AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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कहते हैं ना सच को ज्यादा दिनों तक छुपाए नहीं जा सकता। यह कैसा ही मामला उत्तर प्रदेश से सामने आया है। जी हां डीएनए टेस्ट से खुलासा हुआ है कि जो आदमी 3 महीने से जेल की सजा काट रहा है वह बेकसूर है। आइये जानते हैं पूरा मामला क्या है। गोरखपुर में एक सनसनीखेज मामले में डीएनए टेस्ट ने 55 वर्षीय राम केवल की जिंदगी बचा ली। अपने ही भतीजे द्वारा फर्जी व्यक्ति बताकर पैतृक जमीन बेचने का आरोप लगाने के बाद राम केवल को तीन महीने जेल में बिताने पड़े। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर डीएनए टेस्ट से साबित हुआ कि वे रक्त संबंधी हैं, जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
मामला चितौना गांव का है, जहां राम केवल की भतीजा राम सरण ने शिकायत की कि उनका चाचा वर्षों पहले मर चुका है और कोई फर्जी व्यक्ति उनके नाम पर पैतृक जमीन का हिस्सा बेच रहा है। राम सरण ने दावा किया कि राम केवल 50 वर्षों से लापता थे, इसलिए उन्हें मृत मान लिया गया। इस शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और सितंबर में राम केवल के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी। राम केवल को 20 सितंबर को गोरखपुर जिला जेल भेजा गया।
राम केवल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि पहचान की गलती गंभीर है, क्योंकि शिकायतकर्ता खुद उनका भतीजा है। पुलिस जांच से पता चला कि राम केवल की मां का दूसरा पति रामकिशुन था। कोर्ट ने लखनऊ के फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी निदेशक को डीएनए प्रोफाइलिंग विशेषज्ञ भेजने का आदेश दिया। टेस्ट में साबित हुआ कि राम केवल और राम सरण रक्त संबंधी हैं।
कोर्ट ने कहा, 'हमने एफआईआर या मामले की आरोपों की सत्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की है। हम सिर्फ इतना कहते हैं कि याचिकाकर्ता वह फर्जी व्यक्ति नहीं है, जिसका एफआईआर में जिक्र है। वह पांचवें प्रतिवादी (राम सरण) का रिश्तेदार है।' कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए राम केवल को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। जेलर अरुण कुमार ने बताया कि राम केवल 17 दिसंबर को रिहा हुए।
गोरखपुर पुलिस के एडिशनल एसपी अभिनव त्यागी ने कहा कि कोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है और आगे कार्रवाई होगी। यह मामला पहचान की गलती से निर्दोष की गिरफ्तारी और न्यायिक हस्तक्षेप की मिसाल है।
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Published on:
20 Dec 2025 09:53 pm


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