AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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प्रभाकर मिश्रा@जबलपुर। सिंघाड़ा की आवक शुरू हो गई है। दिवाली पर मैया लक्ष्मी को अर्पित करने के साथ ही वृहद स्तर पर सिंघाड़ा की तुड़ाई शुरू हो जाती है। जबलपुर अंचल के तालाब, पोखरों में उपजा सिंघाड़ा दिल्ली, मुम्बई, गुजरात, राजस्थान समेत कई अन्य राज्यों के लोगों के किचिन का स्वाद बढ़ाता है। स्वादिष्ट व गुणवत्ता युक्त होने के कारण यहां उपजे सिंघाड़ा की खासी मांग रहती है। सिंघाड़ा के बड़े उत्पादकों में शामिल जबलपुर में दो हजार एकड़ में सिंघाड़े का उत्पादन होता है। दो हजार से ज्यादा किसान तालाब, पोखरों में सिंघाड़ा की खेती करते हैं। जानकारों के अनुसार सिंघाड़ा की फसल में लागत से दोगुना आमदनी होती है।
प्रति एकड़ तीस हजार रुपए लागत आती है। जबकि साठ हजार रुपए आमदनी प्रति एकड़ होती है। जिले में सिंघाड़े का उत्पादन पांच हजार क्विंटल होता है। एक एकड़ में चालीस क्विंटल उत्पादन होता है। सूखे सिंघाड़ा का प्रति एकड़ में आठ क्विंटल तक उत्पादन होता है। कच्चा सिंघाड़ा पैंतीस हजार रुपए तक कीमत देता है। जबकि सूखा सिंघाड़ा तेरह हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिकता है। सिंघाड़ा में इस बार लाल रोग लगने के कारण फसल प्रभावित हुई है। उद्यानिकी विशेषज्ञों के अनुसार वैज्ञानिकों की सलाह पर सिंघाड़ा के किसानों ने आवश्यक उपचार किया था। इसके बाद भी उत्पादन पर इस बार असर पड़ सकता है। सिहोरा की सिंघाड़ा मंडी प्रदेश की प्रमुख मंडियों में से एक है। इस मंडी से सिंघाड़ा राजस्थान, दिल्ली, गुजरात मुम्बई, महाराष्ट्र के भुसावल, जलगांव की मंडियों में भी जाता है। सिहोरा मंडी में बिकने के लिए पन्ना, दमोह, कटनी खजुराहो से भी सिंघाड़ा आता है। यहां सिंघाड़े की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है, ऐसे में जबलपुर के सिंघाड़े को ब्रांड भी बनाया जा सकता है।
सिंघाड़ा की आवक शुरू हो गई है, दिवाली पूजन में सिंघाड़ा चढ़ाकर प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके बाद वृहद स्तर पर तुड़ाई शुरू हो जाती है। इस साल सिंघाड़ा की फसल में शुरुआत में लाल रोग लगने का असर पड़ा था, जिसका वैज्ञानिकों की सलाह पर किसानों ने उपचार किया है, लेकिन कुछ प्रतिशत उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
एसके मिश्रा, उद्यानिका विशेषज्ञ
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Published on:
20 Oct 2022 12:50 pm


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