AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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बस्सी। ग्रामीण राजनीति की पहली सीढ़ी वार्ड पंच को माना जाता है, जबकि ग्राम पंचायत का नेतृत्व सरपंच के हाथों में होता है। यही वजह है कि पंचायत चुनावों से पहले वार्डों के गठन को सियासत की बुनियाद माना जाता है।
पंचायत राज विभाग ने बस्सी और तूंगा पंचायत समिति क्षेत्र की सभी ग्राम पंचायतों में वार्डों का गठन पूरा कर लिया है। इसके साथ ही ग्रामीण राजनीति में हलचल तेज हो गई है। बस्सी व तूंगा पंचायत समिति की कुल 66 ग्राम पंचायतों में इस बार 623 वार्ड बनाए गए हैं। इन वार्डों से चुने जाने वाले वार्ड पंच न केवल ग्राम पंचायत की सरकार का हिस्सा बनेंगे, बल्कि भविष्य में सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य जैसी बड़ी जिम्मेदारियों की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे।
इस बार वार्डों का निर्धारण पूरी तरह जनसंख्या के अनुपात में किया गया है। जिन ग्राम पंचायतों की आबादी तीन हजार तक है, वहां सात वार्ड बनाए गए हैं। इसके बाद प्रति एक हजार की आबादी बढ़ने पर दो-दो वार्ड बढ़ाए गए हैं। यानी तीन से चार हजार की आबादी वाली पंचायतों में नौ वार्ड, और आगे इसी अनुपात में 11, 13, 15 व उससे अधिक वार्ड तय किए गए हैं। इससे हर पंचायत में संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो बस्सी पंचायत समिति क्षेत्र की 41 ग्राम पंचायतों में कुल 404 वार्ड गठित किए गए हैं। वहीं तूंगा पंचायत समिति की 25 ग्राम पंचायतों में 219 वार्ड बनाए गए हैं। दोनों क्षेत्रों को मिलाकर कुल 623 वार्डों के लिए चुनाव होंगे। यह आंकड़ा अपने आप में बताता है कि आने वाले पंचायत चुनाव कितने व्यापक और रोचक होने वाले हैं।
बस्सी पंचायत समिति क्षेत्र में इस बार बांसखोह सबसे बड़ी ग्राम पंचायत के रूप में सामने आई है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 11 हजार 150 है। इतनी बड़ी आबादी को देखते हुए यहां 25 वार्ड गठित किए गए हैं। बस्सी क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी पंचायत जटवाड़ा है, जहां 15 वार्ड बनाए गए हैं। इन दोनों पंचायतों में वार्डों की संख्या अधिक होने से चुनावी मुकाबले भी दिलचस्प और कड़े होने की संभावना है। तूंगा पंचायत समिति क्षेत्र में सबसे बड़ी ग्राम पंचायत स्वयं तूंगा ही है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 6 हजार 886 है, जिसके अनुसार यहां 15 वार्ड बनाए गए हैं।
वार्डों की घोषणा के साथ ही गांव-गांव में संभावित प्रत्याशियों की सक्रियता बढ़ गई है। हालांकि अभी निर्वाचन विभाग द्वारा आरक्षण के आधार पर सीटों का निर्धारण किया जाना बाकी है। सामान्य, सामान्य महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित वार्डों की लॉटरी निकलेगी। इसी लॉटरी पर कई दावेदारों की राजनीतिक उम्मीदें टिकी हुई हैं।
बस्सी और तूंगा क्षेत्र के गांवों में अब चौपालों, चाय की दुकानों और खेत-खलिहानों तक पंचायत चुनाव की चर्चा आम हो चुकी है। कौन किस वार्ड से मैदान में उतरेगा, किसे किस वर्ग का समर्थन मिलेगा और कौन नए चेहरे राजनीति में कदम रखेंगे - इन सवालों पर चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। साफ है कि वार्डों के गठन के साथ ही ग्रामीण सियासत ने रफ्तार पकड़ ली है और आने वाले पंचायत चुनाव गांवों की राजनीति में नई दिशा तय करेंगे।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
25 Dec 2025 05:32 pm


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