AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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-डॉ. रिपुन्जय सिंह
तेजी से बढ़ता शहरीकरण आज भारत सहित दुनिया के सामने सबसे बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। बढ़ती आबादी, बदलती जीवनशैली, उपभोगवाद तथा औद्योगिक गतिविधियों ने कचरे की मात्रा में कई गुना वृद्धि की है। शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाला ठोस कचरा न केवल पर्यावरण पर दबाव बढ़ाता है बल्कि स्वास्थ्य, स्वच्छता, नदियों की गुणवत्ता और नगर प्रशासन की क्षमता पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस संदर्भ में शहरी कचरा प्रबंधन एक बहुआयामी विषय है, जो तकनीक, नीतियों, नागरिक सहभागिता और आर्थिक मॉडल-सभी का समन्वय मांगता है। शहरी कचरा प्रबंधन किसी भी शहर की स्वच्छता, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय गुणवत्ता और नागरिकों के जीवन स्तर का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।
स्थानीय निकायों की मूल जिम्मेदारी होती है कि शहर में कचरे का कुशल संग्रहण, पृथक्करण, प्रसंस्करण और वैज्ञानिक निपटान सुनिश्चित हो। भारत में 74 वें संविधान संशोधन ने शहरी स्थानीय निकायों को कचरा प्रबंधन से संबंधित कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने और नीतिगत निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की है। आज शहरों में कचरा प्रबंधन के सर्वोत्तम अभ्यासों, सफल परिणामों, समुदाय की प्रतिक्रियाओं, नागरिक व्यवहार, तकनीकी व शासन-स्तरीय प्रतिक्रिया तंत्र, समग्र निष्कर्षों का विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है व नीति-निर्माताओं, स्थानीय निकायों, पर्यावरण योजनाकारों और शहरी विकास विशेषज्ञों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करें। शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक प्रसार और बदलती उपभोग प्रणालियों ने कचरे की मात्रा को कई गुना बढ़ा दिया है। नगर निगम और स्थानीय प्रशासनिक निकायों के सामने चुनौती है कि वे कचरे को पर्यावरण-अनुकूल तरीकों से संभालें और शहरों को स्वच्छ, स्वस्थ और सतत बनाए रखें।
कचरा प्रबंधन केवल एक स्वच्छता प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, संसाधन पुन: उपयोग, जलवायु परिवर्तन नियंत्रण तथा शहरी शासन का महत्वपूर्ण घटक है। आधुनिक विश्व में 'कचरा' अब सिर्फ अपशिष्ट नहीं बल्कि एक संपदा है, जिसे उचित प्रबंधन से आर्थिक और पर्यावरणीय मूल्य में बदला जा सकता है। नए आधुनिक आधारित समाधान से सेंसर लगे डस्टबिन जो स्वत: भराव स्तर से नगर निगम के कंट्रोल रूम को रियल-टाइम डेटा प्राप्त होता है, जिसमें केवल भरे हुए बिनों से कचरा संग्रहण, ईंधन, समय और संसाधन की बचत होती है। वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली व रेडियों आधारित कचरा वाहन ट्रैकिंग से प्रत्येक कचरा संग्रहण वाहन में ट्रैकर द्वारा वाहन की गति, मार्ग, समय और अनियमितताओं की मॉनिटरिंग से संग्रहण में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है। कृत्रिम बुद्धिमता व मशीन शिक्षण आधारित कचरा छंटाई द्वारा छवि पहचान प्रणाली ऑटोमेटिक रूप से प्लास्टिक, कागज, धातु, जैविक आदि को पहचानकर अलग करती है, जिससे रीसाइक्लिंग क्षमता बढ़ती है व मानव श्रम पर निर्भरता घटती है और सुरक्षा भी बढ़ती है। इससे कचरा उत्पादन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। मौसम, त्योहार, जनसंख्या, बाजार गतिविधियां इत्यादि के आंकड़े से भविष्य की कचरा मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है व इससे स्थानीय निकाय अग्रिम योजना बना सकते हैं।
भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीक से शहर के नक्शे पर बिंदुवार कचरे के स्रोत, कचरा पात्र का स्थान और यातायात का विश्लेषण प्राप्त हो सकता है, जिससे सबसे कुशल मार्ग तय हो सके, ईंधन व समय की बचत हो सके, कम प्रदूषण, लैंडफिल/डंपसाइट की वैज्ञानिक निगरानी गैस रिसाव, कचरे का फैलाव, भूजल स्तर और पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी की जा सकती है। रोबोटिक सफाई मशीनों से सड़कों, नालियों, बाजारों की सफाई अब कई शहरों में उपयोग हो रही हैं, कृत्रिम कन्वेयर-बेल्ट आधारित छंटाई संयंत्रों का बड़े शहरों में प्रयोग हो रहा है। कचरे से बिजली उत्पादन और बायो-मीथनेशन तकनीक से पुनर्चक्रण योग्य कचरे को जलाकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। दिल्ली, हैदराबाद, पुणे आदि शहरों में यह प्लांट चल रहे हैं।गीले कचरे से बायोगैस और जैविक खाद बनती है। इंदौर में नगर निगम अपनी बसें और स्ट्रीट लाइट्स इससे चलाते हैं। आंकड़े प्रबंधन और डिजिटल प्लेटफॉर्म से केंद्रीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर द्वारा शहर के सभी आंकड़ों का एकीकृत डैशबोर्ड पर प्राप्त होता है व सफाई, कचरा संग्रहण, वाहन ट्रैकिंग, शिकायतें सब कुछ एक जगह प्राप्त हो जाती हैं। मोबाइल ऐप आधारित नागरिक सहभागिता पर शिकायत दर्ज करना, कचरा वाहन की लोकेशन देखना, फोटो-आधारित स्वच्छता रिपोर्ट, ड्रोन व सुदूर सर्वेक्षण तकनीक से बड़ी डंपसाइट्स और अवैध कचरा फेंकने की जगहों की पहचान, प्रदूषण फैलाव, अग्नि जोखिम और विस्तार की मॉनिटरिंग की जा सकती है व पर्यावरणीय मानकों की निगरानी जैसे वायु गुणवत्ता, ग्रीनहाउस गैस, तापमान आदि का मापन,प्लास्टिक प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकें जैसे प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में बदलकर सड़क निर्माण और ईंधन उद्योग में प्रयोग करना, व ईंधन/रसायनों में बदला जा सकता है।
सफाई कर्मियों के लिए भी स्मार्ट सेफ्टी गियर प्रयोग में लिए जा सकते हैं। जैसे गैस सेंसरयुक्त मास्क, न्यायालयों द्वारा मैनुअल सीवर एंट्री पर बंदिशें व मशीनों का उपयोग बढ़ा कर सीवर और नाले की मशीन आधारित सफाई का प्रावधान है। शिक्षण और व्यवहार परिवर्तन के लिए तकनीक डिजिटल अभियान, सोशल मीडिया, डिजिटल पोस्टर व ऑडियो-वीडियो सामग्री के प्रयोग हैं। नागरिकों को सेग्रिगेशन नियम समझाना व कचरा संग्रहण बताना आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ तकनीकी मॉडल, जिनसे भारत, सिंगापुर का स्मार्ट मॉडल जो वेस्ट छंटाई पर आधारित है व ऊर्जा और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुंचाता है। जापान का रोबोटिक रीसाइक्लिंग मॉडल, जो 44 प्रकार का सेग्रिगेशन करता है। स्वीडन का रिकवरी सिस्टम 99 त्न कचरा उपयोग मॉडल से सीखा जा सकता है। भारतीय नगर निगमों में इंदौर का जीपीएस द्वारा वाहन को ट्रेक करना, मोबाइल ऐप का प्रयोग करना व बायो-मीथनेशन बनाना है। सूरत का कचरा बिन आधारित, रूट मानिटरिंग व हैदराबाद का स्मार्ट कमांड सेंटर है।
आधुनिक तकनीकें स्थानीय निकायों को शहरी कचरा प्रबंधन को तेज, पारदर्शी, सुरक्षित और पर्यावरण-संवेदनशील बनाने में क्रांति परिवर्तन ला सकती हैं, जिससे मानव श्रम की दक्षता बढ़ती है, संसाधन की बचत होती है, लागत कम होती है, रीसाइक्लिंग क्षमता बढ़ती है व शहर अधिक स्वच्छ और रहने योग्य बनते हैं। भविष्य के स्मार्ट शहरों में कचरा प्रबंधन टेक्नोलॉजी, गवर्नेंस, समुदाय सहभागिता का संयुक्त मॉडल होगा। आधुनिक तकनीकें न केवल स्थानीय निकायों को सहायता देती हैं, बल्कि शहरों को सतत विकास की दिशा में ले जाती हैं।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
22 Dec 2025 05:32 pm


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