AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Delhi High Court: दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट मामले के बाद देश में सुरक्षा व्यवस्था हाई अलर्ट पर है। इसके साथ ही इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई है। इसके बावजूद बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई। इसमें मांग की गई कि इस केस की टाइम लिमिट तय की जाए और रोजाना इसकी सुनवाई की जाए। याचिकाकर्ता की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय भड़क उठे। उन्होंने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि अभी यह केस शुरू भी नहीं हुआ है। ऐसे में निगरानी या सुनवाई की लिमिट तय करने का सवाल ही नहीं उठता है। कोर्ट ने इस याचिका को समय से पहले बताया। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने भी इस याचिका के औचित्य पर अपनी असहमति जताई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली। यह घटना दिल्ली हाईकोर्ट में चर्चा का विषय बन गई।
दिल्ली हाई कोर्ट ने PIL पर कड़ा रुख दिखाते हुए साफ कहा कि जब ट्रायल शुरू ही नहीं हुआ है तो अभी निगरानी या टाइम लिमिट तय करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने सुनवाई के दौरान यह साफ कहा कि अदालत तभी निगरानी करती है, जब कोई मामला लंबे समय से लटका हुआ हो या अनावश्यक देरी हो रही हो। बेंच ने याचिकाकर्ता को संबोधित करते हुए कहा "इस केस का ट्रायल अभी शुरू भी नहीं हुआ है और आप चाहते हैं कि हम इसकी निगरानी करें? निगरानी तब होती है जब केस सालों से लंबित हो। ट्रायल से पहले ऐसा आदेश कैसे दिया जा सकता है?" साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाए कि किस मौलिक अधिकार का हनन हुआ है और आखिर क्यों हाईकोर्ट का हस्तक्षेप तुरंत जरूरी है?
दरअसल, यह जनहित याचिका आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक पंकज पुष्कर ने दायर की थी। उनका कहना था कि लाल किला विस्फोट देश के सम्मान और संप्रभुता के सिम्बल पर हमला है। इसलिए इस मामले की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए। याचिका में मांग की गई थी कि इस केस का ट्रायल प्रतिदिन चलाया जाए और पूरी सुनवाई छह महीने में खत्म कर दी जाए। इसके अलावा ट्रायल कोर्ट को प्रोग्रेस की मंथली रिपोर्ट किसी ज्यूडीशियल बॉडी को सौंपने की बात भी कही गई थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि पीड़ित परिवारों को ‘सत्य का अधिकार’ मिलना जरूरी है और इसीलिए इस मामले की निगरानी अदालत की देखरेख में होनी चाहिए। याचिकाकर्ता की यह भी दलील थी कि इससे पहले भी कई आतंकी हमले हुए हैं, जिनके फैसले आने में सालों लग गए। इस वजह से इस मामले में पहले से ही अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए। इस कदम से पीड़ित परिवारों के बीच विश्वास पैदा होगा और केस के फैसले में भी देरी नहीं होगी।
केंद्र सरकार की तरफ से मौजूद अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने इस याचिका को भ्रामक बताया और कहा कि अभी ऐसी किसी भी दिशा-निर्देश की जरूरत नहीं है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस मामले की जांच अब दिल्ली पुलिस नहीं कर रही है। अब इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) कर रही है। इसलिए जांच पहले से ही कड़ी निगरानी के साथ चल रही है। उन्होंने यह भी क्लियर किया कि इस केस में ट्रायल UAPA के तहत चलेगा, जिसमें पहले से ही सख्त प्रावधान हैं। ऐसे में इस शुरुआती चरण में तेजी से ट्रायल चलाने या निगरानी के आदेश की कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली। यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में चर्चा का विषय बन गया।
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Updated on:
03 Dec 2025 06:20 pm
Published on:
03 Dec 2025 05:58 pm


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