AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Weather Updates: जहां एक ओर सर्दियों में ठंड से राहत की उम्मीद की जाती है, वहीं लखनऊ की बीकेटी (बख्शी का तालाब) विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए यह मौसम राहत नहीं, बल्कि सांसों पर भारी संकट लेकर आया है। न खेतों में पराली जल रही है, न ही दीवाली के पटाखों का धुआं हवा में घुला है, इसके बावजूद दिसंबर महीने में ही बीकेटी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच चुकी है। यह स्थिति न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि बेहद चिंताजनक भी।
बीकेटी विधानसभा क्षेत्र के पहाड़पुर, कठवारा, मोहम्मदपुर, सहपुरवा सहित दर्जनों गांवों में बीते कुछ वर्षों से वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही है, वैसे-वैसे हवा में घुला जहर लोगों की सेहत पर सीधा हमला कर रहा है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में संचालित कुछ फैक्ट्रियां,खासतौर पर कठवारा गांव के किनारे स्थित नूडल्स फैक्ट्री दिन-रात काला, जहरीला धुआं उगल रही हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह धुआं न केवल हवा को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि घरों के भीतर तक फैलकर लोगों को बीमार कर रहा है। हालात यह हैं कि गांव के लगभग 80 प्रतिशत से अधिक लोग खांसी, सांस में जलन, थकान, आंखों में जलन और सीने में भारीपन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

वायु प्रदूषण का सबसे गंभीर असर बच्चों और बुजुर्गों पर देखा जा रहा है। बच्चों में एलर्जी, अस्थमा, बार-बार सर्दी-खांसी और सांस की तकलीफ तेजी से बढ़ रही है। वहीं बुजुर्गों को सांस लेने में कठिनाई, हृदय संबंधी समस्याएं और कमजोरी का सामना करना पड़ रहा है। कई परिवारों का कहना है कि रात के समय खिड़कियां-दरवाजे बंद रखने के बावजूद धुएं की गंध घरों में भर जाती है।
सबसे चिंताजनक स्थिति गर्भवती महिलाओं की है। स्थानीय महिलाओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषित हवा के कारण गर्भवती महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें गर्भपात, समय से पहले प्रसव, नवजात शिशु का कमजोर होना और यहां तक कि गर्भ में ही शिशु की मृत्यु जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान जहरीली हवा के संपर्क में रहने से भ्रूण के विकास पर बुरा असर पड़ता है। यह समस्या आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बनती जा रही है।
चिकित्सकों के अनुसार वायु प्रदूषण का सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से लंग कैंसर, निमोनिया, दमा, फेफड़ों में सूजन और जलन जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले बुढ़ापा, त्वचा पर झुर्रियां, आंखों में जलन और सिरदर्द जैसी समस्याएं भी आम होती जा रही हैं।

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने वायु प्रदूषण को लेकर दर्जनभर से अधिक बार लिखित शिकायतें संबंधित विभागों और अधिकारियों को दी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। फैक्ट्रियों का संचालन उसी तरह जारी है और प्रदूषण का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक कोई बड़ी घटना नहीं होती, तब तक जिम्मेदार अधिकारी इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि यह प्रदूषण अब धीरे-धीरे जानलेवा साबित हो रहा है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं का मानना है कि बीकेटी विधानसभा क्षेत्र के यह गांव अब साल भर चलने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का केंद्र बनते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से न केवल श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं, बल्कि स्ट्रोक, हृदय रोग, अल्जाइमर जैसे तंत्रिका विकार और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भी पड़ रहा है। अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चुनौती सिर्फ प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने की नहीं है, बल्कि इससे प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करने की भी है। अत्यधिक प्रदूषित इलाकों में रहने वाले लोग भले ही लंबे समय तक जीवित रह लें, लेकिन उन्हें ऐसी दीर्घकालिक बीमारियां हो जाती हैं जो उनकी उत्पादकता, जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक योगदान को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। यह स्थिति देश और प्रदेश के विकास के लिए भी खतरे की घंटी है।
इस मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लखनऊ के क्षेत्रीय अधिकारी जेपी मौर्य ने कहा kiमामला संज्ञान में आया है। मौके पर टीम भेजकर जांच करवाई जाएगी। यदि जांच में कोई फैक्ट्री दोषी पाई जाती है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे बयान पहले भी दिए जा चुके हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए, उत्सर्जन मानकों की सख्त जांच हो और क्षेत्र में निरंतर वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली स्थापित की जाए। साथ ही प्रभावित लोगों के लिए विशेष स्वास्थ्य जांच शिविर और उपचार की व्यवस्था की जाए।
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Published on:
21 Dec 2025 08:15 am


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