AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

Air Pollution India : राजधानी दिल्ली समेत देश के ज्यादातर शहरों की वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खराब से लेकर खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर 300 से लेकर 700 प्लस काफी समय से बना रह रहा है। हवा में जहरीले रसायिनक तत्व घुलने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी काफी परेशानियां आ रही है। आम लोग खुद को बचाने के लिए काफी पैसा खर्च करके एयर प्यूरीफायर से लेकर तरह-तरह के पौधे (रबर, स्नेक प्लांट)अपने घरों में लगा रहे हैं।
Water Pollution to Air Pollution : कोई छह-सात दशक पहले लोग कुएं, बावड़ियों, नदियों का पानी पी लेते थे। पानी संबंधी बीमारियों को लेकर लोग डॉक्टर के पास जाते तो वह उन्हें हैंडपंप लगवाने की सलाह देते। समाज की चिंता करने वाले डॉक्टर एक सलाह और देते थे कि अगर हैंडपंप का पानी उपलब्ध ना हो तो कुएं का पानी उबालकर, सूती कपड़े से छानकर पी सकते हैं। यह मसला लोगों के स्वास्थ्य का था लेकिन केंद्र से लेकर राज्य सरकारों ने लोकहित में सार्वजनिक तौर पर हर शहर और गांव में हैंडपंप लगवाए।
वायु प्रदूषण: लोगों को पानी लेने जाने की हजार दिक्कतों से रू-ब-रू होना पड़ता। सो, लोगों ने अपनी बचत में से पैसे निकालकर हैंडपंप लगवाना शुरू कर दिए। 'आज भी खरे हैं तालाब' के लेखक और पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र ने इन पंक्तियों के लेखक से बातचीत में कहा था, 'हैंडपंप, वॉटर प्यूरीफायर या कोई नया नाम बाजार में आता है तो उसे पाने की होड़ में हम लग जाते हैं। एक व्यक्ति ने हैंडपंप लगवा लिया तो पूरा गांव अब इस कोशिश में लगा जाता है कि कैसे उनके यहां भी हैंडपंप लग जाए। लोग इसके अच्छे-बुरे पहलुओं के बारे में ज्यादा सोचते नहीं हैं। बाजार अपने फायदे के लिए मंत्रालय और सरकारों से नारे लगवा लेता है। प्रचार करवा लेता है।' बाजार को हैंडपंप में संभावना दिखी और पूरे भारत में हैंडपंप ही हैंडपंप नजर आने लगे।

आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद खुद को पानी के काम के लिए समर्पित करने वाले 81 वर्षीय दिनेश मिश्र अपने बचपन की बात याद करते हुए कहते हैं, 'मैं आगरा में पढ़ता था। गर्मी की हरेक छुट्टियों में आजमगढ़ जिले में हम अपने ननिहाल चले जाते थे। यह 1955-56 का समय रहा होगा। ननिहाल पहुंचने के लिए तमसा नदी को पार करना पड़ता था। नदी के ठीक किनारे एक झोपड़ी थी, जिसके बाहर हैंडपंप लगा हुआ था। हमलोग झोपड़ी से लोटा या गिलास ले लेते और हैंडपंप से पानी निकालकर पी लेते। एक बार की बात एक बुजुर्ग बाबा बैठे हुए थे। उन्होंने तंज करते हुए मुझसे एक सवाल किया कि नदी का शुद्ध और सुस्वादु जल छानकर पीओगे?'
दिनेश मिश्र बताते हैं कि मैं उस बाबा का चेहरा और उनका वह सवाल आजतक नहीं भूल पाया हूं। वह आजमगढ़ जिले स्थित मुबारकपुर अपने गांव का हाल बताते हुए कहते हैं- 'मेरे घर में लगे दोनों कुएं कई दशक पहले सूख गए। अब दशकों से म्युनिसिपल का पानी तय समय में घर में आता है। मुझे यह भरोसा नहीं कि म्यूनिसिपल द्वारा सप्लाई का पानी स्वास्थ्य के लिए कितना अच्छा है? हालांकि म्यूनिसिपल की सप्लाई वाले पानी के भी पैसे चुकाने पड़ते हैं। अब मुझे भी अपने गांव में वॉटर प्यूरीफायर लगवाना ही पड़ेगा।'

