AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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रायपुर. कुछ लोगों में स्वदेश प्रेम इतना होता है कि वे विदेश नौकरी जैसे अच्छे मौके और सुविधा संपन्न जिंदगी को छोड़ देते हैं। इन्हीं में एक हैं ब्रिटेन के ससेक्स यूनिवर्सिटी से डेवलपमेंटल स्टडीज में पोस्ट ग्रेजुएट कर चुकी महिलावादी एक्टिविस्ट अनु वर्मा। फोर्ड फाउंडेशन की फेलो रही अनु लगातार आदिवासी और महिलाओं के मुद्दे पर काम कर रही हैं। उनके पास विदेश में बसने के कई मौके थे पर उसका मोह छोड़ अनु वर्मा ने छत्तीसगढ़ को अपनी कार्य स्थली बनाया।
गरियाबंद में शराबबंदी हेतु महिलाओं की गोलबंदी, पिथौरा में महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और फिर जांजगीर-चांपा से लेकर महिला शिक्षा की बात हो। अनु ने महिलाओं के बीच शिद्दत के साथ काम किया है।
बस्तर से रायपुर तक किया काम
वर्ष 2014-17 तक छत्तीसगढ़ में ऑक्सफेम इंडिया में प्रोग्राम ऑफिसर का कार्य करने वाली अनु वर्मा जेंडर जस्टिस के मुद्दें को विभिन्न मंच पर सशक्त तरीके से उठाती रही हैं। चाहे पुलिस को महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना हो या फिर युवाओं में महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूक करना या फिर महिला स्वास्थ्य एवं शिक्षा की बात हो अनु ने बस्तर से रायपुर तक अभियान चलाया।
छत्तीसगढ़ संयुक्त महिला मंच बनाया
छत्तीसगढ़ में महिलाओं के आवाज को एक सशक्त आवाज बनाने के लिए छत्तीसगढ़ संयुक्त महिला मंच की स्थापना की और उसके माध्यम से महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया फलस्वरूप महिलाएं सशक्त रूप में गोलबंद हो गई। इसके अलावा छत्तीसगढ़ संयुक्त महिला मंच के नेतृत्व में महिलाओं ने अपने अधिकार के लिए एक महिला नीति का ड्राफ्ट सरकार को दिया था। इससे महिलाओं को अपने अधिकारों के मुद्दें उठाने में काफी मदद मिली।अनु इन दिनों साउथ एशिया पेस्टोरल एलायंस की अध्यक्ष है और वह आदिवासी मालधारी के हित संवर्धन, गाय और चारगाहों को बचाने के लिए कार्य कर रही हैं। अपने कार्य के संबंध में अनु बताती है कि महिलाएं अगर सबल होंगी उन्हें समानता मिलेगी तो समाज की अधिकांश बुराई अपने आप खत्म हो जाएगी।
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Published on:
08 Mar 2020 12:06 am


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