AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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ग्वालियर. तानसेन समारोह के तीसरे दिन इटली के रोम से प्रस्तुति देने आए बांसुरी वादक सिमोन मेटिएलो की ये पहली प्रस्तुति थी। ग्वालियर के संगीत रसिकों ने बेहद खुलूस के साथ उनका स्वागत किया। पूरा ऑडिटोरियम खामोशी के साथ बांसुरी की मधुरता में डूबा रहा।
सवाल: आप एक बिल्कुल अलग संस्कृति से आते हैं। शास्त्रीय संगीत की तरफ आपका रूझान कैसे बढ़ा और बांसुरी को ही क्यों चुना?
जवाब: पहले मैं तार वाद्यों का ही वादन करता था लेकिन फिर मुझे लगा कि मैं सुषिर वादन सीखना चाहता हूं। मैंने बांसुरी को चुना। पश्चिमी संगीत में भी सुषिर वाद्य बहुत हैं लेकिन बांसुरी शास्त्रीय संगीत का प्राचीन वाद्य यंत्र है, इसलिए मैंने इसे चुना। जब मैं बांसुरी का वादन करता हूं तो ये सांस से होता है और मैं उस समय खुद को अपनी बांसुरी से अलग नहीं देख पाता।
सवाल: आप पिछले कितने सालों से बांसुरी वादन कर रहे हैं और आपका आज का अनुभव कैसा था?
जवाब: मैं पिछले 10 सालों से शास्त्रीय संगीत में बांसुरी वादन कर रहा हूं। तानसेन समारोह में ये मेरी पहली प्रस्तुति थी। मेरा अनुभव बहुत ही सुंदर रहा। लोगों ने इतने प्यार से सुना जिससे मैं बहुत ही सहज होकर प्रस्तुति दे पाया। जब मैंने तानसेन के बारे में पढ़ा तो मैं इस साल अगस्त में आकर उनकी मजार पर भी आया था औऱ अब दिसंबर में यहां प्रस्तुति देना किसी सपने से कम नहीं था।
सवाल: आप विंसेजा संगीत विद्यालय में बांसुरी विख्याता हैं। क्या आपको लगता है कि संगीत की तालीम कभी पूरी होती है?
जवाब: मैं सीखना कभी नहीं छोड़ सकता। अभी भी सिखाने और प्रस्तुतियां देने के बीच सीखने को जरूर समय देता हूं।
सवाल: आपने किसी और संस्कृति से होने के बावजूद शास्त्रीय संगीत को चुना। लेकिन भारत के युवाओं में रुझान कम है। क्या बदलाव होने चाहिए?
जवाब: स्लो डाऊन एव्रीथिंग सब कुछ बहुत तेज भाग रहा है। शास्त्रीय संगीत सब्र का विषय है। लोगों को चाहिए कि रुकें और संगीत की ताकत और उसकी खूबसूरती को महसूस करें। पश्चिम में भी युवा क्लासिकल को बोरिंग समझते हैं लेकिन दुनिया को थोड़ा ठहर कर संगीत को समझने की कोशिश ना करके उसे महसूस करने की जरूरत है।
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Published on:
18 Dec 2025 05:53 pm


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