AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Rajasthan Politics : बांसवाड़ा जिले की राजनीति में सामान्य वर्ग (ब्राह्मण, जैन, क्षत्रिय व अन्य) का प्रतिनिधित्व लगातार सिमटता जा रहा है। मौजूदा समय में इस वर्ग के पास कोई बड़ा सियासी पद नहीं है। सत्ता में भी विधायक जैसा बड़ा ओहदा अर्से पहले हाथ से जा चुका। जनसांख्यिकीय गणित के आधार पर राजनीति नई करवट ले रही है। बांसवाड़ा की जनसंख्या में लगभग 20 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला यह वर्ग तीन प्रमुख दलों भाजपा, कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी में संगठनात्मक नेतृत्व से लगभग बाहर नजर आ रहा है। राजनीतिक संतुलन और प्रतिनिधित्व को लेकर सामान्य वर्ग में चिंताएं बढ़ रही हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बांसवाड़ा जिले की कुल आबादी 17,97,485 थी, जिसमें जनजाति वर्ग की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, लेकिन सामान्य वर्ग की संख्या भी चुनावी दृष्टि से निर्णायक मानी जाती रही है। सियासत में संगठनात्मक पदों पर उनकी मौजूदगी नगण्य सी हो गई है।
सामान्य वर्ग के कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि या उनकी भूमिका केवल मतदान तक सीमित है। संगठन में प्रभावी भागीदारी नहीं होने से सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं।
जनजाति 13,72,999 - 76 फीसदी
अनुसूचित जाति 80,091 - 4.4 फीसदी
सामान्य व अन्य 3,44,395 - 19.16 फीसदी
कुल 17,97,485 - 100 फीसदी
कांग्रेस : पार्टी नेतृत्व ने जिला कमेटी की कमान हाल ही में ‘बहुसंख्यक’ वर्ग को साधने के लिए जनजाति वर्ग को सौंपी है। सामान्य वर्ग को शीर्ष संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं मिली, जबकि पिछले 28 साल से सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलने पर संगठन में जगह देकर सामान्य वर्ग को संतुष्ट किया जाता रहा है।
भाजपा : जिले में लंबे समय से जिलाध्यक्ष पद ओबीसी वर्ग के पास रहा है। संगठन के उच्च पदों पर सामान्य वर्ग की भागीदारी सीमित है।
बीएपी : पार्टी का सामाजिक आधार आदिवासी समाज है, इसलिए संगठनात्मक नेतृत्व स्वाभाविक रूप से उसी वर्ग से आता है, इसलिए बीएपी में सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व बेहद सीमित है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह स्थिति किसी वर्ग विशेष के विरोध में नहीं, बल्कि बड़े वोट बैंक को साधने की रणनीति का परिणाम है। हालांकि इससे सामान्य वर्ग में ‘हाशिए पर होने’ की भावना गहरा रही है।
पड़ोसी जिले डूंगरपुर में बीएपी ने सामान्य वर्ग के लिए अलग प्रकोष्ठ गठन किया, जिसे एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। इससे यह भी बहस तेज हुई है कि कड़े राजनीतिक मुकाबले में सामान्य वर्ग की अनदेखी संभव नहीं।
… यह कहना सही नहीं
मेरी जिला टीम में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व है। यह कहना सही नहीं है कि सामान्य वर्ग उपेक्षित है।
पूंजीलाल गायरी, जिलाध्यक्ष भाजपा
जनता का प्रतिनिधि होता है, जिलाध्यक्ष
जिलाध्यक्ष पार्टी का प्रतिनिधि होता है, जनता का नहीं। संगठन और सत्ता में भूमिकाएं स्पष्ट होनी चाहिए।
अर्जन सिंह बामनिया, जिलाध्यक्ष, जिला कांग्रेस कमेटी
पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए
मनोनयन वाले पदों और संगठन में सामान्य वर्ग को पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए, तभी संतुलन बनेगा।
शैलेंद्र भट्ट, पूर्व राज्य उपभोक्ता आयोग सदस्य
सामान्य वर्ग का टूट रहा मनोबल
सामान्य वर्ग का मनोबल टूट रहा है। राजनीतिक और संवैधानिक पदों पर प्रतिनिधित्व जरूरी है।
मनीष एन. त्रिवेदी, मतदाता
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
20 Dec 2025 11:26 am


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