AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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सीकर. सीकर मेडिकल कॉलेज से सबद्ध कल्याण अस्पताल में हार्ट और लकवे के मरीजों के समय रहते जान बचाई जा सकेगी। वजह कल्याण अस्पताल में खून का थक्का घोलने में कारगर थ्रोबोलाइसिस इंजेक्शन की खेप पहुंच गई है। समय पर इस दवा के मिलने से ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट स्ट्रोक में जमे खून के थक्के घुल जाते हैं, जिससे मरीज की जान बचने और शरीर पर लकवे के प्रभाव कम होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। राहत की बात है कि बाजार में खून के थक्के घोलने वाले एक इंजेक्शन की औसतन कीमत 50 हजार से 75 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ते हैं लेकिन अब यह इंजेक्शन कल्याण अस्पताल में निशुल्क मिलने से मरीज को लगाया जा सकेगा। वहीं कल्याण अस्पताल में हाइटेक आईसीयू, स्थाई न्यूरोलॉजिस्ट होने के कारण पिछले सप्ताह ही एक मरीज को थ्रोबोलाइज किया गया। इसके बाद चौबीस घंटे में मरीज की रिकवरी हो गई। थ्रोबोलाइज करने से हर साल स्ट्रोक के सैंकड़ों लोगों की आसानी से जान बचाई जा सकेगी।
चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर नस में खून का थक्का जमने से मस्तिष्क या हार्ट स्ट्रोक आ जाता है। जिससे शरीर के अन्य अंगों में लकवा के लक्षण नजर आते हैं। इसके बचाव के लिए मरीज को थ्रोबोलाइज किया जाता है। स्ट्रोक आने के बाद मरीज को ढाई से साढ़े तीन घंटे के बीच यह इंजेक्शन लगने पर नसों में जमा खून का थक्के टूट जाते है और संबंधित मरीज पर लकवे का असर काफी हद तक कम हो जाता है। इस गोल्डन पीरियड में इंजेक्शन लगने पर खून के थक्के घुल जाते हैं। इससे लकवा रुक जाता है या कम होता है और सामान्य जीवन में लौट सकता है। आंकड़ों के अनुसार हार्ट व ब्रेन स्ट्रोक के करीब 40 फीसदी मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच से थ्रोबोलाइज नहीं हो पाते हैं। समय पर थ्रोबोलाइसिस देने पर मरीज की 60-70 प्रतिशत तक रिकवरी हो जाती है।
चिकित्सकों के अनुसार व्यक्ति को अचानक हाथ-पैर में कमजोरी, पैरों में लड़खड़ाहट, शरीर का संतुलन बिगड़ना, आवाज में बदलाव स्ट्रोक या लकवे का प्रारंभिक लक्षण होता है। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को निशक्तता का सबसे बड़ा कारण स्ट्रोक को ही माना जाता है। आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर, शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल अथवा अनियमित दिल की धड़कन जैसी बीमारियों में स्ट्रोक की संभावना सामान्य व्यक्ति की तुलना में दोगुना होती है।
स्ट्रोक आने के फौरन बाद का समय काफी महत्वपूर्ण होता है। स्ट्रोन आने के बाद करीब तीन घंटे के दौरान मरीज को थ्रोबोलाइज करने पर असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मरीज की रिकवरी भी जल्दी होती है। कई बार जागरुकता के अभाव में मरीज के परिजन देरी कर देते हैं। जिससे मरीज को काफी नुकसान होता है।
डॉ. श्रीनेहा, न्यूरोलॉजिस्ट, मेडिकल कॉलेज सीकर
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Updated on:
26 Nov 2025 11:34 am
Published on:
26 Nov 2025 11:33 am


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