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बंगाल और बीकानेर की मिट्टी से सजी मां दुर्गा की मूर्ति

नगर स्थापना काल से ही शहर में शक्ति की उपासना की परंपरा रही है। रियासत काल में स्थापित देवी मंदिर शहर में शक्ति पूजन और उपासना के केंद्र बने। शारदीय नवरात्र में बंगाली समाज की परंपरा अनुसार दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन भी रियासत काल से जारी है। बीकानेर राज्य में करीब 83 वर्ष पहले दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत हुई थी। बंगाली समाज हर साल बंगाल और बीकानेर की मिट्टी से दुर्गा की मूर्ति तैयार कर पूजा करता है।

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बीकानेर. नगर स्थापना काल से ही शहर में शक्ति की उपासना की परंपरा रही है। रियासत काल में स्थापित देवी मंदिर शहर में शक्ति पूजन और उपासना के केंद्र बने। शारदीय नवरात्र में बंगाली समाज की परंपरा अनुसार दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन भी रियासत काल से जारी है। बीकानेर राज्य में करीब 83 वर्ष पहले दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत हुई थी। बंगाली समाज हर साल बंगाल और बीकानेर की मिट्टी से दुर्गा की मूर्ति तैयार कर पूजा करता है। शर्मा कॉलोनी, रानी बाजार स्थित बंगाली मंदिर परिसर में भव्य पांडाल सजाया जाता है, जहां पुरुष, महिलाएं, बच्चे और युवा श्रद्धा और आस्था के साथ शामिल होते हैं।

महोत्सव का इतिहास और स्थायी स्थल

बीकानेर बंगाली संस्थान के अध्यक्ष संदीप साह के अनुसार, वर्ष 1942 से यह महोत्सव निरंतर मनाया जा रहा है। शुरुआती वर्षों में स्थल बदलता रहा, लेकिन वर्ष 1959 में रानी बाजार क्षेत्र में स्थायी भवन निर्मित हुआ, तब से यहीं आयोजन होता है।

मूर्तियों की विशेषता

मां दुर्गा के साथ भगवान गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियां भी तैयार की जाती हैं। दुर्गा की मूर्ति दस भुजाओं वाली होती है, जिसमें त्रिशूल, खड़ग, गदा, शंख, चक्र आदि अस्त्र हैं। मां का वाहन सिंह और महिषासुर भी मूर्ति में दर्शाया जाता है। मां काली और सरस्वती की भी पूजा होती है।

मूर्ति निर्माण प्रक्रिया

मूर्ति लगभग 15 से 20 दिन में तैयार होती है। देवी की मूर्ति बंगाल की गंगा नदी और बीकानेर के पवित्र सरोवर की मिट्टी से बनाई जाती है। प्रारंभिक आकार बनाने के लिए घास, बांस और सूतली का उपयोग किया जाता है। पर्यावरण अनुकूल रंगों से देवी का श्रृंगार किया जाता है और अस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है। मूर्ति निर्माण में बंगाल से आए कलाकार शामिल रहते हैं।

पारंपरिक पूजन और विसर्जन

अध्यक्ष संदीप साह के अनुसार, पंचमी से दशमी तक महोत्सव मनाया जाता है। इसमें बोधन, कल्परंभ, अधिवास, पुष्पांजलि, संध्या आरती, बलिदान, हवन, दर्पण बिसर्जन, सिंदूर उत्सव और मूर्ति विसर्जन जैसी परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन होता है।इस वर्ष 2025 में पंचमी 27 सितंबर, महाषष्ठी 28 सितंबर, महासप्तमी 29 सितंबर, महाअष्टमी 30 सितंबर, महानवमी 1 अक्टूबर, और दशमी 2 अक्टूबर को विसर्जन और संबंधित कार्यक्रम होंगे।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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