AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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डॉक्टरों का समय पर अस्पताल नहीं पहुंचना सिर्फ मरीजों के लिए नहीं, पूरी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए गंभीर समस्या बना हुआ है। देश के मेडिकल कॉलेज भी शिक्षक डॉक्टरों की लेटलतीफी से जूझ रहे हैं। समस्या के निदान के तौर पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने फेस आधारित प्रमाणीकरण ऐप के जरिए सराहनीय पहल की है। एक मई से सभी मेडिकल कॉलेजों के शिक्षकों और डॉक्टरों की हाजिरी इस ऐप के जरिए दर्ज की जाएगी। डॉक्टरों को सेल्फी के साथ जीपीएस लोकेशन भी देनी होगी। इससे हाजिरी में पारदर्शिता आएगी। यह भी सुनिश्चित होगा कि ड्यूटी के समय शिक्षक और डॉक्टर कॉलेज परिसर में हैं।
मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में डॉक्टरों की हाजिरी को लेकर अब तक ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली हालत रही है। कुछ साल पहले शुरू की गई फ्रिंगरप्रिंट आधारित प्रणाली (बायोमेट्रिक) के बाद भी समस्या जस की तस रही। शिकायतें बढ़ रही थीं कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में डुप्लीकेट फिंगरप्रिंट के जरिए हाजिरी दर्ज कराई जा रही है। फेस आधारित नई तकनीक से ऐसी धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सकेगी। यह शिकायत भी थी कि कुछ मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक ड्यूटी के समय निजी प्रेक्टिस में व्यस्त रहते हैं। इससे कॉलेजों में पढ़ाई पर असर पड़ रहा था। विद्यार्थियों की उपस्थिति भी घट रही थी। एनएमसी ने ड्यूटी के समय डॉक्टरों की निजी प्रेक्टिस पर भी रोक लगा दी है।
यह वाकई अफसोस की बात है कि कुछ डॉक्टरों के निजी स्वार्थों पर ज्यादा ध्यान देने से पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन डॉक्टरों के अस्पतालों में गैर-हाजिर रहने से यह भ्रम फैलता है कि देश में डॉक्टरों की कमी है। हकीकत में ऐसा नहीं है। देश में डॉक्टरों और मरीजों का अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक से बेहतर है। इस मानक के मुताबिक 1,000 मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। देश में 836 मरीजों पर एक डॉक्टर मौजूद है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक 13,86,136 एलोपैथिक डॉक्टर एनएमसी में पंजीकृत हैं। इसके अलावा करीब 5.65 लाख आयुष डॉक्टर भी हैं।
देश के 731 मेडिकल कॉलेजों के हिसाब से डॉक्टरों की संख्या संतोषजनक है। समस्या तब सिर उठाती है, जब इनमें से कुछ डॉक्टर समय पर अस्पताल नहीं पहुंचते या ड्यूटी से गैर-हाजिर रहते हैं। इससे मेडिकल शिक्षा और मरीजों की देखभाल पर प्रतिकूल असर पड़ता है। जब मरीज और विद्यार्थी समय पर पहुंच सकते हैं तो डॉक्टर क्यों नहीं? शिकायतें आम हैं कि मरीजों की भीड़ को ओपीडी में डॉक्टरों का लंबा इंतजार करना पड़ता है। एक तो डॉक्टर देर से आते हैं, फिर मरीजों को देखने का समय सीमित होता है। इससे कई मरीज समय पर इलाज से वंचित रहते हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि हाजिरी के नए ऐप से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। डॉक्टरों में अनुशासन और जवाबदेही बढ़ाने की जरूरत है। ड्यूटी के प्रति लापरवाही किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
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Updated on:
20 Apr 2025 09:35 pm
Published on:
20 Apr 2025 09:33 pm


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