AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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नागौर. किसी समय परंपरागत खेती, सीमित आमदनी और मौसम की मार से जूझता नागौर का किसान अब बदलती तस्वीर का प्रतीक बन रहा है। खेत-खलिहानों में आज सिर्फ फसलें नहीं लहलहा रहीं, बल्कि कृषि नवाचार, तकनीक और उद्यमिता की खुशबू भी फैल रही है। पढ़े-लिखे युवा खेती को व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं भी आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं। किसान दिवस के अवसर पर यह बदलाव न सिर्फ उम्मीद जगाता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत भविष्य का संकेत भी देता है।
परंपरागत किसान से एग्री-एंटरप्रेन्योर तक
नागौर जिले के कई किसान अब हल-बैल और पारंपरिक फसलों तक सीमित नहीं हैं। ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग, पॉली हाउस, जैविक खेती, उन्नत बीज और डिजिटल मार्केटिंग जैसे नवाचारों ने किसानों की सोच बदल दी है। पहले खेती सिर्फ जीविका का साधन मानी जाती थी, अब वही खेती मुनाफे का मॉडल बन रही है। किसान खुद को अब ‘एग्री-एंटरप्रेन्योर’ के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
कम भूमि, अधिक आय का मॉडल
जिले में कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं, जहां सीमित भूमि में किसान अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। कृषि विभाग व उद्यानिकी विभाग की ओर से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दिए जा रहे सरकारी अनुदान से सब्जी उत्पादन, मसाला फसलें, फूलों की खेती, औषधीय पौधे और फलोत्पादन जैसे विकल्पों ने किसानों को नई राह दिखाई है। एक-दो बीघा जमीन में हाई वैल्यू क्रॉप्स उगाकर किसान सालाना लाखों रुपए तक कमा रहे हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है, बल्कि कृषि के प्रति युवाओं का भरोसा भी लौट रहा है।
पढ़े-लिखे युवा बना रहे खेती को स्टार्टअप
कृषि से दूर भागते युवाओं की धारणा अब टूट रही है। इंजीनियरिंग, ग्रेजुएशन और डिप्लोमा कर चुके युवा खेती को आधुनिक दृष्टिकोण से देख रहे हैं। मोबाइल ऐप से मौसम की जानकारी, ऑनलाइन मंडी भाव, सोशल मीडिया के जरिए सीधे ग्राहकों से जुड़ाव और ब्रांडिंग ये सब अब नागौर के खेतों की नई पहचान बन रहे हैं। युवा किसान कृषि को स्टार्टअप की तरह चला रहे हैं, जहां योजना, निवेश और मार्केटिंग सब कुछ प्रोफेशनल तरीके से हो रहा है।

स्वयं सहायता समूहों से सशक्त होती महिलाएं
ग्रामीण महिलाओं की भूमिका भी इस बदलाव में अहम बनकर उभरी है। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं सब्जी उत्पादन, बीज प्रसंस्करण, डेयरी, अचार-पापड़ और मूल्यवर्धन के कार्यों से आय अर्जित कर रही हैं। कई गांवों में महिलाएं समूह बनाकर सामूहिक खेती कर रही हैं, जिससे उन्हें आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक पहचान भी मिल रही है। यह बदलाव ग्रामीण समाज की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है।
नवाचार से बढ़ा मुनाफा, घटा जोखिम
कृषि नवाचारों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे जोखिम कम और मुनाफा अधिक हुआ है। सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों से पानी की बचत हो रही है, जैविक खेती से लागत घट रही है और गुणवत्ता बढ़ रही है। फसल विविधीकरण ने किसानों को एक ही फसल पर निर्भर रहने की मजबूरी से बाहर निकाला है। अब किसान बाजार की मांग के अनुसार फसल चुन रहे हैं।

किसान: अन्नदाता के साथ नवाचार का वाहक
किसान दिवस पर यह स्पष्ट है कि नागौर का किसान अब सिर्फ अन्न पैदा करने वाला नहीं, बल्कि नवाचार का वाहक भी बन चुका है। उसकी मेहनत में अब तकनीक, ज्ञान और उद्यमिता का संगम दिखाई देता है। अगर यही गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में नागौर कृषि नवाचारों का मॉडल जिला बन सकता है। सांजू तहसील के चोसली निवासी प्रगतिशील किसान रतनाराम चौधरी ने बताया कि उन्होंने कृषि अधिकारियों व अन्य किसानों से प्रेरणा लेकर खेत में पॉली हाउस बनवाना शुरू किया है। पानी के लिए जल हौज पहले ही बनवा चुके हैं। यह बदलाव हर किसान के लिए प्रेरणा है कि खेती अब घाटे का सौदा नहीं, बल्कि समझदारी और नवाचार के साथ अपनाई जाए तो यह समृद्धि का रास्ता बन सकती है।
खीरा की खेती के लिए पॉली हाउस बेहतर
मूण्डवा के पास अपने खेत में 10 हजार वर्ग मीटर में चार पॉली हाउस व दो जल हौज बनाने वाली बाऊ देवी ने बताया कि पॉली हाउस में खीरा की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। खीरा गर्म मौसम की फसल है, और पॉली हाउस में तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करना आसान होता है, जिससे खीरा की खेती और भी आसान हो जाती है। बाऊ देवी ने बताया कि उनके पॉली हाउस पूरी तरह बारिश के पानी पर आधारित हैं, जिनमें वर्षभर खीरा का उत्पादन किया जाता है। इसमें गोबर खाद का उपयोग किया जाता है और बिजली की व्यवस्था सौर ऊर्जा से की जा रही है।
समस्या : बाजार की उपलब्धता
जिले के प्रगतिशील किसानों ने बताया कि सरकार खेती में नवाचारों के लिए अनुदान तो देती है, लेकिन बाजार की उपलब्धता आज भी बड़ी समस्या है। पॉली हाउस में खीरा की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि उनके लिए नागौर फल-सब्जी मंडी एकमात्र विकल्प है। डेगाना क्षेत्र के किसान पुष्कर मंडी में माल लेकर जाते हैं, इसके अलावा प्रदेश की कई बड़ी मंडियां जैसे जोधपुर व मुहाना में अच्छे भाव मिलते हैं, लेकिन दूरी अधिक होने से किराया-भाड़ा का खर्च ज्यादा आता है।
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Updated on:
23 Dec 2025 10:13 am
Published on:
23 Dec 2025 10:12 am


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