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बीकानेर. बीकानेर रियासत में गंग नहर आने से पहले पानी का आधार कुएं, जोहड़ और पारंपरिक जल स्रोत ही थे। इन्हीं स्रोतों से आमजन, पशु-पक्षियों के साथ-साथ रेल तक का काम चलता था। भाप इंजनों का दौर था और रेल की सबसे बड़ी जरूरत थी पानी। सौ साल पुराने दस्तावेज बताते हैं कि बीकानेर दरबार न सिर्फ रेल के लिए पानी की व्यवस्था करता था, बल्कि जिन कुओं से पानी लिया जाता था, उन गांवों को मुआवजा भी देता था।
बुगिया गांव का कुआं रेल का जलस्रोत
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी और इतिहासवेत्ता डॉ. नितिन गोयल बताते हैं कि वर्ष 1925 के अभिलेखों में रेल के लिए कुएं से पानी लेने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। बीकानेर-सूरतगढ़ लूप लाइन पर सरदारगढ़ क्षेत्र में बुगिया गांव का कुआं इस व्यवस्था का मुय स्रोत था। तत्कालीन राजस्व मंत्री ने इसी कुएं से पानी उपलब्ध कराने की स्वीकृति दी थी। गांव के लोगों को इसके बदले 300 रुपए मुआवजा दिया गया, जो उस समय बड़ी राशि थी।
पंप से स्टेशन तक पहुंचता था पानी
डॉ. गोयल के अनुसार, जुलाई 1925 की एक फाइल में रेलवे के एक्टिंग मैनेजर जे.ए.एफ. पावेल ने भाप इंजनों के लिए प्रतिदिन 5 हजार गैलन पानी की जरूरत लिखी है। इसे कुएं से स्टेशन तक पंप लगाकर पहुंचाने की व्यवस्था थी। रेल मार्ग का निर्माण पूरा होते ही बीकानेर रियासत ने यह सुनिश्चित किया कि इंजन कभी पानी की कमी से न रुकें।
जल प्रबंधन: रियासत की दूरदर्शी सोच
जब रेल आधुनिक आवागमन का सबसे उन्नत साधन थी, तब उसकी सतत सुविधा बनाए रखना सरकारों के लिए बड़ी चुनौती थी। बीकानेर दरबार ने इसे सिर्फ तकनीकी विषय न मानकर जनसेवा और सुचारु व्यवस्था की जिमेदारी के रूप में लिया। दस्तावेज बताते हैं कि जल प्रबंधन, संसाधनों का समान और सार्वजनिक सुविधा, ये तीनों उस समय की प्रशासनिक सोच का आधार थे।
प्रगतिशीलता की मिसाल
सौ वर्ष पूर्व जब रेल व्यवस्था जल पर निर्भर थी, तब बीकानेर दरबार ने उसकी सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सुनियोजित प्रणाली विकसित की। यह रियासत की प्रगतिशील सोच और सार्वजनिक सुविधाओं के प्रति समर्पण का प्रमाण है।
- डॉ. नितिन गोयल, वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान
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Published on:
15 Nov 2025 09:47 pm


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