AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायत विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सागर संभाग के पांच जिलों सागर, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी और छतरपुर को पंचायत विकास के लिए कुल 1206 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि जारी की गई, लेकिन इसके बावजूद अब तक 40 प्रतिशत से भी कम राशि ही खर्च हो सकी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक संभाग में केवल 479 करोड़ रुपए ही जमीन पर उतर पाए हैं, जबकि 727 करोड़ रुपये से अधिक राशि अभी भी अप्रयुक्त पड़ी हुई है। यह स्थिति तब है, जब ग्रामीण सडक़ों, पेयजल, सामुदायिक भवन, नाली निर्माण और अन्य बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता लगातार बनी हुई है।
सागर जिला- सागर जिले को पंचायत विकास के लिए 455 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिनमें से 210 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके। खर्च प्रतिशत 46 रहा। अधिकारियों के अनुसार कई योजनाएं अब भी टेंडर प्रक्रिया और प्रशासनिक अनुमोदन में उलझी हुई हैं, जिसके चलते काम समय पर शुरू नहीं हो पाया।दमोह जिला
दमोह जिले को 322 करोड़ रुपए की राशि मिली, लेकिन इसमें से केवल 140 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके। खर्च प्रतिशत 43 रहा। यहां फंड होने के बावजूद विकास कार्यों की गति धीमी बताई जा रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षित विकास नजर नहीं आ रहा।
टीकमगढ़ जिला-टीकमगढ़ की स्थिति सबसे चिंताजनक मानी जा रही है। जिले को 74 करोड़ रुपए मिले, लेकिन अब तक केवल 6 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके। खर्च प्रतिशत महज 8 रहा। अधिकांश योजनाएं अब भी फाइलों और कागजों में ही सिमटी हुई हैं।निवाड़ी जिला
निवाड़ी जिले को 45 करोड़ रुपए का बजट मिला, लेकिन खर्च सिर्फ 3 करोड़ रुपए हो पाया। खर्च प्रतिशत 6 रहा। छोटे बजट के बावजूद योजनाओं का धरातल पर न उतर पाना प्रशासनिक सुस्ती को दर्शाता है।
छतरपुर जिला-छतरपुर जिले को 310 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिनमें से 120 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके। खर्च प्रतिशत 39 रहा। यहां डीपीआर स्वीकृति और तकनीकी अनुमोदन में देरी को प्रमुख कारण बताया जा रहा है।
सागर संभाग की स्थिति प्रदेशव्यापी समस्या की ओर भी इशारा करती है। मध्यप्रदेश में कुल 22976 ग्राम पंचायत विकास योजनाएं तैयार की गई थीं, लेकिन इनमें से अब तक केवल 11878 योजनाएं ही जमीन पर उतर सकी हैं। वर्ष 2025-26 के लिए जिला पंचायतों को 7585 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया था, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक सिर्फ 343 करोड़ रुपए, यानी लगभग 4.5 प्रतिशत राशि ही खर्च हो पाई है। यह आंकड़ा साफ दर्शाता है कि योजना निर्माण और बजट आवंटन के बावजूद क्रियान्वयन सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।
विशेषज्ञों और प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार योजनाओं के धीमे क्रियान्वयन के पीछे कई कारण सामने आए हैं। राज्य और जिला स्तर पर अनुमोदन की लंबी प्रक्रिया के कारण योजनाएं समय पर जमीन पर नहीं उतर पा रहीं। टेंडरिंग प्रक्रिया में देरी, तकनीकी स्वीकृतियों में सुस्ती, ड्रॉइंग और डिजाइन के लंबित प्रस्ताव, तथा भुगतान प्रक्रियाओं में विलंब भी बड़ी बाधा बने हुए हैं। समय पर भुगतान न होने से ठेकेदारों की रुचि भी कम हो रही है। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर निगरानी और विभागीय समन्वय की कमी भी सामने आई है।
इन प्रशासनिक और तकनीकी अड़चनों का सीधा असर ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहा है। कई गांवों में सडक़ें अधूरी पड़ी हैं, पेयजल योजनाएं शुरू नहीं हो सकी हैं, नालियां और सामुदायिक भवन वर्षों से अधूरे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि योजनाओं की घोषणाएं तो होती हैं, लेकिन काम शुरू होने में सालों लग जाते हैं, जिससे सरकारी योजनाओं पर भरोसा कमजोर पड़ रहा है। ग्रामीण विकास से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अनुमोदन, टेंडरिंग और भुगतान प्रक्रियाओं को समयबद्ध और पारदर्शी नहीं बनाया जाता, तब तक पंचायत विकास योजनाएं केवल कागजों तक ही सीमित रहेंगी। पंचायत और जिला स्तर पर तकनीकी क्षमता बढ़ाने, नियमित निगरानी और जवाबदेही तय करने की जरूरत बताई जा रही है.
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Published on:
25 Dec 2025 10:54 am


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