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एप्पल को-फाउंडर जिसने कौड़ियों के भाव बेच दिए 10% शेयर! आज होते $400 बिलियन! अब यूं गुजार रहे जिंदगी

वेन की उम्र उस वक्त 41-42 के करीब थी, जबकि स्टीव जॉब्स और वोज़ की उनकी आधी उम्र के थे. वेन को लगा कि वे दोनों आगे बढ़ते जाएंगे, जबकि वे खुद किनारे खड़े होकर देखते रह जाएंगे.

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वेन ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी, आज जहां एप्पल है, वहां से देखेंगे तो आपको लगेगा कि ये बहुत बेवकूफी भरा फैसला लगेगा. (PC: ronaldgwayne.com)

अगर आप खुद को बहुत अनलकी मानते हैं क्योंकि शेयर बाजार में आप अक्सर नुकसान उठाते हैं, तो आपको रॉनल्ड वेन की कहानी सुननी चाहिए, तब आपको पता चलेगा कि आप की बदकिस्मती वेन के सामने कुछ भी नहीं है. आपने शायद ही वेन का नाम सुना हो, लेकिन जब इनके बारे में जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे. आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल के तीन को-फाउंडर हुआ करते थे, स्टीव जॉब्स, स्टीव वॉजनियाक और रॉनल्ड वेन. एप्पल को लिस्ट हुए 45 साल हो चुके हैं और अब ये 4 लाख करोड़ डॉलर की कंपनी बन चुकी है.

10% हिस्सेदारी 800 डॉलर में बेच दी


जब एप्पल की स्थापना की गई तो सिर्फ 12 दिन के बाद ही रोनाल्ड वेन ने अपनी 10% हिस्सेदारी सिर्फ 800 डॉलर में बेच दी थी. हालांकि अब जब एप्पल के IPO को 45 साल हो चुके हैं, तो अगर वेन ने अपनी 10% हिस्सेदारी नहीं बेची होती तो, उसकी वैल्यू आज की तारीख में 400 बिलियन डॉलर होती. उस समय उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है. लेकिन बाद में उन्होंने माना कि उनसे गलती हुई.

दरअसल, स्टीव जॉब्स और स्टीव वोजनियाक को उन दो कॉलेज ड्रॉपआउट्स के रूप में जाना जाता है, जो बाद में जीनियस साबित हुए और जिन्होंने 1976 में एप्पल कंप्यूटर की स्थापना की. लेकिन इस दौरान एक और साथी भी था, जो कंपनी की शुरुआत के 12 दिनों तक रहा, उसका नाम था रोनाल्ड वेन, हालांकि लोग उनको ज्यादा नहीं पहचानते, मगर इन्होंने एप्पल को जमीन पर उतारने में बेहद अहम भूमिका निभाई थी.

एप्पल की स्थापना में वेन का बड़ा रोल

जब एप्पल को लेकर प्लानिंग चल रही थी उस समय रोनाल्ड वेन चालीस की उम्र में थे और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी अटारी में काम कर रहे थे. स्टीव जॉब्स के करीबी दोस्त होने के नाते, उन्होंने स्टीव वोजनियाक को एप्पल को लॉन्च करने के लिए भी मनाया था. वेन इन तीन लोगों में समझदारी से फैसले लेने वाला व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते थे क्योंकि वो दोनों साथियों से काफी बड़े भी थे. वेन कंपनी का कॉन्ट्रैक्ट भी टाइप किया था, वेन को इस टेक कंपनी में 10% हिस्सेदारी दी गई, जबकि जॉब्स और वोजनियाक को 45-45% की हिस्सेदारी मिली.

मगर, अभी कॉन्ट्रैक्ट की स्याही भी नहीं सूखी थी कि वेन ने एक चौंकाने वाला फैसला कर लिया, जिसे इतिहास के पन्नों में सबसे बड़ी चूक के रूप में जाना गया. उस वक्त वेन ने अपनी हिस्सेदारी सिर्फ 800 डॉलर में बेच दी थी और बाद में कंपनी पर किसी भी तरह का दावा छोड़ने के बदले उन्हें 1,500 डॉलर और मिले. अगर वेन अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचते तो एप्पल का मार्केट कैप 4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा होने की वजह से उसकी कीमत 400 बिलियन डॉलर तक हो सकती थी. हालांकि जब नए निवेशक कंपनी से जुड़े और 1980 में एप्पल शेयर बाजार में लिस्ट हुई, तो समय के साथ स्टीव जॉब्स और स्टीव वोजनियाक की हिस्सेदारी भी घटती गई. रोनाल्ड वेन भी अगर कंपनी में बने रहते, तो उनकी भी हिस्सेदारी घटती.

बेवकूफी भरा फैसला या…


वेन ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी, आज जहां एप्पल है, वहां से देखेंगे तो आपको लगेगा कि ये बहुत बेवकूफी भरा फैसला लगेगा. लेकिन उस वक्त वेन के नजरिये देखेंगे तो आपको उसका सही कारण पता चलेगा. कंपनी के शुरुआती दिनों में, स्टीव जॉब्स ने 50 या 100 कंप्यूटर बनाने का ऑर्डर पूरा करने के लिए 15,000 डॉलर उधार लिए थे. यह ऑर्डर बाइट शॉप नाम की एक रिटेल दुकान से मिला था, जो सही वक्त पर भुगतान नहीं करने के लिए बदनाम थी.

एक इंटरव्यू के दौरान वेन ने बताया था कि अगर हमें पैसे नहीं मिलते, तो 15,000 डॉलर का कर्ज हम कैसे चुकाते? . उन्होंने आगे कहा, 'जॉब्स और वोज़ के पास उस वक्त फूटी कौड़ी भी नहीं थी. मेरे पास एक घर था, एक कार थी और बैंक अकाउंट था, यानी अगर यह सब फेल हो जाता, तो जिम्मेदारी मुझ पर ही आती.'

वेन की उम्र उस वक्त 41-42 के करीब थी, जबकि स्टीव जॉब्स और वोज़ की उनकी आधी उम्र के थे. वेन को लगा कि वे दोनों आगे बढ़ते जाएंगे, जबकि वे खुद किनारे खड़े होकर देखते रह जाएंगे.
उन्हें यह भी डर था कि यह अनुभव उनके करियर के ताबूत में आखिरी कील ठोक देगा. वो कहते हैं 'मुझे पता था कि मैं दिग्गजों की परछाईं में खड़ा हूं और मेरा कभी कोई अपना प्रोजेक्ट नहीं होगा. मैं अगले 20 साल तक सिर्फ फाइलें की पलटता रहता, ये जिंदगी मैंने अपने लिए नहीं देखी थी.'

वेन ने माना, गलती हुई

हालांकि उस समय वेन ने कहा था कि उन्हें अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है, लेकिन बाद में उन्होंने माना कि अगर पैसों की चिंता न करनी पड़ती तो अच्छा होता. आज गुजर-बसर के लिए वे अपनी प्रॉपर्टी का एक हिस्सा किराए पर देते हैं और सोशल सिक्योरिटी से मिलने वाली मासिक राशि पर निर्भर हैं.

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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