जयपुर के मानसरोवर में विजय सेल्स के प्रॉपराइटर उमेश ललवानी ने वर्ष 2002 में वॉटर प्यूरीफायर बेचना शूरू किया था। वह तब एक कंपनी में काम करते थे और उनका टार्गेट हर महीने 8 वॉटर प्यूरीफायर बेचने का था। उमेश ललवानी ने विजय सेल्स की एजेंसी ले रखी है। उन्होंने पत्रिका से बताया कि वह हर महीने 100-150 वॉटर प्यूरीफायर बेचते हैं। वह वॉटर प्यूरीफायर के सालाना मेंटिनेंस के बारे में बताते हैं कि यह इलाकों के हिसाब से अलग-अलग बैठता है। जयपुर के मानसरोवर इलाके में वॉटर प्यूरीफायर की एएमसी 2700 रुपये है जबकि जगतपुरा में 3500 रुपये सालाना है। ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में कहते हैं- 'मानसरोवर में पानी में टीडीएस की मात्रा कम है जबकि जगतपुरा में बहुत ज्यादा। टीडीएस के हिसाब से सालाना मेंटिनेंस चार्ज किया जाता है।

क्या आप एयर प्यूरीफायर भी बेचते हैं? इस सवाल के जवाब में उमेश बताते हैं कि जयपुर की हवा अभी दिल्ली जैसी खराब नहीं हुई है। लेकिन पूरे साल में 5 से 6 एयर प्यूरीफायर की डिमांड तो जयपुर से आ ही जाती है। उन्होंने बताया कि अभी तो एयर प्यूरीफायर की डिमांड दिल्ली से आने लगी है। कल ही 5 एयर प्यूरीफायर हमने दिल्ली भेजे हैं। उन्होंने बताया कि मार्केट में सबसे ज्यादा जिस एयर प्यूरीफायर की डिमांड है, उसकी कीमत 15-16 हजार रुपये के करीब पड़ती है।
दिल्ली के वायु प्रदूषण और एयर प्यूरीफायर को लेकर पत्रिका ने पर्यावरणविद् सोपान जोशी से बात की तो उन्होंने दिल्ली के प्रसिद्ध कवि मीर की गजल उद्धृत करते हुए कहा, देख तो दिल कि जां से उठता है, ये धुआं-सा कहां से उठता है। उन्होंने आगे कहा, गजल का यह मतला कोई 250 साल पुराना है और मीर का मतलब वायु की गुणवत्ता से भले हो ना हो लेकिन आज यह सवाल तो हर कोई पूछ रहा है। वह यह बताते हैं कि वायु प्रदूषण हमारी जिंदगी से 8 से 10 साल छीन ले रहा है। दिल्ली में यह आंकड़ा 10 साल का है तो उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 7-8 साल का है। एक आंकड़ा यह भी है कि दिल्ली में पैदा हो रहे हर तीसरे बच्चे का फेफड़ा इस समय कमजोर पाया जा रहा है।

सोपान जोशी का कहना है मनुष्य ने सृष्टि का निर्माण नहीं किया है, बल्कि सृष्टि ने मनुष्य का निर्माण किया है। लेकिन मनुष्य खासकर साधन संपन्न लोग हर चीज को खरीद लेना चाहता है। अब अगर वॉटर प्यूरीफायर जरूरी है तो भारत में कितने प्रतिशत लोग खरीद पाएंगे? इसी तरह अगर एयर प्यूरीफायर जरूरी हो जाएगा तो उसे कितने प्रतिशत लोग खरीद पाएंगे? संपन्न लोग तो अंतिम दम तक साधन खरीदने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन वो लोग जिनके पास पैसे नहीं हैं उनका क्या? पानी और हवा को ठीक करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए, क्योंकि सारी सरकारें जनता की चुनी हुई होती हैं।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

क्या आपको लगता है कि यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा?
Updated on:
21 Dec 2025 07:41 pm
Published on:
21 Dec 2025 06:00 am


यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।
हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है
दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।