AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Additional Sessions Court_ अपर सत्र न्यायालय ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए एमबीबीएस की डुप्लीकेट मार्कशीट, डिग्री और अन्य प्रमाण पत्र हासिल करने के मामले में अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने प्रतीक्षा दायमा और मोहम्मद शफीक को दोषी ठहराते हुए 3-3 साल की सजा सुनवाई है। गवाही में फरियादी बयान से मुकर गया था, लेकिन दस्तावेजों के आधार पर अपराध साबित हुआ।
शासकीय अधिवक्ता एमपी बरुआ ने बताया कि सतीश बोहरे की भांजी प्रतीक्षा शर्मा ने 2013 से 2018 के बीच जीआरएमसी से एमबीबीएस की डिग्री ली थी। प्रतीक्षा दायमा ने एक वास्तविक एमबीबीएस छात्रा के नाम व दस्तावेजों का दुरुपयोग करते हुए खुद को उसी के रूप में प्रस्तुत किया। फर्जी हस्ताक्षर और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर मेडिकल कॉलेज और संबंधित संस्थानों में आवेदन देकर डुप्लीकेट मार्कशीट, डिग्री, इंटर्नशिप और अन्य शैक्षणिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने का प्रयास किया गया। मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों को शक हुआ तो सतीश बोहरे से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि भांजी ने दस्तावेज के लिए आवेदन नहीं किया है। मामले की शिकायत झांसी रोड में की और पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध किया गया। विवेचना के दौरान पुलिस ने आरोपियों से संबंधित दस्तावेज, मोबाइल फोन और अन्य सामग्री जब्त की। मेडिकल कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों से रिकॉर्ड मंगवाकर जांच की गई। अभियोजन ने गवाहों के बयान, जब्ती पंचनामे और दस्तावेजी साक्ष्य अदालत में प्रस्तुत किए।
न्यायालय ने साक्ष्यों के विस्तृत परीक्षण के बाद माना कि आरोपियों ने जानबूझकर फर्जी पहचान अपनाकर कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग किया। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के कृत्य न केवल शैक्षणिक व्यवस्था की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि समाज के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करते हैं। अदालत ने दोनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 419, 420, 468, 471 और 120-बी के तहत दोषी पाया।
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Published on:
23 Dec 2025 11:09 am


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