AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें एक लड़की के दूसरे समुदाय में शादी कर लेने पर उसके पिता ने उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया। सालों तक यह मामला शांत रहने के बाद जब लड़की ने अपने हक की मांग करने लगी तो ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट से उसे राहत मिली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद इस केस ने अलग मोड़ ले लिया है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने की। कोर्ट ने साफ कहा कि वसीयत लिखने वाले की मर्जी को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि किसी इंसान की लिखी हुई आखिरी विरासत को बदला नहीं जा सकता है, चाहे उसमें किसी को बेदखल ही क्यों नहीं कर दिया गया हो। अदालत में यह भी कहा गया कि वसीयत के गवाह की गवाही के बाद यह साबित हो जाता है कि वसीयत सही तरीके से लिखी गई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति के बंटवारे में बराबरी या सहानुभूति के सिद्धांत की जगह वसीयत लिखने वाले की अंतिम इच्छा को ही प्राथमिकता दी जाएगी।
यह मामला एन.एस. श्रीधरन की संपत्ति से जुड़ा है। उन्होंने 26 मार्च 1988 को अपनी वसीयत लिखी थी, जिसके अगले ही दिन रजिस्टर भी करा दिया गया था। इस वसीयत में श्रीधरन ने अपनी संपत्ति में आठ बच्चों को हकदार बनाया और अपनी एक बेटी शायला जोसेफ को बाहर रखा। शायला ने समुदाय से बाहर शादी की थी, इसी वजह से पिता ने यह फैसला लिया। उसके बाद साल 1990 में जिन बच्चों को वसीयत का हकदार बनाया था, उन्होंने अपनी बहन शायला जोसेफ के संपत्ति में हस्तक्षेप रोकने के लिए केस दायर किया। उस समय शायला ने इस केस का विरोध नहीं किया था, जिस वजह से अदालत ने एकतरफा फैसला सुना दिया था। इसके बाद साल 2011 में शायला जोसेफ अदालत पहुंची और अपने पिता एनएस श्रीधरन की संपत्ति में अपने हिस्से की मांग की। इस पर बाकी भाई-बहनों ने साल 1988 की वसीयत का हवाला दिया। ट्रायल कोर्ट ने बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत का कहना था कि वसीयत के दोनों गवाहों में से एक ही गवाह जिंदा है और उसने सिर्फ अपने और पिता के हस्ताक्षर की पुष्टि की है, जिससे वसीयत पर सवाल खड़े होते हैं।
कोर्ट में शायला जोसेफ के भाई-बहनों का कहना था कि उनके पिता की वसीयत पूरी तरह कानून के अनुसार लिखी गई है। साथ ही वसीयत पर जिनके हस्ताक्षर थे, उसने खुद भी उस पर गवाही दी है। वहीं दूसरी तरफ शायला का कहना था कि गवाह की बातों में फर्क नजर आ रहा है। साथ ही कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वसीयत से जुड़ी कानूनी शर्तें पूरी नहीं की गई हैं, इसलिए उन्हें संपत्ति का 1/9वें हिस्सा मिलना चाहिए।
जस्टिस चंद्रन ने कहा कि साबित हो चुकी वसीयत में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। शायला जोसेफ का अपने पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। इसी के साथ उन्होंने हाईकोर्ट और ट्रायलकोर्ट के फैसलों को रद किया। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हम वसीयत लिखने वाले की जगह खुद को नहीं रख सकते हैं और न ही अपने विचार उन पर थोप सकते हैं। अंत में कोर्ट ने शायला द्वारा दायर मुकदमा खारिज कर दिया और भाई-बहनों की अपील स्वीकार कर ली।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

क्या आपको लगता है कि यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा?
संबंधित विषय:
Updated on:
19 Dec 2025 03:32 pm
Published on:
19 Dec 2025 03:31 pm


यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।
हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है
दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।