AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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लूणी नदी को रेगिस्तान की बारहमासी नदी बनाने के लिए कई योजनाएं बनीं, लेकिन सिरे नहीं चढ़ पाईं। देश में बारिश के दौरान आने वाली बाढ़ से फिजूल बह रहे पानी को लूणी की ओर मोड़ने से ही लूणी और समूचे रेगिस्तान का कल्याण हो सकता है। इससे गुजरात और राजस्थान, दोनों ही राज्यों में उत्पादन और आर्थिक उन्नति के द्वार खुल सकते हैं। दो दशक पहले लिंक चैनल परियोजना का एक प्रस्ताव राज्य व केंद्र सरकार को भेजा गया था।
घग्गर लिंक चैनल -
घग्गर नदी के बाढ़ के पानी को हनुमानगढ़ से पल्लू, नापासर, देशनोक, चादड़ी, दानवाड़ा, जोधपुर या पल्लू, सरदारशहर, तालछापर, नागौर, आसोप, भोपालगढ़, जोधपुर या नागौर से मिट्टी हटाकर इन मार्गों से हिमालयी जल को जोजरी-मिठड़ी नदी में मिलाया जा सकता है। अंततः यह पानी स्वाभाविक व प्राकृतिक रूप से बहते हुए सालावास या खेजड़ली खुर्द के पास से लूणी नदी में मिल सकता है।
यमुना लिंक चैनल -उत्तराखंड में बाढ़ का पानी यमुना नदी में चला जाता है। इसे तेजावाला फीडर, हरियाणा से मिट्टी हटाकर रोहतक, महेंद्रगढ़ और हिसार जिलों से होकर सोनीपत से मोड़ा जा सकता है। फिर इसे राजस्थान के झुंझुनू, मंडावा, मुकुंदगढ़, सीकर, डीडवाना, डेगाना और मेड़ता होते हुए मिठड़ी–जोजरी नदी में मिलाया जा सकता है। यही पानी घघराना, घोड़ावत, पीपाड़, बीसलपुर होते हुए खेजड़ली खुर्द के पास लूणी नदी में मिलाया जा सकता है और समदड़ी, बालोतरा, सिणधरी, धोरीमन्ना, गुड़ामालानी होते हुए जालोर जिले के सांचोर तक पहुंचाया जा सकता है।
साबरमती लिंक चैनल -
वर्तमान में लूणी नदी का पानी बहकर रण ऑफ कच्छ में चला जाता है। तीसरे लिंक चैनल — साबरमती लिंक के माध्यम से सांचोर से मिट्टी हटाकर गुजरात के डीसा, पालनपुर, सिद्धपुर, मेहसाणा होते हुए लूणी नदी को साबरमती नदी से जोड़ा जा सकता है।
आर्थिक उन्नति के खुलेंगे द्वार-
इस योजना के क्रियान्वयन से लूणी बेसिन और उत्तरी गुजरात क्षेत्र में नारियल, केला, आम, हरी सब्जियां, मसालों और दूध का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो सकेगा। सौर और पवन ऊर्जा की उपलब्धता के कारण हिमालयी पानी के साथ नए उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं।
सिंचित क्षेत्र बढ़ेगा : 25 लाख टन बढ़ेगा उत्पादन
राजस्थान के हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू, सीकर, नागौर, बीकानेर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, बालोतरा और जालोर जिलों में 12 लाख हेक्टेयर भूमि, 5 लाख हेक्टेयर चराई भूमि और 50 हजार वर्ग किमी भूमिगत जल क्षेत्र की अतिरिक्त सिंचाई हो सकेगी। इससे प्रतिवर्ष 25 लाख टन अतिरिक्त अनाज का उत्पादन किया जा सकेगा।
गुजरात को भी लाभ
गुजरात के बनासकांठा, डीसा, पालनपुर, सिद्धपुर और अहमदाबाद को 2 लाख हेक्टेयर भूमि के लिए अतिरिक्त सिंचाई सुविधाएं मिलेंगी। 10 हजार वर्ग किमी भूमिगत जलस्तर का पुनर्भरण होगा और 5 लाख टन अनाज का अतिरिक्त उत्पादन संभव होगा।
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Published on:
12 Jul 2025 08:01 pm


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