AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा
भारत के इतिहास में कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जो केवल स्मरणीय नहीं होते, बल्कि सभ्यता की आत्मा में एक नई ऊर्जा, एक नया भरोसा और एक नया संकल्प जगाते हैं। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का यह दिव्य अवसर उसी विराट क्षणों में से एक है। एक ऐसा युगांतरकारी पल, जिसने करोड़ों भारतीयों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हुए, भविष्य की ओर बढ़ने का आत्मविश्वास दिया है। आज अयोध्या की पावन भूमि पर प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर भगवा ध्वज फहरा रहा है। यह केवल एक ध्वजारोहण नहीं है। यह पांच सौ वर्षों की तपस्या का फल है। यह करोड़ों रामभक्तों की आस्था की विजय है। यह भारत की सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना है। यह भारतीय जनता पार्टी के उस संकल्प की सिद्धि है, जिसे हमने जनता के सामने रखा था और जिसे जनता ने बार-बार अपना आशीर्वाद देकर पूरा करवाया। जब मैं अयोध्या की पवित्र नगरी को याद करता हूं, जहां सरयू की लहरें आज भी रामकथा गाती हैं, तो मन गदगद हो उठता है। बचपन में मां मुझे रामायण सुनाया करती थीं, जो मात्र एक कथा नहीं, हमारी सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा था। लेकिन एक समय था जब अयोध्या में रामलला टेंट में विराजमान थे। ढांचा गिरा था, विवाद खड़ा किया गया था और राजनीतिक दल इसे वोट बैंक की राजनीति का हथियार बनाते थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट कहा था कि "हमारा संकल्प है अयोध्या में भव्य राम मंदिर जरुर बनेगा"। आज जब भव्य राम मंदिर तैयार है, जब उसके नागर शैली के तीन विशाल शिखर आकाश को छू रहे हैं, जब गर्भगृह में रामलला बाल स्वरूप में विराजमान हैं, तो यह केवल एक इमारत का पूरा होना नहीं है। यह भारत के स्वाभिमान का पुनर्जागरण है।
अयोध्या सदियों से भारतीय सांस्कृतिक चेतना का केंद्र रही है। यह शहर केवल भौगोलिक सीमाओं से परिभाषित एक स्थान नहीं, बल्कि भारतीय मानस की उन गहरी परतों में बसता है जहां धर्म, दर्शन, कला, इतिहास और लोक-संस्कृति एक साथ प्रवाहित होते हैं। इसी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य शिखर पर फहराए जाने वाला 191 फीट ऊँचा ध्वज आज पुनः एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की घोषणा जैसा प्रतीत होता है। यह ध्वज उन प्रतीकों का संगम है जो भारत की आध्यात्मिक परंपरा, सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय गौरव के निरंतर प्रवाह को एक रूप में पिरोते हैं। ध्वज का केसरिया रंग, सूर्य का चिन्ह, "ॐ" का उच्चारित प्रतीक और कोविदार वृक्ष का चित्र ये सभी मिलकर न केवल धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं, बल्कि भारतीय सभ्यता की निरंतरता, इसके दर्शन और इसकी ऐतिहासिक पहचान को एक भव्य रूप देते हैं। यह ध्वज अपने भीतर एक ऐसी कहानी समेटे है जो भारत की आत्मा को समझने की एक सजीव कुंजी प्रदान करती है। भारतीय परंपरा में केसरिया केवल एक रंग नहीं, बल्कि एक मनोभाव का प्रतिनिधित्व करता है। यह त्याग, सेवा, निस्वार्थता और साहस का प्रतीक माना जाता है। यह वह रंग है जो भारतीय साधना और वैराग्य की दीर्घ परंपरा से जुड़ा है। हिमालय की कंदराओं में तप करने वाले ऋषियों से लेकर समाज के मार्गदर्शक संतों तक केसरिया वस्त्र भारतीय आध्यात्मिक जीवन का केंद्र रहा है। अयोध्या मंदिर के ध्वज में केसरिया का चयन इस बात की पुनर्पुष्टि करता है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ें केवल स्थापत्य या परंपरा तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों से भी जुड़ी हैं। यह रंग साहस का भी प्रतीक है, वह साहस जो धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। ध्वज पर अंकित सूर्य केवल खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन में जीवन और चेतना का आधार है। ऋग्वेद में सूर्य को "सविता" कहा गया है, जो प्रेरणा देता है, जगत को गतिमान रखता है और अज्ञान के अंधकार को दूर करता है। भारतीय संस्कृति में सूर्य देवता को केवल प्रकाश का स्रोत नहीं, बल्कि नैतिकता और धर्म का प्रतीक माना गया है। ॐ भारतीय आध्यात्मिकता का मूल उच्चारण है। यह वह ध्वनि है जिसे संपूर्ण ब्रह्मांड की आदिम कम्पन माना गया है। चाहे वह उपनिषद हों, योग दर्शन हो या भारतीय ध्यान परंपरा ॐ का जप आत्मा को शांति, स्थिरता और गहनता से जोड़ता