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मीठे त्योहार का कड़वा सच: 21 दिन बाद मिली रिपोर्ट, अब सेहत पर जोखिम

सीकर.  दीपावली पर्व पर विशेष अभियान होने के बावजूद सैम्पल की जांच रिपोर्ट 21 दिन बाद मिल सकी है। इनमें भी महज 47 सैम्पल की जांच रिपोर्ट ही मिल सकी है। जिसमें से भी पन्द्रह सैम्पल जांच में फेल मिले।

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सीकर. खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने में जिम्मेदारों की ढिलाई आमजन की सेहत पर भारी पड़ती जा रही है। मिलावट करने वालों पर कार्रवाई को लेकर ढुलमुल रवैए के कारण मिलावट खोरों के हौंसले बुलंद हो गए। इसकी बानगी है कि दीपावली पर्व पर विशेष अभियान के सैम्पल की जांच रिपोर्ट बता रही है। आश्चर्य की बात है कि विशेष अभियान होने के बावजूद सैम्पल की जांच रिपोर्ट 21 दिन बाद मिल सकी है। इनमें भी महज 47 सैम्पल की जांच रिपोर्ट ही मिल सकी है। जिसमें से भी पन्द्रह सैम्पल जांच में फेल मिले। सबसे ज्यादा मिलावट दूध और दूध से बनी मिठाई में मिली है। वहीं नमक, दही और मावा भी जांच में फेल हो गया। जबकि 33 सैम्पल की रिपोर्ट अब तक नहीं मिल सकी है। सर्विलांस के 110 सैम्पल लिए गए थे। जांच रिपोर्ट में देरी का नतीजा है कि दोषियों पर कार्रवाई तो दूर की बात है, दीपावली पर्व पर हजारों टन संदिग्ध मिलावटी खाद्य पदार्थ लोगों ने खा लिए हैं। इधर विभाग का तर्क है कि प्रदेश के सभी जिलों में चलाए गए अभियान के सैंपल की जांच होने के कारण रिपोर्ट देरी से आई है।

सेहत को हुआ नुकसान

व्यापारियों के अनुसार दीपावली पर जिले में छह से आठ हजार टन मिठाई की खपत हुई है। जिसमें अधिकांश मिठाई दूध ओर दूध से बने उत्पादों की थी। अभियान के दौरान विभाग की ओर से 80 सैम्पल लिए गए थे। जिनमें से महज 47 सैम्पल की जांच रिपोर्ट आई है। फेल होने वाले सैम्पल में कई में सेहत के लिए घातक रसायनों की मिलावट मिली है। चिकित्सकों के अनुसार मिलावटी खाद्य पदार्थ के कारण पेट दर्द, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया और लीवर पर अतिरिक्त दवाब पड़ता है।शादियों का सीजन शुरू होने के साथ ही मिलावटी सक्रिय हो गए हैं। शादियों के सीजन शुरू होने के बाद भी दूध, मसाले आम दिनों की बराबर ही खप रहा है जबकि मिठाइयों व मावे की खपत चार गुना तक बढ़ गई है। इससे मिलावट का खतरा बढ़ गया है। मिलावट रोकने के लिए जिम्मेदार खाद्य विभाग शहर में कई स्थानों से दूध, घी और तेल के नमूनों को जयपुर भेज कर इतिश्री कर रहे हैं। जबकि शादियों के सीजन में मावे या मावे से बनी मिठाइयों की खपत अधिक होगी।

सेहत से हो रहा खिलवाड़

जिले में आम दिनों में प्रतिदिन आठ से १० क्विंटल तक मावा खप रहा है। जबकि शादियों के सीजन में खपत औसतन 15 से २० क्विंटल तक पहुंच जाती है। जिले में प्रतिदिन आठ से १० क्विंटल मावा बीकानेर, डूंगरगढ़ व लूणकरणसर से आता है। मिठाई विक्रेताओं ने बताया कि बीकानेर व डूंगरगढ़ में मावे में आरारोट व पाउडर का मिश्रण मिलाया जाता है जबकि देसी तरीके से तैयार मावा दूध से बनाया जाता है। देसी मावा बाजार में कुछ महंगा और बीकानेर व डूंगरगढ़ से आने वाला मावा सस्ता मिल रहा है। यही कारण है शादियों में मिठाई बनाने नकली मावे का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते हैं।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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