AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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डॉ. संदीप उपाध्याय@रायपुर.बस्तर की महिलाओं ने वहां की जड़ी बूटियों से एक ऐसी हर्बल ग्रीन टी तैयार की है, जो न सिर्फ ब्लड प्रेशर, सुगर व नसों के ब्लॉकेज की बीमारी को दूर करती है, बल्कि इस समय की सबसे खरतरनाक बीमारी कोरोना वायरस को खत्म करने की भी ताकत रखती है। यह चाय 12 रोगों के लिए चाय रामबाण औषधि है। मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप के साथ जुड़कर बस्तर की इन महिलाओं का समूह इस ग्रीन टी को बनाने में अपना अहम योगदान दे रही हैं। ग्रुप के डायरेक्टर डॉ. राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि इस हर्बल चाय को तैयार करने में स्टीविया, अदरक, कालीमिर्च, अर्जुन फल, वेंको रोसिया और तुलसी जैसी चीजों का इस्तेमाल किया गया है। इसे पीने से किसी प्रकार का कोई साइडइफेक्ट नहीं है। इस चाय को यदि दिन में दो से तीन बार पिया जाए तो यह आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। इससे जल्द शरीर में कोरोना, वायरल या अन्य प्रकार के वायरस असर नहीं कर पाते हैं।
विदेशों में काफी है डिमांड
बस्तर में पैदा हो रही इस हर्बल चाय की खुशबू सात समंदर पार तक जा पहुंची है। इस हर्बल टी की डिमांड हॉलैंड और जर्मनी आदि देशों काफी है। इस चाय की खास बात यही है कि इसका उत्पादन बस्तर की आदिवासी महिलाओं के समूह मां दंतेश्वरी हर्बल प्रोडक्ट महिला समूह द्वारा किया जा रहा है और यह डब्ल्यूएचओ से भी प्रमाणित है।
महिलाओं की आर्थिक स्थिति में हुआ सुधार
इस चाय की खेती ने बस्तर में सैकड़ों आदिवासी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है। कोंडागांव जिले के ग्राम चिखलकुटी और आसपास के गांवों की करीब 400 से अधिक आदिवासी महिलाएं इस समूह से जुड़ी हैं। यह महिलाएं खुद ही दालचीनी, काली मिर्च, और स्टीविया जैसी औषधीय चीजों का उत्पादन करती है और इसी से हर्बल टी प्रोडक्ट तैयार किया जाता है। इससे इन महिलाओं की न सिफ आमदनी बढ़ी है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।
इस तरह हुई शुरूआत
मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की अध्यक्ष दसमती नेताम ने बताया कि विकोंरोजिया की जड़ें, स्टीविया, लेमन ग्रास और काली मिर्च से बने इस प्रोडक्टर को तैयार करने में काफी रिसर्च किया गया। डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से इसे बनाने में मार्गदर्शन लिया। उन्होंने चारों जड़ी बूटियों को सही अनुपात में मिलाकर हर्बल चाय तैयार किया। विकोंरोजिया मधुमेह और कैंसर को खत्म करने में कारगर है। इसके लिए पुणे स्थित टिश्यू कल्चर लैब से प्रशिक्षण प्राप्त कर एक पौधे से कई पौधे तैयार करने का हुनर सीखा गया, जिससे इसका प्रोडक्शन आगे लगातार किया जाता रहे।
दूध और चीनी की नहीं जरूरत
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि इस हर्बल चाय की खासियत यह है कि इसे बनाने में दूध और शक्कर की जरूरत नहीं पड़ती। स्टीविया मिले होने से इसमें जीरो कैलोरी के साथ मिठास मिल जाती है और लेमन ग्रास से खुशबू। गरम पानी में एक पैकेट हर्बल चाय डालते ही सुगंधित मीठी चाय तैयार हो जाती है। एक कप चाय की कीमत डेढ़ रुपए पड़ती है, यानी यह सस्ती और सेहतमंद दोनों है।
डब्ल्यूएचओ से प्रमाणित
इस हर्बल चाय को वर्ष 2017-18 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी प्रमाणित किया है। यह सर्दी, खांसी, बुखार, मधुमेह, सिरदर्द सहित 12 रोगों के लिए रामबाण औषधि है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऑनलाइन वेबसाइट वंडरब्रूमडॉटकॉम के माध्यम से भी आदिवासी महिलाओं का यह समूह इस चाय की बिक्री करता है। इसकी कीमत प्रति यूरो के हिसाब से निर्धारित है। विदेश में इसके करीब 20 हजार से अधिक ग्राहक बन चुके हैं।
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Published on:
18 Mar 2020 02:09 pm


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