटक में 94 (29 फीसदी) और आंध्रप्रदेश में 86 (34 फीसदी) वंशवादी पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधि हैं।

राज्य के 50 फीसदी लोकसभा सांसद राजनीतिक परिवारों से

राज्य के कुल 28 लोकसभा सांसदों में से 14 (50 फीसदी) वंशवादी पृष्ठभूमि के ही हैं। इनमें जगदीश शेट्टर (बेलगाम), सुनील बोस (चामराजनगर) राधाकृष्ण (गुलबर्गा), बीवाई राघवेंद्र (शिवमोग्गा), सागर खंडे्र (बीदर), बसवराज बोम्मई (हावेरी), एचडी कुमारस्वामी (मंड्या), सीएन मंजूनाथ (बेंगलूरु ग्रामीण), तेजस्वी सूर्या (बेंगलूरु दक्षिण), श्रेयस एम पटेल (हासन), राजशेखर हितनाल (कोप्पल), यदुवीर कृष्णदत्त वाडियार (मैसूरु), प्रियंका जारकीहोली (चिक्कोड़ी) और प्रभा मल्लिकार्जुन (दावणगेरे) शामिल हैं। राज्यसभा के कुल 12 में से 2 सांसद, अजय माकन और जग्गेश वंशवादी पृष्ठभूमि के हैं। इसके अलावा राज्य की 224 सदस्यीय विधानसभा में 64 विधायक, जबकि 75 सदस्यीय विधान परिषद में 14 सदस्य वंशवादी पृष्ठभूमि के हैं।

कांग्रेस के 32 और भाजपा के 18 फीसदी जनप्रतिनिधि वंशवादी

राष्ट्रीय दलों, मुख्य रूप से कांग्रेस के 32 फीसदी (817 में 258) और भाजपा के 18 फीसदी (2124 में से 371) जनप्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से चुनकर आए हैं। क्षेत्रीय दलों में एनसीपी (शरद पवार) गुट के 42 फीसदी, जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के 42 फीसदी, वाईएसआरपी के 38 फीसदी, टीडीपी के 36 फीसदी और एनसीपी के 34 फीसदी जनप्रतिनिधि वंशवादी पृष्ठभूमि के हैं। समाजवादी पार्टी, जद-यू, राजद में 30 फीसदी से अधिक, जबकि तृणमूल कांग्रेस में 10 और एआइडीएमके के 4 फीसदी जनप्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से हैं। इसके अलावा 9 ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनके जनप्रतिनिधि 100 फीसदी वंंशवादी पृष्ठभूमि के हैं। ऐसे दलों में केवल एक या दो सदस्य ही निर्वाचित हैं। कुल निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में से 4665 पुरुष हैं और इनमें से 856 (18 फीसदी) वंशवादी पृष्ठभूमि के हैं। वहीं, 539 महिला जनप्रतिनिधियों में से 251 (47 फीसदी) राजनीतिक परिवारों से आती हैं।

राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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