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मुगल एम्पायर का सबसे पढ़ा-लिखा बादशाह कौन था, वो अनपढ़ बादशाह जिसने, 49 साल किया भारत पर राज!

Mughal Emperor: भारत के इतिहास में मुगल साम्राज्य का विशेष स्थान है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस दौर में कई ऐसे बादशाह हुए जिनके राज में कला, संस्कृति और ज्ञान को भी बढ़ावा मिला। लेकिन क्या आप मुगल वंश के उस शहजादे के बारे में जानते हैं जिसे सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा माना जाता है, वहीं एक ऐसा महान बादशाह भी था जिसने कभी औपचारिक शिक्षा ही नहीं ली?

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most educated Mughal, illiterate Mughal emperor
( Freepik & Gemini)

Literate vs Illiterate Mughal Rulers: मुगल एम्पायर न केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अहम है बल्कि शिक्षा, ज्ञान एवं साहित्यिक परंपरा के लिहाज से भी बहुत जरूरी माना जाता है। इसलिए मुगल शासक, शहजादों की पढ़ाई-लिखाई के लिए खासा इंतजाम करते थे। उनके दरबार में भी ज्ञानी-जनों को अहम स्थान और सम्मान दिया जाता था। मुगल दरबार और संस्कृति के लेखक अली एम अजीज, मुगल भारत: संरचना और कृषि के लेखक इरफान हबीब, किताब औरंगजेब के लेखक जेएन सरकार और द मुगल एम्परर ऑफ इंडिया के लेखक एबी पोट्टर सभी इस मामले में समान राय रखते हैं।

Most Educated Mughal: सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा मुगल शहजादा

दारा शिकोह, मुगल बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे थे। इतिहासकार उन्हें मुगल काल का सबसे पढ़ा-लिखा और दार्शनिक शहजादा मानते हैं। उनकी पढ़ाई उस जमाने के सबसे अच्छे विद्वानों और गुरुओं ने करवाई थी। दारा शिकोह की रुचि शासन या युद्ध में नहीं थी, बल्कि वह आध्यात्म और दर्शन में गहरी दिलचस्पी रखते थे।

उन्हें सूफी संतों की संगत में रहना पसंद था और वे अलग-अलग धर्मों की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करते थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों की मूल भावना एक ही है। इसी सोच के कारण उन्होंने हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ उपनिषदों का गहन अध्ययन किया। दारा शिकोह ने करीब पचास उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया। उन्होंने 'मज्म-उल-बहरेन' नामक पुस्तक भी लिखी, जिसमें सूफी विचारधारा और वेदांत दर्शन की समानताओं को समझाया गया है। इसी कारण इतिहासकार उन्हें मुगल काल का सबसे विद्वान और प्रगतिशील शहजादा मानते हैं।

Illiterate Mughal Emperor: मुगल एम्पायर का अनपढ़ लेकिन दूरदर्शी बादशाह

मुगल साम्राज्य के सबसे महान और सफल शासकों में से एक, अकबर पढ़ाई के मामले में औपचारिक शिक्षा से वंचित रहे। वह एकमात्र ऐसे मुगल बादशाह थे जो कथित तौर पर अनपढ़ थे। अकबर के पिता हुमायूं ने उन्हें पढ़ाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन असफल रहे। अकबर का मन बचपन से ही किताबों में नहीं बल्कि युद्ध कला, शिकार और घुड़सवारी में लगता था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, वह डिस्लेक्सिया (Dyslexia) नामक लर्निंग डिसऑर्डर से पीड़ित थे, जिसके कारण उन्हें अक्षरों को पहचानने और पढ़ने में मुश्किल होती थी।

भले ही अकबर खुद पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे लेकिन, अनपढ़ होने के बावजूद भी वो विद्वानों का हमेशा सम्मान करते थे। उन्होंने शाही पुस्तकालय भी बनवाया था जिसमें हज़ारों किताबें मौजूद थीं। विद्वान उन किताबों को अकबर के लिए पढ़कर सुनाते थे। उनके दरबार में बीरबल, अबुल फजल और फैजी जैसे महान विद्वान (नवरत्न) भी थे, जिन्होंने शासन और ज्ञान-विज्ञान में उनकी सहायता की। अकबर के फरमान पर कई संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया गया था। महाभारत का फारसी अनुवाद 'रज्मनामा' इसकी सबसे मशहूर मिसाल है।

Mughal Education System: मुगल शहजादे कहां पढ़ने जाते थे?

मुगल शहजादों की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था आमतौर पर उनके दरबार या निजी शिक्षण तक सीमित थी। वे विदेश जाकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि दुनिया के श्रेष्ठ विद्वान दरबार में आकर उन्हें शिक्षित करते थे। आगरा व लाहौर जैसे शहर शिक्षा के केंद्र थे, जहां अरबी, फारसी, गणित, भूगोल, इतिहास, और साहित्य पढ़ाया जाता था।

इस तरह, मुगल वंश में जहां एक ओर दारा शिकोह जैसा विद्वान शहजादा हुआ तो वहीं, दूसरी ओर अकबर जैसे निरक्षर बादशाह ने भी अपनी सूझबूझ और नीतियों से एक विशाल और मजबूत साम्राज्य खड़ा किया, जो अपने आप में एक अनोखी मिसाल है।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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