AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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दमोह जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर ब्यारमा नदी किनारे स्थित बूढ़ा जुझार कभी वैभव, संस्कृति और आस्था का केंद्र हुआ करता था। 500 वर्ष पुराने इस शिव मंदिर में जहां 900 शंख और 8900 झालरों की एक साथ गूंज से आरती होती थी, वहीं आज यह मंदिर खंडहरों में तब्दील होकर इतिहास की मौन कहानी सुनाता खड़ा है। स्थानीय नागरिक हेमेंद्र राजन असाटी, इमरत सिंह, धन सिंह सहित ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि मंदिर का सर्वे कराकर इसे संरक्षित किया जाए और बूढ़े जुझार के गौरव को पुनर्जीवित किया जाए।
मंदिर की दीवारें आज भी बेहद मजबूत चूने पत्थर की अनोखी कारीगरी का प्रमाण देती हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कभी शिव पिंडी और जलहरी गर्भगृह में स्थापित थीं, लेकिन समय के साथ यह दुर्लभ धरोहर चोरी हो गई। चार विशाल दरवाजों वाला यह मंदिर कभी दूर-दूर तक धार्मिक आयोजनों का प्रमुख केंद्र माना जाता था।
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार बूढ़ा जुझार कभी बेहद समृद्ध और आबाद गांव था लेकिन ब्यारमा नदी की समय-समय पर आई बाढ़ ने गांव की बसाहट को नष्ट कर दिया। लोग नए जुझार में बसते चले गए और पुराना गांव खेतों व खंडहरों तक सिमटकर रह गया। खेत जोतते समय आज भी पत्थर की मूर्तियां, सिलबट्टे और अन्य प्राचीन अवशेष मिल जाते हैं, जो उस काल की उन्नत सभ्यता का प्रमाण है। गांव के खेतों पर बने कुम्हारखेड़ा, नाचनारीखेड़ा, फूटी खेर, गढिय़ा, भरका जैसे नाम आज भी बताते हैं कि कभी किस समुदाय के घर किस स्थान पर बसे थे।
नए जुझार के निवासी इमरत सिंह बताते हैं कि बूढ़े जुझार का यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और इसके मूल दर्शन समय के साथ लुप्त हो गए। शिव पिंडी और जलहरी चोरी हो जाने के बाद मंदिर वीरान और असुरक्षित अवस्था में पड़ा है। ग्राम धन सिंह लोधी बताते हैं इस मंदिर में 900 शंख और 8900 झालरों की ध्वनि गूंजती थीं, पूरा इलाका इस ध्वनि को सुनता था। आज केवल खामोशी बची है।
जुझार गांव से जुड़ी एक रहस्यमयी परंपरा आज भी चर्चा का विषय है। ग्रामीण बताते हैं कि शादी विवाह जन्मोत्सव या पर्वत्योहारों पर जहां हर गांव में किन्नर बधाई देने पहुंचते हैं, वहीं जुझार गांव में किन्नर आज भी कदम नहीं रख पाते। स्थानीय लोगों के अनुसार यदि कोई किन्नर गलती से गांव की सीमा में प्रवेश कर भी जाएए तो वह अचानक बेहोश होकर गिर पड़ता है। इस मान्यता को ग्रामीण पीढिय़ों से चली आ रही देवी परंपरा से जोड़कर देखते हैं।
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Published on:
16 Dec 2025 10:34 am


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