AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Literate vs Illiterate Mughal Rulers: मुगल एम्पायर न केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अहम है बल्कि शिक्षा, ज्ञान एवं साहित्यिक परंपरा के लिहाज से भी बहुत जरूरी माना जाता है। इसलिए मुगल शासक, शहजादों की पढ़ाई-लिखाई के लिए खासा इंतजाम करते थे। उनके दरबार में भी ज्ञानी-जनों को अहम स्थान और सम्मान दिया जाता था। मुगल दरबार और संस्कृति के लेखक अली एम अजीज, मुगल भारत: संरचना और कृषि के लेखक इरफान हबीब, किताब औरंगजेब के लेखक जेएन सरकार और द मुगल एम्परर ऑफ इंडिया के लेखक एबी पोट्टर सभी इस मामले में समान राय रखते हैं।
दारा शिकोह, मुगल बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे थे। इतिहासकार उन्हें मुगल काल का सबसे पढ़ा-लिखा और दार्शनिक शहजादा मानते हैं। उनकी पढ़ाई उस जमाने के सबसे अच्छे विद्वानों और गुरुओं ने करवाई थी। दारा शिकोह की रुचि शासन या युद्ध में नहीं थी, बल्कि वह आध्यात्म और दर्शन में गहरी दिलचस्पी रखते थे।
उन्हें सूफी संतों की संगत में रहना पसंद था और वे अलग-अलग धर्मों की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करते थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों की मूल भावना एक ही है। इसी सोच के कारण उन्होंने हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ उपनिषदों का गहन अध्ययन किया। दारा शिकोह ने करीब पचास उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया। उन्होंने 'मज्म-उल-बहरेन' नामक पुस्तक भी लिखी, जिसमें सूफी विचारधारा और वेदांत दर्शन की समानताओं को समझाया गया है। इसी कारण इतिहासकार उन्हें मुगल काल का सबसे विद्वान और प्रगतिशील शहजादा मानते हैं।
मुगल साम्राज्य के सबसे महान और सफल शासकों में से एक, अकबर पढ़ाई के मामले में औपचारिक शिक्षा से वंचित रहे। वह एकमात्र ऐसे मुगल बादशाह थे जो कथित तौर पर अनपढ़ थे। अकबर के पिता हुमायूं ने उन्हें पढ़ाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन असफल रहे। अकबर का मन बचपन से ही किताबों में नहीं बल्कि युद्ध कला, शिकार और घुड़सवारी में लगता था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, वह डिस्लेक्सिया (Dyslexia) नामक लर्निंग डिसऑर्डर से पीड़ित थे, जिसके कारण उन्हें अक्षरों को पहचानने और पढ़ने में मुश्किल होती थी।
भले ही अकबर खुद पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे लेकिन, अनपढ़ होने के बावजूद भी वो विद्वानों का हमेशा सम्मान करते थे। उन्होंने शाही पुस्तकालय भी बनवाया था जिसमें हज़ारों किताबें मौजूद थीं। विद्वान उन किताबों को अकबर के लिए पढ़कर सुनाते थे। उनके दरबार में बीरबल, अबुल फजल और फैजी जैसे महान विद्वान (नवरत्न) भी थे, जिन्होंने शासन और ज्ञान-विज्ञान में उनकी सहायता की। अकबर के फरमान पर कई संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया गया था। महाभारत का फारसी अनुवाद 'रज्मनामा' इसकी सबसे मशहूर मिसाल है।
मुगल शहजादों की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था आमतौर पर उनके दरबार या निजी शिक्षण तक सीमित थी। वे विदेश जाकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि दुनिया के श्रेष्ठ विद्वान दरबार में आकर उन्हें शिक्षित करते थे। आगरा व लाहौर जैसे शहर शिक्षा के केंद्र थे, जहां अरबी, फारसी, गणित, भूगोल, इतिहास, और साहित्य पढ़ाया जाता था।
इस तरह, मुगल वंश में जहां एक ओर दारा शिकोह जैसा विद्वान शहजादा हुआ तो वहीं, दूसरी ओर अकबर जैसे निरक्षर बादशाह ने भी अपनी सूझबूझ और नीतियों से एक विशाल और मजबूत साम्राज्य खड़ा किया, जो अपने आप में एक अनोखी मिसाल है।
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Updated on:
16 Dec 2025 03:14 pm
Published on:
15 Dec 2025 11:20 pm


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