AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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वार्डन नहीं मिलते, सर्दी से बचाव के इंतजाम अधूरे
सीसीटीवी कैमरे भी नहीं, घर से लाते हैँ बिस्तर
अलवर. सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता विभाग की ओर से शहर में संचालित किए जा रहे बालक छात्रावास राम हवाले चल रहे हैं, इन छात्रावासों में बालकों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है यहां तक की सर्दी से बचाव के भी इंतजाम अधूरे हैं। राजस्थान पत्रिका की टीम ने सरकारी छात्रावासों को रात को निरीक्षण किया तो हालात परेशान करने वाले थे।-बालक छात्रावासों में वार्डन नहीं थे , वार्डन के कमरे पर ताला लगा हुआ था, जानकारी मिली की वार्डन अपने घरों में रह रहे थे और बच्चे चौकीदार के भरोसे थे। ऐसे में बालको के साथ कोई अनहोनी हो जाए या फिर आपसी गुटबाजी के चलते झगड़ा हो जाए तो घर से बुलाना पड़ता है। इतना ही नहीं अलवर का पारा जहां सर्दी में 5 डिग्री तक पहुंच गया ऐसे में भी मात्र एक कंबल के सहारे रात बिताने को मजबूर है, बचाव के लिए बच्चे घरो से बिस्तर लेकर यहां रह रहे हैं। वार्डन ने बताया कि विभाग की ओर से एक ही कंबल देने का प्रावधान है।
दिन में सरकारी कार्य के नाम पर मिलते हैं, कभी प्रशासन के शिविरो में तो कभी हास्टल के काम से बाहर मिलते हैं रात को भी नही मिलते।
अलवर शहर में वर्तमान में करीब 11 छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं जिसमें से 6 बालिका छात्रावास व 5 बालक छात्रावास है। ये सभी छात्रावास सरकारी भवनों में बने हुए हैं जिनको बनाने में करोड़ो रुपए खर्च किए गए हैं।
वार्डन का रहना जरुरीविभागीय नियमों के अनुसार छात्रावासों में वार्डन का रहना जरुरी होता है। लेकिन विभाग के ज्यादातर छात्रावासों में वार्डन रात को नदारद रहते हैं, छात्रावासों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हुए हैं, यहां रखे हुए मुवमेंट रजिस्टर में भी आने जाने वालों की सूचना नहीं लिखी जा रही है। यहां तक की वार्डन के आने जाने के बारे में भी नही लिखा गया।
घोडाफेर चौराहा पर प्रताप स्कूल के समीप चलने वाले अंबेडकर छात्रावास तृतीय में टीम पहुंची तो यहां वार्डन नहीं मिले, वार्डन के कमरे पर ताला लगा हुआ था, बच्चों ने बताया कि बहुत कम यहां पर आते हैंं। कमरों की अलमारिया खराब थी। बच्चों ने बताया कि सर्दी तेज है लेकिन विभाग की ओर से अभी तक कंबल नहीं मिले हैं, इसलिए घर से ही ला रहे हैं। यहां गद्दे थे जो काफी पुराने थे।नजर बगीची में संचालित अंबेडकर छात्रावास प्रथम में भी छात्रावास मौजूद नहीं थे, जबकि बोर्ड पर उपिस्थति के हस्ताक्षर थे, फोन पर बातचीत में अधीक्षक शिवलाल यादव ने बताया कि आज छुट्टी ली हुई है। बच्चे परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। यहां पर पानी का इंतजाम नहीं है, प्रति सप्ताह टैंकरों से पानी डलवाया जाता है। बच्चों ने बताया कि सर्दी अधिक है ओढ़ने और बिछाने बिस्तर घर से ही लाते हैं। में बाहर की तरफ रोशनी का इंतजाम अधूरा होने से अंधेरा छाया हुआ था। बच्चों ने बताया कि वार्डन शाम 6 बजे तक ही रहते हैं रात में चौकीदार ही यहां रहता है। चद्दर फटी हुई थी।नजर बगीची में ही सेचालित अंबेडकर छात्रावास तृतीय व मिरासी एक ही भवन में चल रहे हैं। यहां पर दो छात्रावासों के लिए एक ही चौकीदार मिला, ताला लगा हुआ था, चौकीदार मनमोहन ने बताया कि वार्डन नहीं है, बार बार कहने पर भी गेट नहीं खोला गया। उन्होंने कहा कि वार्डन धीरेंद्र सैनी के कहने पर ही गेट खोल जाएगा, जब वार्डन से फोन पर बात की तो बताया कि मै रणजीत नगर में रहता हूं।
वार्डन एक - तीन छात्रावास की जिम्मेदारी, किसी में भी मौजूद नहीं
वार्डन धीरेंद्र सैनी का मूल पदस्थापन अंबेडकर छात्रावास द्वितीय में हैं, तृतीय और मिरासी छात्रावास का अतिरिक्त चार्जदिया हुआ है, ये तीनों ही आसपास बने हुए हैं, इसके बावजूद एक में भी मौजूद नहीं मिले।
50 पर एक ही महिला रसोईया, कैसे बनाए खाना
भरतपुर, दौसा, करोली आदि जिलों में विभागीय छात्रावास में 25 बच्चों पर एक रसोईए के व्यवस्था है लेकिन अलवर में 50 से 75 बच्चों की क्षमता वाले छात्रावासो में एक ही महिला रसोईया खाना व नाश्ता तैयार करती हैं। ऐसे में शाम 5 बजे तक खाना मिलता है।
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Published on:
21 Dec 2025 12:05 pm


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