AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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रतलाम. शहर में हर साल पौष अमावस्या के दिन अनूठी परम्परा का निर्वाहन किया जाता हैं। यहां प्रभु केसरियानाथ के दर्शनार्थ बैलगाडिय़ों से धर्मालु बड़ी संख्या में तीर्थधाम तक पहुंचते हैं। शहर से बिबड़ौद धर्मस्थल प्रभु केसरियानाथ ऋषभदेव तक दौड़ती बैलगाडिय़ा सुबह से शाम तक नजर आती है। सवार धर्मालुओं प्रभु की जय जयकार कर उल्लास और उमंग भरे माहौल में शहर के धर्मालु बाहर से आए रिश्तेदारों के साथ पहुंचकर दर्शन करते हैं।
परमात्मा का प्रतीक बैलगाड़ी पर बच्चे युवा और बुजुर्ग झूमते गाते थाली बजाते सडक़ों पर निकले, तो देखने वाले भी आनंदित हो रहे थे। स्वर्ण सा दमक रहा तीर्थ देखकर हर कोई अचंभित और उत्साहित था। मंदिर में प्रभु केसरियानाथ ऋषभदेव, आदेश्वर परमात्मा प्रथम तीर्थंकर की प्रतिमा के मंत्री चैतन्य काश्यप और निर्मला भूरिया सहित बड़ी संख्या में धर्मालुओं ने पहुंचकर दर्शन वंदन किए।
बड़ी संख्या में धर्मालुजन हुएशामिल
दो बैलगाड़ी पर विशाल ओहरा, विनोद सकलेचा, सुशीला मेहता, मुस्कान बोहरा, विशाल ओहरा, दिव्या छाजेड़, संगीता छाजेड़, जयेश पालरेचा, प्रियांशी पितलिया, वैभव पितलिया, शिल्पी सेठिया आदि बड़ी संख्या में परिवार सहित धर्मालु सवार होकर तीर्थ पहुंचे। दोपहर में तीर्थ व्यवस्थापक कमेटी की ओर से बैंडबाजों के साथ रथयात्रा निकाली गई। जिसमें बड़ी संख्या में धर्मालुजन शामिल हुए। इस दौरान मंदिर पर अनोखीलाल छाजेड़, लालचंद सुराना, दिनेश कुमठ, दशरथ पोरवाल, राजेश सुराणा, निखिल बुरड़, पारस भंडारी, श्रेणिक तांतेड़, प्रकाश तांतेड़, प्रियवर्धन शाह आदि बड़ी संख्या मेंं उपस्थित थे।
बैलगाड़ी पर तीर्थ जाने का आनंद अलग
बैलगाड़ी पर सवार शैलेंद्र पालरेचा बताया कि तीर्थ मंदिर को अद्भूत स्वर्ण रूप में सजाया है। प्रभु के दर्शन बैलगाड़ी पर बैठकर जाने की पूर्वजों से बरसो पुरानी परम्परा है, हर साल इसी तरह परिवार सहित तीर्थ में पहुंचते है। मेले में झूलों का आनंद लेते हैं। बच्चों को भी इसी परम्परा से जुडऩे रहने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैलगाड़ी पर जाते हैं।
ताकि बच्चें भी बैलगाड़ी की परम्परा जाने
सोनिका सकलेचा ने बताया कि आचार्य भगवन की प्रेरणा से तीर्थ का बहुत सुंदर जीर्णोद्धार कर स्वर्ण मंदिर रूप में रंगरोगन किया है। सबसे आग्रह है कि एक बार जरुर दर्शन करें। पुरानी परम्परा चलती रहे बच्चों भी देखे, इसलिए बैलगाड़ी पर आते हैं, पौष के मेले में लकड़ी के झूलों आते हैं। सूरत, बैंगलरू आदि स्थानों से रिश्तेदार रतलाम आए हैं।
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Updated on:
20 Dec 2025 10:09 pm
Published on:
20 Dec 2025 10:08 pm


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