AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Arjun fight With Lord Shiv: महाभारत की कथाओं में पांडवों और भगवान शिव के युद्ध की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है। यह कथा मुख्य रूप से पांडु पुत्र अर्जुन की तपस्या और उनकी भगवान शिव से भेंट से जुड़ी हुई है। जब पांडवों को वनवास हुआ, तब अर्जुन ने महान धनुर्धर बनने और दिव्य अस्त्र प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करने का प्रण किया। उनका उद्देश्य महाभारत युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के लिए परमशक्ति प्राप्त करना था।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अर्जुन हिमालय पर भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें परखने का निर्णय लिया। इसके बाद महादेव किरात यानी शिकारी के रूप में अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए पहुंच गए। भगवान शिव ने अर्जुन के पास एक जंगली सूअर को भेजा। अर्जुन और शिकारी दोनों ने एक साथ उस उस जंगली सूअर पर बाण चलाए। लेकिन तीर सिर्फ एक ही निकला। इस पर विवाद हुआ और दोनों के बीच घोर युद्ध छिड़ गया।
युद्ध में अर्जुन ने अपनी संपूर्ण शक्ति और कौशल का प्रदर्शन किया। लेकिन वह किरात को परास्त नहीं कर सके। हर बाण और अस्त्र निष्फल होते देख अर्जुन को यह समझ में आया कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। उन्होंने भगवान शिव की पूजा करते हुए पुष्पों की माला अर्पित की। आश्चर्यजनक रूप से वही माला किरात के गले में दिखाई दी। तब अर्जुन को सच्चाई का ज्ञान हुआ।
तपस्वी अर्जुन भगवान शिव के चरणों में गिर गए और क्षमा याचना करने लगे। उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया, जो संसार का सबसे शक्तिशाली अस्त्र था। उन्होंने अर्जुन को आशीर्वाद दिया कि वह महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करेंगे।
महादेव और अर्जुन के युद्ध की यह कथा केवल अर्जुन की तपस्या और समर्पण को ही नहीं दर्शाती, बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति और आत्मसमर्पण से भगवान स्वयं भक्त की परीक्षा लेकर उसे उसकी क्षमता के अनुसार शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। अर्जुन की तरह अगर मनुष्य समर्पण और धैर्य से कार्य करे, तो उसे निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है।
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Updated on:
17 Feb 2025 04:35 pm
Published on:
17 Feb 2025 04:33 pm


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