AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल…
Majrooh Sultanpuri: राज कपूर, रणधीर कपूर और रेखा पर फिल्माए गए इस गीत के बोल जिंदगी की सच्चाई को सामने लाने का काम करते हैं। 1975 में आई 'धरम करम' फिल्म के इस गीत के बोल जाने-माने गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे। मजरूह सुल्तानपुरी एक ऐसे संगीतकार और शायर रहे, जिन्होंने कभी खुद को एक शायर के तौर पर नहीं देखा।

1 अक्टूबर, 1919 को जन्मे मजरूह सुल्तानपुरी का पूरा नाम असरार उल हसन खां था। अरबी, फारसी और उर्दू से अपनी पढ़ाई शुरू करने वाले मजरूह हकीम बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने यूनानी दवाइयों की पढ़ाई भी की और लखनऊ में एक क्लिनिक भी खोला लेकिन जब किस्मत में शायरी लिखी थी तो क्लिनिक कैसे चलता और हुआ भी ऐसा ही उनका यूनानी दवाइयों का क्लिनिक ज्यादा चला नहीं और 3 साल में ही बंद हो गया। मानेक प्रेमचंद द्वारा लिखित किताब 'मजरूह सुल्तानपुरी द पोएट फॉर ऑल रीज़न्स' के अनुसार,
शेर-ओ-शायरी में खासा रूचि होने के चलते उन्होंने लखनऊ में होने वाले मुशायरों में जाना और उनमें हिस्सा लेना शुरू किया। और फिर एक दिन जब उन्होंने अपनी पहली कविता पढ़ी तो ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उनके लिए ताली बजाने वालों में उस दौर के मशहूर उर्दू शायर जिगर मुरादाबादी भी शामिल थे, और उन्होंने मजरूह को अपना शागिर्द बना लिया।
कम उम्र में शायरी लिखना शुरू करने वाले मजरू सुल्तानपुरी ने जल्दी ही शायरी की दुनिया में अपना एक जाना-माना नाम बना लिया और उनका उठना बैठना बड़े-बड़े शायरों में होने लगा था।
अब जब बड़े-बड़े शायरों के बीच उठना-बैठना शुरू हुआ जो मुंबई में भी नाम कमा रहे थे, तो मुंबई जाना न हो ऐसा हो ही नहीं सकता था। साल 1944 में जिगर मुरादाबादी उनको अपने साथ मुंबई ले गए और वहां उनकी मुलाकात नौशाद साहब से हुई जिन्होंने उनको फिल्मों में गीत लिखने का ऑफर दिया, मगर मजरूह ने साफ इंकार कर दिया। लेकिन अपने गुरु जिगर मुरादाबादी के कहने पर उन्होंने हामी भर दी। और यहीं से शुरू हुआ एक शायर का फिल्मीं गीतकार बनने का सफर।
फिल्म निर्माता ए.आर. कारदार और संगीतकार नौशाद उन दिनों नए गीतकारों की तलाश कर रहे थे। क्योंकि उस दौर के मशहूर गीतकारों ने अपनी फीस बढ़ा दी थी, और कारदार और नौशाद ने मजरूह को मुशायरे में सुनने के बाद उनकी शायरी के कायल हो गए थे। इसीलिए उन्होंने अपनी फिल्म 'शाहजहां' में गीत लिखने के लिए मजरूह सुल्तानपुरी को चुना और उनको साइन कर लिया।
फिल्म 'शाहजहां' के लिए मजरूह ने अपना पहला गीत 'जब दिल ही टूट गया…' लिखा जिसे मशहूर और पहले सुपरस्टार और गायक सहगल (कुंदन लाल सहगल) ने गाया। ये गाना इतना फेमस हुआ कि आज भी लोग इस गाने को सुनना पसंद करते हैं।
ये वो दौर था जब देश आजाद हो चुका था और तत्कालीन राजनीति और हालातों को देखते हुए मजरूह ने एक नज्म लिखी जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे,

'अमन का झंडा इस धरती पे किसने कहा लहराने ना पाए
ये भी कोई हिटलर का है चेला, मार ले साथी, जाने न पाए
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू, मार ले साथी जाने ना पाए'
मानेक प्रेमचंद की किताब 'मजरूह सुल्तानपुरी द पोएट फॉर ऑल रीज़न्स' के अनुसार, मजरूह ने इन पक्तियों के जरिये तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की तुलना हिटलर से कर दी थी, जिसके चलते उनके लिए गैर-जमानती वॉरंट जारी हो गया था और उनको 1 साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। मगर जेल में रहते हुए भी उन्होंने फिल्मों के लिए गीत लिखना बंद नहीं किया था।
साल 1952 में जेल से बाहर आने के बाद सबसे पहले मजरूह सुल्तानपुरी से कमाल अमरोही मिले और उन्होंने उन्हें अपनी फिल्म 'दायरा' में गीत लिखने के लिए साइन कर लिया। इस फिल्म में 'सुनो मोरे नैना', 'कहो डोला उतारें कहांर', 'देवता तुम हो मेरा सहारा', जैसे गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे, जो काफी फेमस हुए।
एक वो दौर भी था जब एक बैठक में मजरूह सुल्तानपुरी ने दो पंक्तियां कही थीं और इन्हीं पंक्तियों ने उनको पूरे भारत में फेमस कर दिया था।

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
ग़ैर साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
और जब इन लाइन्स पर वहां मौजूद लेखकों की राय मांगी गई तो कवि जफर गोरखपुरी ने अपना हाथ ऊपर उठाया और कहा, 'मजरूह की लाइनों में 'गैर' शब्द मुनासिब नहीं है। कवि के लिए कोई भी 'गैर' नहीं हो सकता। वहीं, अली सरदार जाफरी ने कहा कि वो जफर गोरखपुरी के बातों से सहमत हैं। उन्होंने मजरूह को सलाह दी कि वो 'गैर' की जगह कोई और शब्द इस्तेमाल करें। और तब मजरूह सुल्तानपुरी ने 'गैर' शब्द की जगह 'लोग' शब्द का इस्तेमाल किया।
मजरूह साहब ने 5 दशकों तक तकरीबन 350 हिंदी फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे। उन्होंने गुरुदत्त, राज कपूर, और यश चोपड़ा जैसे कलाकारों के साथ काम किया। जहां उन्होंने 1964 में आई दोस्ती फिल्म के यादगार गाने लिखे, वहीं, उनकी कलम ने 1995 की ब्लॉकबस्टर 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का 'तुझे देखा तो ये जाना सनम' सुपरहिट गाना भी लिखा। मजरूह साहब ने हर दौर के लिए गाने लिखे। मजरूह सुल्तानपुरी को फिल्म 'दोस्ती' के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। फिल्मफेयर में बेस्ट गीतकार का अवॉर्ड पाने वाले पहले गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ही थे। 1994 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
हिंदी फिल्मों के लिए हजारों गाने लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी को फिल्म जगत के हर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, लेकिन सबसे लोकप्रिय गीतकारों में से एक मजरूह सुल्तानपुरी ने कभी भी खुद को मिले किसी भी अवार्ड्स के साथ कोई फोटो नहीं खिंचवाई। उनका कहना था, 'मैं फिल्मी आदमी नहीं हूं।'
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Updated on:
21 Dec 2025 09:09 pm
Published on:
20 Dec 2025 08:04 pm


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