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संपादकीय : शर्तें लगाना ही काफी नहीं, पाक पर निगरानी भी जरूरी

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से पाकिस्तान को मिलने वाले 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के शेष फंड के लिए 11 शर्तें जोडऩे के फैसले को भारतीय दृष्टिकोण से स्वागत योग्य ही कहा जाएगा। हालांकि यह पूरी तरह आश्वस्त करने वाला कतई नहीं है। आइएमएफ ने इस बेलआउट पैकेज में से 2.4 अरब डॉलर का […]

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से पाकिस्तान को मिलने वाले 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के शेष फंड के लिए 11 शर्तें जोडऩे के फैसले को भारतीय दृष्टिकोण से स्वागत योग्य ही कहा जाएगा। हालांकि यह पूरी तरह आश्वस्त करने वाला कतई नहीं है। आइएमएफ ने इस बेलआउट पैकेज में से 2.4 अरब डॉलर का फंड पाकिस्तान को पहलगाम आतंकी हमले के बाद जारी किया। पहलगाम हमले में पाकिस्तान का हाथ था, यह पूरी दुनिया को पता था। यह सब जानते हुए भी आइएमएफ ने पाकिस्तान की मदद के लिए फंड जारी किया था। इसका भारत ने विरोध दर्ज कराया और यह राशि जारी नहीं करने का आग्रह भी किया था। यह मान लेना भूल होगी कि इतने विरोध-प्रतिरोध के बावजूद पाकिस्तान को मदद पहुंचाने वाले आइएमएफ को अपनी गलती का अहसास हो गया होगा।
यह भी नहीं कहा जा सकता कि पाकिस्तान पर शर्तें लगाने का कदम उस गलती के सुधार का प्रयास है। इसे अंतरराष्ट्रीय जगत में संवेदनशील, पारदर्शी और नियम संगत प्रतीत होने के आइएमएफ के प्रयास के रूप में देखा जाना तो कतई उचित नहीं कहा जा सकता। दरअसल, आइएमएफ की कार्यप्रणाली विशेषकर पाकिस्तान के मामले में तो कभी भी पारदर्शी और नियम संगत नहीं रही। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि उसका आचरण एक वित्तीय संस्थान से ज्यादा राजनीतिक संगठन जैसा रहा है। इतिहास साक्षी है कि उसकी ओर से पाकिस्तान को न जाने कितनी बार चेतावनियां जारी की जा चुकी हैं। इसके बावजूद आइएमएफ ने कभी देर जरूर की है, पर हर बार पाकिस्तान को फंड दिया ही है।
पाकिस्तान इस फंड का क्या करता है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। अपने देश को संवारने, आधारभूत ढांचा बनाने या अपनी जनता के दु:ख-दर्द दूर करने में नहीं, बल्कि भारत को अस्थिर करने की साजिश रचने में ही उसका धन और ऊर्जा लगती रही है। अब भी फंड मिलते ही पाकिस्तान ने अपना रक्षा बजट बढ़ा दिया। माना जा सकता है कि वह आगे भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भारत के खिलाफ काम करता रहेगा। आइएमएफ को यह समझना चाहिए कि सिर्फ दिखावे केे लिए कुछ शर्तें लाद देने से वह निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं कहलाने लगेगा। इसके लिए उसे अपनी कथनी और करनी एक समान करनी होगी। उसकी साख और कोष के उद्देश्यों की पूर्ति व सार्थकता के लिए भी जरूरी है कि वह सुनिश्चित करे कि उसकी ओर से दिया जाना वाला हर फंड मानवता के काम आएगा। आइएमएफ का निगरानी तंत्र निश्चित तौर पर होगा, लेकिन जैसे कि हालात दिख रहे हैं, साफ लगता है कि वह बहुत कमजोर है। इस तंत्र को मजबूत और सक्रिय करना होगा ताकि कोई भी देश मिलने वाली मदद का दुरुपयोग न कर सके। उसे डर रहे कि यदि दुरुपयोग किया तो वह आगे मदद से हमेशा के लिए वंचित रह जाएगा।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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