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ढूंढ नदी ने बदली तकदीर: पहले सूखा, अब किसानों के लिए समृद्धि का ‘सवेरा’

पहले बोरवेल और कुएं 250 से 300 फीट गहराई तक सूखे पड़े थे, वहीं अब उन्हीं स्रोतों से 100 फीट पर ही मीठा पानी छलक रहा है।

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Dhundh River
ढूंढ नदी के पानी से भरा सिंदौली बांध, जिससे कई गांवों में भूजल स्तर बढ़ गया है।

इस बार मानसून ने ऐसा करिश्मा किया कि सूखे खेतों ने फिर से हरियाली की चादर ओढ़ ली। वर्षों बाद ढूंढ नदी में लगातार बहते पानी ने किसानों के चेहरों पर मुस्कान लौटा दी है। नदी में बहाव और सिंदौली बांध में जलभराव से न केवल इलाके की प्यास बुझी है, बल्कि भूजल स्तर में भी चमत्कारिक सुधार दर्ज हुआ है। जहां कुछ माह पहले तक बोरवेल और कुएं 250 से 300 फीट गहराई तक सूखे पड़े थे, वहीं अब उन्हीं स्रोतों से 100 फीट पर ही मीठा पानी छलक रहा है। ग्रामीणों के प्रयास से तैयार सिंदौली बांध इस वर्ष पूरी तरह लबालब भर गया। एक बार भारी बरसात में बांध टूट भी गया था, लेकिन गांववालों ने अपने खर्चे से मरम्मत कर इसे फिर से जीवित कर दिया। अब बांध में चादर चल रही है और पानी लगातार रिसकर धरती की नसों में समा रहा है। इस प्राकृतिक रिचार्जिंग ने सिंदौली, फालियावास, सांख, श्रीरामपुरा, गुढ़ावास, महाराजपुरा, खिजूरिया, रूपपुरा, बिशनपुरा, कानड़वास, रलावता, बालावाला, हिंगोनिया और जीतावाला जैसे दो दर्जन गांवों में भूजल स्तर को लगभग 100 से 150 फीट तक बढ़ा दिया है।

ढूंढ नदी का जल बहाव बना जीवन का संचार
इस बार कानोता बांध से लेकर सिंदौली बांध तक ढूंढ नदी का प्रवाह बना रहा। नदी में बने अवैध खनन के गड्ढे भी जलाशय का रूप ले चुके हैं। इन गड्ढों में पानी भरने से आसपास की जमीन में रिसाव बढ़ा, जिससे भूजल भंडार प्राकृतिक रूप से रिचार्ज हुए। यही पानी अब किसानों के खेतों को सींच रहा है। नदी आगे बढ़कर कोटखावदा क्षेत्र में प्रवेश करती है और अंत में दौसा जिले की मोरेल नदी में समा जाती है, जिससे पूरे क्षेत्र में जल संतुलन बना है।

दमकने लगे खेत
सिंदौली और ढूंढ नदी के पुनर्जीवन ने खेतों में जीवन फूंक दिया है। पहले जहां धूल उड़ती थी, अब वहीं हरियाली लहरा रही है। किसानों ने चना, सरसों और जौ की बुवाई शुरू कर दी है। कई खेतों में सरसों की फसल सिंचाई के बाद तेजी से बढ़ रही है। कुछ किसानों ने गेहूं की बुवाई भी शुरू कर दी है।

कादेड़ा के कुएं में करीब पांच फीट की गहराई पर ही पानी है।

अवैध खनन के गड्ढे बने जल भंडार
नदी के किनारों पर जहां-जहां मिट्टी का अवैध खनन हुआ था, अब वही गड्ढे प्राकृतिक जलाशय बन गए हैं। कानोता से लेकर सिंदौली बांध तक नदी के आर-पार इन गड्ढों में पानी भरा हुआ है। इससे न केवल भूजल स्तर में सुधार आया है बल्कि इन जगहों पर पक्षी और वन्यजीव भी दिखाई देने लगे हैं।

भूजल स्तर में अद्भुत सुधार-आंकड़ों में खुशहाली
कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इस बार क्षेत्र के दो दर्जन गांवों में जल स्तर 250-300 फीट से घटकर औसतन 100 फीट तक आ गया है। भूजल में यह सुधार पिछले पांच वर्षों में सबसे बड़ा है। किसानों का कहना है कि अब उन्हें फसल सीजन में पानी की कोई किल्लत नहीं है और वे अगली फसल के लिए आत्मविश्वास से तैयारी कर रहे हैं।

‘ढूंढ में पानी बहा, तो किस्मत भी बह निकली’
-फालियावास निवासी विनय मीना मुस्कुराते हुए कहते हैं, ’जब ढूंढ नदी में पानी बहा, तो लगा जैसे हमारी किस्मत भी बह निकली। दो साल से लगातार अच्छी बरसात से खेती में नई जान आ गई है।’

-फालियावास के किसान रमेश प्रधान बताते हैं, ‘पहले मुश्किल से आठ-दस फव्वारे चल पाते थे, अब पन्द्रह फव्वारे एक साथ चल रहे हैं। खेतों की सिंचाई भी पहले से जल्दी पूरी हो जाती है।’

-चांद की ढाणी निवासी गिर्राज मीना बताते हैं कि ढूंढ नदी में जब पानी बहता है तो कई किलोमीटर दूर तक इसका असर दिखाई देता है। पहले बोरवेल से मुश्किल से आधा घंटा पानी निकलता था, अब तीन घंटे तक लगातार फव्वारे चल रहे हैं।

फैक्ट फाइल
-भूजल स्तर 250-300 फीट से घटकर 100-120 फीट तक आया।
-सिंदौली बांध में लगातार जलभराव से 24 गांवों को लाभ।
-कुओं और बोरवेलों में छलकता पानी, फव्वारे दोगुने चले।
-खेतों में सरसों, चना और गेहूं की बुवाई जोरों पर।
-कृषि उत्पादन में 30-40% तक बढ़ोतरी की संभावना।
-सिंदौली बांध और ढूंढ नदी के पुनर्जीवन से किसानों के चेहरों पर लौटी रौनक।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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