AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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बीकानेर. विवाह जो कभी केवल परंपरा था, अब उत्सव, आयोजन और एक भव्य इवेंट का रूप ले रहा है। सनातन धर्म की वैदिक पद्धति में पाणिग्रहण संस्कार की अपनी मर्यादा और विधि है, लेकिन बदली सोच, बढ़ती आधुनिकता और बदलते सामाजिक ढांचे ने विवाह के स्वरूप को भी नया आकार दे दिया है। इसी बदलाव की सबसे स्पष्ट छाप दिखती है चंवरी और मंडप में। वैसे कुल मिला कर पूरा वैवाहिक कार्यक्रम अब परंपराओं के साथ ही हल्दी-मेंहदी की नई रस्मों को मिला कर नया यूजन पैदा करता है, जो आयोजन को यादगार समारोह जैसा बना रहे हैं।
पुरानी चंवरी से आधुनिक मंडप तक का सफर
चंवरी, जहां वर-वधू फेरे लेते हैं, वहां कभी मिट्टी, बांस, मूंझ और परंपरागत सजावट का वर्चस्व था। आज वही मंडप एल्युमिनियम, थर्माकोल, एलईडी लाइट्स और विशेष डिज़ाइन वाली स्टेज की भव्यता से चमक रहा है। इतना ही नहीं, घर के आंगन में बनने वाला मंडप धीरे-धीरे मैरिज गार्डन में शिट हो गया है। तकरीबन हते भर तक मंडप में चलने वाली रस्में भले ही एक या दो दिन मेें सिमट गई हों, लेकिन नया दौर सौंदर्य और सुविधाओं को साथ लेकर भी आया।
मिट्टी की वेदी का स्थान ले गया हवन कुंड
जगह बदली तो तरीका भी बदल गया। पंडित ओमप्रकाश ओझा बताते हैं कि पहले विवाह घर के आंगन में होता था और मिट्टी-बालू से वेदी रचाई जाती थी। आज विवाह भवन, मैरिज गार्डन और रिसोर्ट में होते हैं, वेदी की जगह अब स्टील या तांबे के हवन कुंड ने ले ली है।
टेंची से सोफा, साधारण मावड़ से डिजाइनर कलात्मकता
कभी दूल्हा-दुल्हन फेरों के बीच लकड़ी की टेंची पर बैठते थे। बिना पीठ के सपोर्ट वाली वह टेंची अब बीते जमाने की बात है। अब विवाह मंडप में विशेष डिजाइनर कुर्सियां और सोफे वर-वधू के बैठने का हिस्सा बन चुके हैं। मावड़ भी बदल गए। पुराने बड़े आकार की जगह अब छोटे, मोतियों से जड़े, कलात्मक मावड़ पहने जा रहे हैं।
घूंघट हटने के बाद बदल गई ‘मुंह दिखाई’
वरिष्ठ महिला कमला देवी बताती हैं, पहले दुल्हन पूरे फेरों तक घूंघट में रहती थी। फेरे बाद घर-परिवार मुंह दिखाई करता था। अब घूंघट का चलन लगभग खत्म है, और मुंह दिखाई औपचारिक रस्म भर रह गई।
सजावट भी आधुनिक, पहनावे भी बदल गए
सामाजिक कार्यकर्ता ब्रजेश्वर लाल व्यास बताते हैं कि चंवरी और मंडप अब कलात्मक थीम, रॉयल कलर और यूजन डेकोरेशन के साथ नए रूप में सज रहे हैं। दूल्हा-दुल्हन के वेषभूषा में भी समय के अनुसार डिज़ाइन, कलर और शैली के नए ट्रेंड शामिल हो गए हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित राजेन्द्र किराडू कहते हैं, विवाह वैदिक संस्कार है। पाणिग्रहण संस्कार विधि-विधान से होना चाहिए। अब अक्सर मुहूर्त की उपेक्षा होती है, सप्तपदी-ऋचाओं में कमी आ रही है। यह चिंता का विषय है।
मटकी की ‘बे’ से एल्युमिनियम की सजावट तक
वरिष्ठ नागरिक रोडा महाराज याद करते हैं... पहले चंवरी के चारों खानों में सात-सात मटकी की बे बांधी जाती थी। नीचे बड़ी, ऊपर छोटी मटकी। साथ में लोटन दीपक। अब ये दृश्य लगभग लुप्त हो गए। अब टैंट पोल्स, एल्युमिनियम पिलर्स और आधुनिक डेकोरेशन ने पारंपरिक सौंदर्य का स्थान ले लिया है।
ऐसे आए बदलाव
चुनरी की साड़ी में कम दिखती दुल्हनें फेरों व सेवरा गीतों की गूंज हुई कम
पाणिग्रहण संस्कार में लगने वाला समय घटा
विवाह मुहूर्त को कम प्राथमिकता कलात्मक, थीम आधारित सजावट का प्रचलन
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Published on:
18 Nov 2025 11:05 pm


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