AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Aravalli : पूरे देश में अरावली पर्वत को बचाने के लिए जंग छिड़ी हुई है, हर तरफ़ से इस पुरानी धरोहर को बचाने के लिए आवाज़ बुलंद होने लगी है। वहीं, एनसीआर के फरीदाबाद में भी लोगों को अरावली की चिंता सता रही है। दरअसल, इस जिले में अगर पहले खनन की मंज़ूरी नहीं दी गई होती तो शायद यहां की पहाड़ियां आज भी 100 मीटर से ऊंची होतीं। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले चार दशकों में हुए लगातार खनन की वजह से पहाड़ियों की ऊंचाई घटती चली गई। आपको बता दें कि फरीदाबाद जिले में अरावली का क्षेत्रफल करीब 10 हज़ार हेक्टेयर है, जो लगभग 20 गांवों में फैला हुआ है।
वहीं, कुछ पर्यावरण प्रेमी और खनन से जुड़े लोग कहते हैं कि फरीदाबाद में खनन की शुरुआत अस्सी के दशक में हुई थी। उस समय अरावली क्षेत्र में पत्थर के साथ-साथ सिलिका सैंड की खदानें भी थीं। पत्थर को दिल्ली के लाल कुआं क्रेशर ज़ोन में भेजा जाता था, जबकि सिलिका सैंड बदरपुर के स्टॉक तक सप्लाई होती थी। उस दौर में लाल कुआं इलाका दिल्ली-एनसीआर का बड़ा औद्योगिक क्षेत्र माना जाता था। 1970 और 1980 के दशक में यहां बड़ी संख्या में स्टोन क्रेशर मशीनें और पत्थर तोड़ने के प्लांट लगाए गए। खनन से जुड़े रहे देवेंद्र बताते हैं कि सरकार की मंज़ूरी मिलने के बाद कारोबारियों ने पहले अरावली की पहाड़ियों को पूरी तरह काट दिया और फिर करीब 500 फुट गहरी खदानें बना दीं। आज ये खदानें झीलों में बदल चुकी हैं। दावा है कि उस समय इस इलाके में पांच हजार से ज्यादा खदानें थीं।
अरावली पर्वत को तोड़ने या खनन को लेकर कोई सीधा और स्पष्ट नियम नहीं है। हाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद एक विवादित परिभाषा सामने आई है, जिसके अनुसार अब 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा नहीं माना जा रहा। इससे बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति मिलने का रास्ता खुल सकता है। प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण, बहाली और सुधार के लिए काम करने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि यह परिभाषा पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक है और इससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है। उनका मानना है कि इस बदलाव से अरावली के संरक्षण पर असर पड़ेगा और अवैध खनन को बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए वे इस नई परिभाषा को हटाने की मांग कर रहे हैं।
20 नवंबर 2025 को जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदली, तब से पूरे उत्तर भारत में इसका विरोध किया जा रहा है। अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है और यह राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक फैली हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने अब यह तय किया है कि केवल उस जमीन का हिस्सा अरावली माना जाएगा, जो आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर (328 फीट) ऊंची हो। इसके अलावा, अगर दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे के अंदर हों और उनके बीच जमीन भी मौजूद हो तो उन्हें अरावली श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर उत्तर भारत से अरावली को नष्ट कर दिया जाता है, तो ज़मीन बंजर हो जाएगी और जल संकट बढ़ने की संभावना ज्यादा होगी। क्योंकि अरावली की पहाड़ियां बारिश का पानी जमीन में सोखने में मदद करती हैं। अगर ये नहीं रहेंगी, तो पानी जल्दी बह जाएगा और जलस्तर नीचे गिर जाएगा, जिससे पेयजल और खेती दोनों प्रभावित होंगे।
राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक फैली अरावली पर्वत के न होने से हवा के तापमान में वृद्धि होगी। अरावली को काटने के बाद गर्म हवा, धूल और प्रदूषण बढ़ेगा। अरावली जंगल, जानवर और पक्षियों का घर हैं। पहाड़ियों के नष्ट होने से वन्य जीवन और प्राकृतिक संतुलन प्रभावित होगा।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Updated on:
23 Dec 2025 01:53 pm
Published on:
23 Dec 2025 01:52 pm


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