AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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GWALIOR HIGH COURT_ हाईकोर्ट की एकल पीठ ने यौन अपराध से जुड़ी एक गंभीर शिकायत पर संवेदनशील टिप्पणी करते हुए साफ कहा है कि जब किसी पीडि़ता की सूचना संज्ञेग अपराध का संकेत देती हो तो पुलिस के लिए एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। अदालत ने पाया कि तत्कालीन थाना प्रभारी और डीएसपी ने केवल शिकायत दर्ज करने में टालमटोल की, बल्कि संवेदनहीन रवैया अपनाया। कोर्ट ने इसे पीडि़ता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना। पुलिस ने असंवेदनशील रवैया माना है। कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया है कि तत्कालीन थाना प्रभारी, डीएसपी की भूमिका की जांच की जाए। जिसमें एफआइआर दर्ज करने से कथित इनकार, पीडि़ता का कथित अपमान और उसके बाद का आचरण की जांच की जाए। यदि जांच में अधिकारियों की कोई गलती या कदाचार सामने आता है, तो पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि उचित विभागीय कार्यवाही कानून के अनुसार शीघ्रता से शुरू और पूरी की जाए। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यौन अपराध के मामलों में निष्पक्ष और निर्भीक जांच पीडि़ता के मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। पुलिस द्वारा शिकायत न लेना या असंवेदनशील रवैया अपनाना संविधान के मूल्यों के विपरीत है।
https://www.patrika.com/gwalior-news/only-240-out-of-600-vehicles-were-available-to-collect-garbage-route-planning-also-failed-neither-was-the-vehicle-timing-the-court-demanded-an-immediate-solution-20144990र पीडि़ता ने गिरवाई थाने में हुए अभद्र व्यवहार को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अवधेश सिंह भदौरिया ने तर्क दिया कि पीडि़ता 26 अप्रेल 2025 को थाना प्रभारी सुरेंद्रनाथ यादव के पास बलात्कार की एफआइआर दर्ज कराने पहुंची थी। उस वक्त वहां पर डीएसपी ग्रामीण चंद्रभान सिंह चिडार भी मौजूद थे। दोनों अधिकारियों ने न केवल उसे बेहद लज्जित और उसका उपहास उडाया, बल्कि उसके साथ दुर्व्यवहार भी किया। एफआइआर लिखने से इनकार कर दिया। पीडि़ता अपने परिजनों के साथ रात 2 बजे तक थाने में रुकी रही। केवल उसकी शिकायत पर प्राप्ति देकर उसे थाने से भगा दिया गया, पीडि़ता के परिजनों ने तुरंत मोबाइल से पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस महानिरीक्षक ग्वालियर संभाग को अधिकारियों के व्यवहार के बारे में जानकारी दी। दूसरे दिन वह पुलिस अधीक्षक व आईजी से मिली। अपने साथ हुई घटना एवं उक्त अधिकारियों के दुर्व्यहार के बारे में बताया पुलिस अधीक्षक एवं आइजी के हस्तक्षेप के बाद तीसरे दिन पुलिस थाना गिरवाई में उसके साथ हुई बलात्कार की एफआइआर दर्ज की गई।
पूरे मामले को लेकर अदालत ने क्या कहा
शिकायत दर्ज करने से मना करना कानून के स्पष्ट उल्लंघन के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी फैसले के अनुसार संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही एफआईआर दर्ज करना पुलिस की बाध्यकारी जिम्मेदारी है। संवेदनशील मामलों में पुलिस का निष्पक्ष और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार आवश्यक है। जिन अधिकारियों पर उदासीनता के आरोप हैं, उनके पास ही जांच रहने से निष्पक्षता प्रभावित होती है।
-दर्ज एफआइआर की जांच तत्काल प्रभाव से संबंधित थाने से हटाकर किसी वरिष्ठ व स्वतंत्र अधिकारी को सौंपी जाए। जिला पुलिस प्रमुख एक वरिष्ठ अधिकारी को नामित करें, जो संबंधित पुलिसकर्मियों के आचरण की स्वतंत्र जांच करे। यदि जांच में गलती साबित होती है, तो विभागीय कार्रवाई शीघ्र और प्रभावी तरीके से की जाए। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि पीडि़ता और उसके परिवार को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए, क्योंकि धमकियों का आरोप भी रिकॉर्ड पर है।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
05 Dec 2025 11:16 am


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