AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Navratri 2017 : पवित्रता की परात में साधना की सौगात है नवरात्र। सच्चे भक्त की नवदुर्गा से सीधी बात है नवरात्र। अष्टम (आठवें) नवरात्र में मां दुर्गा की भक्तों के लिए सौम्य मूरत हैं महागौरी। इन्होंने तपस्या द्वारा महान गौर वर्ण (गोरा रंग) प्राप्त किया था। अत:, ये महागौरी कहलाईं। किंतु दुष्टों को दंडित करने के लिए अर्थात दुर्जनों/दैत्यों के लिए इनकी आदत/अवतार हो जाता है देवी भ्रामरी। तात्पर्य यह है कि भक्तों को आशीष देती हैं महागौरी मूरत में। दुष्टों को दंड देती हैं देवी भ्रामरी की सीरत में। एक वाक्य में यह कि सौम्य स्वरूप में महागौरी है 'मर्म, रौद्र रूप में देवी भ्रामरी है 'कर्म'। भक्तों के लिए पूजनार्थ महागौरी 'सरला हैं। दुष्टों के लिए दंडार्थ देवी भ्रामरी 'अद्भुता हैं। इसको यों समझिए : महागौरी अर्थात भक्तों को 'सुख'। देवी भ्रामरी अर्थात दुष्टों को 'दुख'। मां दुर्गा महागौरी के रूप में भक्त-वत्सला भी हैं और स्नेह-सलिला भी। किंतु देवी भ्रामरी के रूप में दुष्ट-हंता भी हैं और नीति-नियंता भी। एक वाक्य में यह कि देवी भ्रामरी सत्य की संरक्षिका हैं। सत्य के तेज से तम का तिलिस्म टूट जाता है। अथर्ववेद के दसवें कांड में कहा गया है...
'सत्येनोर्ध्वस्तपति'
अर्थात 'सत्य से मनुष्य सबके ऊपर तपता है।'
महाभारत के उद्योग-पर्व के 35वें अध्याय के
58वें श्लोक में कहा गया है (हिंदी अनुवाद)...
'जिस सभा में बड़े-बूढ़े नहीं, वह सभा नहीं।
जो धर्म की बात न कहे, वे बूढ़े नहीं।
जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं।
जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं।
तात्पर्य यह है कि सत्य में ही धर्म प्रतिष्ठित है। सत्य की संरक्षिका के रूप में ही देवी भ्रामरी अवतरित हुईं। इस अवतार में उन्होंने भयानक दैत्य का वध करके उस दुष्ट को दंडित किया तथा सत्य को संरक्षित किया। 'भ्रामरी दरअसल भ्रमर (भंवरा) का स्त्रीलिंग है और समूह भी। इस प्रकार 'भ्रामरी के रूप में अपने अवतरण के बारे में 'श्री दुर्गा सप्तशती के 'देवीस्तुति से संबंधित ग्यारहवें अध्याय के 52वें श्लोक के उत्तरार्ध में स्वयं देवी ने कहा है...
यदारूणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधांकरिष्यति
अर्थात 'जब भयानक दैत्य तीनों लोकों में भारी उपद्रव मचाएगा, तब (53वें श्लोक में आगे कहा) 'तदाहं भ्रामरं रूपं कृतवा संख्येषटपदम। त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम। अर्थात 'तब मैं तीनों लोकों का हित करने के लिए छह पैरों वाले असंख्य भ्रमरों का रूप धारण करके उस महादैत्य का वध करूंगी। देवी भ्रामरी की कथा का सारांश यह है कि भयानक दैत्य ने सिद्धियों की प्राप्ति हेतु तपस्या की। उसकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उसके शरीर का रंग लाल हो गया। उसको सिद्धि प्राप्त हो गई। उसने सिद्धि का दुरुपयोग करके स्त्रियों का सतीत्व हरण शुरू कर दिया। सिद्धि के कारण दिव्य अस्त्रों से वह मर नहीं सकता था। अत: मां दुर्गा ने देवी भ्रामरी का अवतार लेकर भ्रमरों के डंक से उसे मार दिया। वर्तमान अर्थ यह है कि सिद्ध्रियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। काव्य पंक्तियां भी हैं कि...
'प्रदर्शन सिद्धियों' का जब कोई साधक लगे करने
समझ लेना पतन बिंदु पर उसकी साधनायें है '
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
28 Sept 2017 08:35 am


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