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बस्तर के स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों के ऑनलाइन अटेंडेंस का सिस्टम हो गया ध्वस्त, जानें कैसे

ऑनलाइन मॉनिटरिंग के लिए खरीदे गए थे 11662 टैबलेट

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बस्तर के स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों के ऑनलाइन अटेंडेंस का सिस्टम हो गया ध्वस्त, जानें कैसे
शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम लागू किया गया था, शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम लागू किया गया था, शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम लागू किया गया था

जगदलपुर। बस्तर संभाग के सभी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम लागू किया गया था। समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में संचालित योजनाओं समेत शिक्षकों और बच्चों की ऑनलाइन मॉनिटरिंग के लिए सत्र 2017-18 में 19 करोड़ रुपए खर्च कर 11662 टैबलेट बांटे गए, लेकिन अब सारे टैबलेट कबाड़ हो चुके हैं। इनका उपयोग अब बंद हो चुका है। स्कूलों में ऑनलाइन मॉनिटरिंग का सिस्टम धवस्त हो चुका है। पत्रिका को अपनी पड़ताल में पता चला कि शिक्षकों व छात्रों की उपस्थिति अब रजस्टिर के भरोसे है क्योंकि स्कूल के टैबलेट तो वर्षों पहले ही खराब हो चुके हैं इसलिए ये अलमारी में बंद हैं। मिली जानकारी के अनुसार जिस कॉसमो कंपनी को टैबलेट बांटने का टेंडर दिया गया था उन्हें प्रदेश स्तर पर ५० करोड़ रूपए की राशि अतिरिक्त दी गई थी ताकि इन पैसों से टैबलेट का मेंटेनेंस किया जा सके। जानकारों का कहना है कि कंपनी को ३ साल के लिए इन टैबलेट का मेंटेनेंस सौंपा गया था। जबकि सच्चाई यह है कि टैबलेट २जी थे जिन्होंने काम शुरू होने से पहले ही दम तोडऩा शुरू कर दिया था। इनमें से ज्यादातर टैबलेट ३-४ महीने चलने के बाद ही दम तोडऩे लगे थे। जबकि अंदरूनी इलाकों के स्कूलों में नेटवर्क की समस्या के चलते इनका उपयोग नहीं हो सका।

स्कूलों की अलमारियों में बंद हैं टैबलेट
संभाग के सभी स्कूलों में जैसे प्राइमरी में एक, मीडिल में दो से तीन, हाई स्कूल में भी दो से तीन और हायर सेकेंडरी में तीन से चार टैबलेट दिए गए थे। अनुपयोगी हो चुके ये टैबलेट या तो स्कूलों में पड़े धूल फांक रहे हैं या फिर खराब हो चुके हैं। ज्यादातर स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि टैबलेट की बैटरी खराब है। पत्रिका को अपनी पड़ताल में पता चला कि यह टैबलेट जब दिए गए थे तब कारगार साबित हो रहे थे। इससे शिक्षकों को ऑनलाइन अटेंडेंस लगानी होती थी। नहीं लगाने पर वेतन कट जाता था, लेकिन अब उपस्थिति रजिस्टर में होती है।

इसलिए स्कूलों में दिए गए थे टैबलेट
टैबलेट के जरिए बच्चों की अटेंडेंस और अन्य जानकारी भी मुख्यालय में भेजी जाती थी, लेकिन अब इसी काम के लिए शिक्षकों को जिला मुख्यालय या ब्लॉक मुख्यालय स्थित डीईओ और बीईओ कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं, या फिर शिक्षक अपने फोन के जरिए जानकारी भेजते हैं।

शिक्षक टैबलेट में ही इन और आउट करते थे
स्कूलों में जब टैबलेट की व्यवस्था लागू की गई थी तो किसी कॉरपोरेट दफ्तर की तरह ही शिक्षकों को आने और जाने पर टैबलेट में इन और आउट दर्ज करना होता था। उनके अटेंडेंस की पूरी मॉनिटरिंग जीपीएस सिस्टम से ऑनलाइन होती थी। अगर कोई शिक्षक स्कूल नहीं आता था तो उसका वेतन ऑनलाइन एंट्री के आधार पर कट जाता था।

नेटवर्क और तकनीकी खराबी बनी बड़ी समस्या, मेंटेनेंस भी नहीं
पड़ताल करने पर यह जानकारी सामने आई कि टैबलेट में सबसे बड़ी समस्या तकनीकी खराबी और नेटवर्क की थी। मेंटेनेंस में खानापूर्ति होने के कारण ही ये पूरी तरह से खराब हो गए। १०० करोड़ के टैबलेट जो स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने खर्च किए गए थे। आखिर इसे नहीं बचा पाना जिम्मेदारों की जिम्मेदारी पर सवालियां निशान खड़ा करते हैं।

अभी तो रजिस्टर पर भी अटेंटेंस दर्ज कर रहे
- अभी हम अपने जिले में तो रजिस्टर से ही बच्चों और शिक्षकों की अटेंडेंस दर्ज कर रहे हैं। पूर्व में समग्र शिक्षा अभियान के तहत टैबलेट दिए गए थे। अभी उनका उपयोग इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि वे खराब हो चुके हैं।
भारती प्रधान, डीईओ बस्तर

संभाग के इन जिलों को इतने टैबलेट दिए गए थे

बस्तर: 2870
दंतेवाड़ा: 1648
बीजापुर: 1220
कोण्डागांव: 1938
नारायणपुर: 1114
सुकमा: 1012
कांकेर: 1860
कुल: 11662

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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