AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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पिछोर। शिवपुरी जिले के पिछोर अनुविभाग में एक ऐसा शासकीय प्राथमिक विद्यालय है, जिसने शिक्षा विभाग में चल रहे गड़बड़-घोटालों को उजागर कर दिया। 14 वर्ष से यह स्कूल एक देवता के चबूतरे पर चल रहा है, जबकि स्कूल भवन में मास्साब ने कब्जा कर लिया। स्कूल के एक कक्ष में शिक्षक की गृहस्थी का सामान रखा है, जबकि अन्य कमरों में बटाईदार की खेती-किसानी का सामान भरा हुआ है। कब्जेधारी शिक्षक का कहना है कि डूब क्षेत्र में आने की वजह से यह स्कूल भवन नीलाम हो गया था, जिसे हमने खरीद लिया।
डूब क्षेत्र में गांव, स्कूल पर किया शिक्षक ने कब्जा
पिछोर जनपद अंतर्गत आने वाला ग्राम करमईकलां का लोटना भी वर्ष 2006 में ङ्क्षसध परियोजना में डूब क्षेत्र में आ गया था। इस स्कूल में दो शिक्षक नीरज भार्गव व संतोष शर्मा पदस्थ हैं। शिक्षक नीरज भार्गव की मानें तो जब करमईकलां गांव विस्थापित किया गया, तो शासकीय भवनों की नीलामी की गई थी, जिसमें इस विद्यालय भवन को किसी प्रेमनारायण गुप्ता ने खरीदा था। शिक्षक नीरज ने बताया कि प्रेमनारायण से यह स्कूल भवन मैंने खरीद लिया, इसलिए इसमें रहता हूं। स्कूल भवन न होने की वजह से बच्चों को चबूतरे पर पढ़ाते हैं।
ग्रामीणों ने यह बताई स्कूल की कहानी
ग्रामीण अतर ङ्क्षसह व जिहान ङ्क्षसह पाल का कहना है कि शिक्षक नीरज भार्गव विद्यालय की इमारत में निवास कर रहा है, जबकि अधिकारी कहते हैं कि यह स्कूल भवन नीलाम नहीं हुआ है। विस्थापन के बाद दो-तीन वर्ष स्कूल इसी शाला भवन में चला, फिर मास्टर साहब ने कब्जा कर लिया। बकौल ग्रामीण, एक बार डीपीसी शिरोमणि दुबे आए तो उन्होंने मास्टर साहब का कब्जा हटाकर बच्चों को स्कूल भवन में पढ़ाना आरंभ कर दिया था।
बुनियादी सुविधाएं भी नहीं
स्कूल भवन के एक कमरे में शिक्षक नीरज की गृहस्थी का समान है, तो दूसरे कमरे में उनके बटाईदार की खेती-किसानी का समान भरा है। नीरज का घर शिवपुरी में है, तथा जब कभी वे जब यहां रुकते हैं, तो बच्चों को चबूतरे पर पढ़ाते हैं, जबकि दूसरा शिक्षक संतोष शर्मा तो आते ही नहीं हैं। स्कूल में ना किताबें हैं, न ब्लैकबोर्ड न अलमारी। बच्चे चबूतरे पर बिछाने के लिए चटाई अपने घर से लेकर आते हैं।
कंटनजेंसी की राशि भी कर रहे खुर्द-बुर्द
कोई भी स्कूल बनने के 3 साल बाद शिक्षा विभाग द्वारा कंटनजेंसी की राशि 30 से अधिक छात्रों पर 25 हजार रुपए प्रतिवर्ष आती है। इस राशि से स्कूल भवन की साफ-सफाई, रंगाई-पुताई व बच्चों के लिए स्टेशनरी, फर्नीचर, खेलकूद का सामान, ब्लैकबोर्ड, चोक-डस्टर आदि सामान लाया जाता है। पिछले 14 साल में आई 3.50 लाख की राशि खुर्दबुर्द कर दी गई। वर्तमान में स्कूल में 33 बच्चे दर्ज हैं। जिनके लिए मध्यान्ह भोजन देने की जिम्मेदारी जयदुर्गे स्व सहायता समूह पर है, लेकिन भोजन कभी नहीं आया, तथा समूह को हर माह खर्चा पूरा दिया जा रहा है।
आगजनी के बाद बदला प्रभार
करमई कलां के शासकीय प्रावि लौटना में प्रधानाध्यापक का प्रभार पहले नीरज भार्गव के पास था, लेकिन विद्यालय के शासकीय रिकॉर्ड में आग लगने की घटना के बाद, प्रभार हटाकर संतोष शर्मा को दे दिया गया था। ग्रामीणों का कहना है कि दोनों शिक्षकों का रवैया भी अजीब है, जिस वजह से बच्चे भयभीत रहते हैं तथा स्कूल नहीं जाते। कंटनजेंसी की राशि के संबंध में जब फोन पर संतोष शर्मा से पूछा तो वे बोले कि यह जानकारी मैं अधिकारियों को दूंगा, यह कहकर फोन काट दिया।
बच्चों ने भी यह बताई कहानी
इस स्कूल में 33 बच्चे दर्ज हैं, जिनमें से महज तीन-चार बच्चे ही यहां मिले। जब पत्रिका प्रतिनिधि ने पूछा तो कक्षा चार के छात्र आर्यंस और ङ्क्षरकू ने बताया कि कई वर्षों से स्कूल में मध्यान भोजन नहीं मिला। शिक्षक और प्रभारी प्रधानाध्यापक संतोष शर्मा तो कभी.कभार ही आते हैं।
बोले बीआरसीसी: हमने वरिष्ठ कार्यालय को लिख दिया
ग्रामीणों की शिकायत तथा हमारे निरीक्षण के दौरान दोनों शिक्षक अनुपस्थित मिले थे। हमने कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को लिख दिया है, शीघ्र कार्रवाई होगी।
सुरेश गुप्ता, पिछोर बीआरसी

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Updated on:
31 Jul 2024 12:21 am
Published on:
31 Jul 2024 12:20 am


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