AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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धौलपुर.मां का दूध नवजात शिशु के लिए प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है, लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि बच्चे को यह ‘अमृत’ उपलब्ध नहीं हो पाता। 2018 में जनाना अस्पताल में मदर मिल्क बैंक की स्थापना की गई। तब से यह मदर मिल्क बैंक नवजात बच्चों के लिए जीवनदायिनी सिद्ध हो रहा है। अभी तक 9हजार 269 बच्चों की जिंदगी को बचाया जा चुका है।जनाना अस्पताल स्थित मिल्क बैंक जहां महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है, तो वहीं मदर मिल्क बैंक समय से पहले जन्मे, कम वजन वाले, बीमार या अनाथ बच्चों के लिए जीवनरक्षक साबित हो रहे हैं, जहां दान किया गया मां का दूध उन्हें पोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। यह योजना 2018 में वसुंधरा सरकार के दौरान राज्यभर में प्रारंभ की गई थी। तब से लेकर अब6 हजार 586 महिलाएं 12946 बार मिल्क दान कर चुकी हैं। इस दौरान 17 लाख 81 हजार 715 एमएल यानी 1 हजार781 लीटर मिल्क दान किया गया। यही कारण रहा कि बीते इन सात सालों में 9 हजार 269 बच्चों को नया जीवनदान दिया जा चुका है। इसके अलावा 2500 मिल्क को अजमेर स्थित सेंटर भी भेजा जा चुका है। मदर मिल्क बैंक की मैनेजर जूली ने बताया कि यहां उन नवजात बच्चों को लाभ मिल रहा है जिनकी माताएं किसी अन्य अस्पताल में उपचाराधीन हैं, जिनका प्रसव सिजेरियन हुआ है या किसी कारणवश शुरुआती दिनों में उनके शरीर में दूध नहीं उतर पाता। इसके अलावा कई प्रसूताओं के दूध तो उतरता है, लेकिन उनके बच्चे बीमारी या कमजोरी के कारण दूध नहीं पी पाते। ऐसी महिलाएं स्वेच्छा से अपना दूध दान करती हैं, ताकि अन्य जरूरतमंद शिशुओं को जीवन रक्षक पोषण मिल सके।
ग्रामीण क्षेत्रों सहित निजी अस्पतालों में भेजा जाता है दूध
ऐसा नहीं है कि मदर मिल्क का उपयोग केवल जनाना अस्पताल तक ही सीमित है। जरूरत पडऩे पर मदर मिल्क को घरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों तक डिलीवर किया गया है। बैंक से अभी तक ४ हजार ३९४ यूनिट मिल्क ग्रामीण क्षेत्रों में भी भेजा जा चुका है। इसके अलावा निजी अस्पतालों में १६४ यूनिट मिल्क नि:शुल्क भेजा गया है। मिल्क बैंक में तैनात प्रशिक्षित स्टॉफ वार्डों में जाकर माताओं को प्रक्रिया के बारे में जागरूक करती हैं। अस्पताल प्रबंधन भी अपने स्तर से जागरूकता अभियान चला रहा है। यहां रोजाना एक से डेढ़ लीटर दूध एकत्रित हो रहा है।
कैसे काम करता है मदर मिल्क बैंक
मदर मिल्क को संग्रह करने की प्रक्रिया बिल्कुल ब्लड बैंक की तरह होती है। जहां दूध संग्रह से लेकर शिशुओं को उपलब्ध कराने तक पूरा प्रोसेस अत्यधिक सुरक्षित और वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है। दूध दान से पहले माताओं की पूरी जांच की जाती है, जिसमें हेपेटाइटिस बी, सी, एचआइवीए सिफलिस आदि जांच शामिल हैं। सबसे पहले मां आधुनिक मशीनों के माध्यम से दूध निकालती हैं। इसके बाद लेमिनार फ्लो मशीन में दूध की मिक्सिंग और ह्यूमन मिल्क पेस्चराइजर में पेस्चराइजेशन की प्रक्रिया की जाती है, ताकि सभी हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाएं। सैंपल को माइक्रोबायोलाजी लैब में टेस्ट किया जाता है। रिपोर्ट संतोषजनक होने पर दूध को डीप फ्रीजर में स्टोर कर लिया जाता है। यह दूध छह माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है। बैंक में एक बार में 100 माताओं का दूध संग्रहित करने की क्षमता है।
जागरूकता के साथ कामयाब होती योजना
राजस्थान में बढ़ते शिशु मृत्युदर को कम करने के लिए मदर मिल्क बैंक नाम से योजना प्रारंभ की गई थी। इसमें सरकार की मंशा थी कि बच्चों को फार्मूला मिल्क ना पिलाकर हर बच्चे को मां का दूध उपलब्ध हो सके। योजना प्रारंभ होने के बाद और जागरुकता की कमी के कारण शुरुआती दिनों में विभाग को अधिक प्रयास करने पड़े, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता और लोगों जागरूकता आई तो सब आसान होता गया। जिस कारण आज यह योजना बेहद कामयाब है, इसकी वजह से प्रदेश के हजारों बच्चों को मां का दूध मिल रहा है। जनाना अस्पताल में स्थापित किए गए आंचल मिल्क बैंक में माताओं को सर्विस भी दी जाती है। जिसमें माताओं को मिल्क बैंक में बुलाकर अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए सक्षम बनाया है।
बेहतर कार्यों के लिए मिल्क बैंक हुई पुरस्कृत
धौलपुर के जनाना अस्पताल में मिल्क बैंक की स्थापना के बाद से ही बेहतर कार्य किया जा रहा है। जहां जरूरत पडऩे पर जननी को होने वाली परेशानियों से जहां राहत मिल रही है वहीं बच्चों को मां का अमृत। प्रतिदिन 100 में से 15 महिलाओं को मिल्क बैंक का सहारा लेना पड़ रहा है। यही कारण है कि बैंक में 1 हजार 55 यूनिट मां के दूध का स्टॉक है। 2022 में धौलपुर की मदर मिल्क बैंक को बेहतर कार्यों के लिए स्टेट लेवल का पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।
जरूरतमंद प्रसूताओं सहित बीमार बच्चोंं के लिए मदर मिल्क बैंक मील का पत्थर साबित हो रही है। मां के दूध को बैंक में संग्रह करकर रखा जाता है। जरूरत पडऩे पर बच्चों को दिया जाता है जो उनके लिए अमृत समान होता है। जिससे बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है।
-डॉ. हरिओम गर्ग, व्यवस्थापक एमसीएच
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Published on:
22 Dec 2025 07:13 pm


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