AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर संसद में बड़ी जानकारी दी है। उन्होंने संसद को बताया कि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लेकर देश की 32 पार्टियां 'एक देश-एक चुनाव' के पक्ष में हैं। जबकि, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समते 15 राजनीतिक दल इसके विरोध में थे।

पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सौंपी थी रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर विचार के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने 14 मार्च 2024 को 18,626 पन्नों की एक रिपोर्ट वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 'एक देश, एक चुनाव' को लेकर कमेटी ने 62 पार्टियों से संपर्क किया था।
रिपोर्ट के अनुसार, 62 में से 47 राजनीतिक दलों ने ही जवाब दिया था, जिसमें 32 पार्टियों ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का समर्थन किया। इसके अलावा 15 दलों ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' नीति का विरोध किया और 15 पार्टियों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

BJP समेत 32 पार्टियों ने किया था समर्थन
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बताया कि राष्ट्रपति द्वारा दी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा समेत 15 पार्टियों ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव का विरोध किया था। वहीं, भाजपा समेत 32 पार्टियों ने इसका समर्थन किया था। हाईकोर्ट के तीन रिटायर्ड जजों ने भी इस प्रस्ताव पर अपनी असहमति जताई। विरोध करने वाले जजों में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह, कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गिरीश चंद्र गुप्ता और मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी शामिल हैं। हालांकि, हाईकोर्ट के 9 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था।

वन नेशन-वन इलेक्शन के लागू होने से ये होंगे फायदे
बता दें कि वन नेशन-वन इलेक्शन (एक देश, एक चुनाव) एक प्रस्तावित चुनावी प्रणाली है। इसमें देश में एक ही समय पर सभी चुनाव आयोजित किए जाएंगे। इसका मतलब है कि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ होंगे। सरकार का मानना है कि इस प्रणाली के समर्थकों का मानना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया में सुधार होने के साथ-साथ संसाधनों की भी बचत होगी। इसके अलावा भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी। हालांकि, इसके विरोधी इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हैं, उनका कहना है कि इससे क्षेत्रीय दलों की आवाज दब जाएगी। चुनावी प्रक्रिया जटिल हो जाएगी और मतदाताओं की पसंद सीमित हो जाएगी।
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Published on:
08 Aug 2024 03:26 pm


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