है। यह ध्वनि दिव्यता और अनंतता की अनुभूति कराती है। ध्वज के केंद्र में अंकित ॐ का चिह्न इस बात का संकेत है कि मंदिर केवल श्रद्धा का स्थान नहीं, बल्कि साधना और आत्मिक उन्नति का केंद्र भी है। यह प्रतीक दर्शाता है कि भारतीय दृष्टिकोण में धर्म का अर्थ केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान और विश्व-बंधुत्व की भावना है। जब लोग इस ध्वज को देखेंगे, तो वे केवल धार्मिक आस्था से नहीं, बल्कि आत्मिक भाव से भी जुड़ेंगे। इस ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में देखने को मिलता है और इसे अयोध्या के राजवंश का प्रतीक माना जाता है। कोविदार वृक्ष प्रकृति और संस्कृति के उस अद्वितीय मेल का प्रतिनिधित्व करता है जिसे भारतीय जीवन ने हमेशा संजोकर रखा। यह वृक्ष तत्कालीन अयोध्या की स्मृति और आधुनिक अयोध्या की पहचान दोनों को एक साथ जोड़ता है।
अयोध्या वैश्विक आध्यात्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। यहां केवल धार्मिक यात्राएं ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पर्यटन, शैक्षणिक यात्राएं, वास्तुकला अध्ययन और पारंपरिक शिल्पकला प्रशिक्षण का भी व्यापक अवसर है। राम मंदिर के लोकार्पण के बाद अयोध्या में आस्था का ज्वार निरंतर बढ़ रहा है। देश ही नहीं, विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु रामलला के दर्शन को पहुंच रहे हैं। पर्यटकों की रिकॉर्ड तोड़ आवक ने अयोध्या को सबसे बड़ी धाार्मिक पर्यटक नगरी बना दिया है। इस वर्ष अब तक 22 करोड़ श्रद्धालु अयोध्या पहुंचे हैं, जो पिछले वर्ष के 16 करोड़ श्रद्धालुओं की तुलना में लगभग 6 करोड़ अधिक है। यह वृद्धि न सिर्फ रिकॉर्ड तोड़ है, बल्कि अयोध्या को दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में स्थापित कर चुकी है। किसी भी राष्ट्र का गौरव केवल उसकी सैन्य शक्ति या आर्थिक सामर्थ्य से नहीं मापा जाता, बल्कि उन प्रतीकों से भी मापा जाता है जो उसकी संस्कृति, इतिहास और मूल्यों को दर्शाते हैं। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर उसी गौरव का प्रतिनिधि है। राम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है। यह अयोध्या के कायाकल्प का प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में अयोध्या को विश्वस्तरीय तीर्थस्थल बनाया जा रहा है। नया रेलवे स्टेशन, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, चौड़ी सड़कें, सरयू तट का सौंदर्यीकरण, दिव्य ज्योति प्रकाश व्यवस्था यह सब कुछ देखकर मैं गर्व से कह सकता हूं कि अयोध्या अब केवल तीर्थ ही नहीं, पर्यटन का केंद्र बन गई है। अयोध्या और राम मंदिर हमें याद दिलाता है कि अगर लक्ष्य सत्य और न्याय पर आधारित हो, अगर वह जनमानस की सामूहिक शक्ति और समाज की संगठित भावना से पैदा हुआ हो, तो सदियों की प्रतीक्षा भी उसे रोक नहीं सकती है। संघर्ष चाहे कितना भी लंबा हो, अन्ततः विजय सत्य की ही होती है। राम मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं था। यह भारत की सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण था। हर राज्य, हर क्षेत्र, हर समुदाय, हर वर्गसभी ने एक साथ आकर इस दिव्य यज्ञ में अपनी आस्था और भावना समर्पित की। आज भारत ऐसी स्थिति में है जहां उसके कदम रोकने की शक्ति किसी के पास नहीं है। हमारा लोकतंत्र परिपक्व है, हमारी अर्थव्यवस्था सशक्त है, और हमारी संस्कृति दुनिया को दिशा देने में सक्षम है।
आज भारत के हर क्षेत्र आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी, वैश्विक नेतृत्व, अवसंरचना, नवाचार, स्टार्टअप सबमें एक अद्भुत गति दिखाई दे रही है। यह वही गति है, जो सांस्कृतिक आत्मविश्वास से जन्म लेती है। जब कोई राष्ट्र अपनी विरासत से प्रेरित होकर आगे बढ़ता है, तब उसका विकास केवल संख्याओं में नहीं, बल्कि चरित्र में झलकता है। राम मंदिर वही आत्मा है जो विकसित भारत को ऊर्जा प्रदान करेगी। अयोध्या में विराजमान प्रभु श्रीराम हमें यह प्रेरणा देते हैं कि यदि लक्ष्य सत्य, न्याय और धर्म पर आधारित हो और यदि समाज अपने सामूहिक संकल्प के साथ आगे बढ़े, तो इतिहास भी नई दिशा में मुड़ जाता है। आज भारत उसी मोड़ पर खड़ा है। हम सबको मिलकर भारत के नव प्रभात को लिखना है। विकसित भारत, समृद्ध भारत, गौरवशाली भारत यही हमारा लक्ष्य है और यही हमारा संकल्प है।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
25 Nov 2025 11:19 am


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