AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Avadh Ojha: दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी में शामिल होकर सियासी पारा बढ़ाने वाले अवध ओझा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने राजनीति छोड़ने के पीछे जहां खुद की कमजोरी का हवाला दिया, वहीं राजनीति के बदलते परिवेश पर खुलकर चर्चा की है। आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और मशहूर कोचिंग टीचर अवध ओझा का कहना है कि राजनीतिक प्रैक्टिकल और थ्योरी में बड़ा अंतर होता है। उनका थ्योरी वाला पक्ष तो मजबूत है, लेकिन प्रैक्टिकल के मामले में वह अभी कमजोर हैं। इसलिए अभी उन्हें होमवर्क की जरूरत है। इसी के चलते उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी।
दरअसल, मशहूर कोचिंग टीचर अवध ओझा ने साल 2024 में दो दिसंबर को आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली। इसके बाद जनवरी-फरवरी 2025 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में मनीष सिसोदिया की सीट पटपड़गंज से उन्हें आम आदमी पार्टी ने चुनाव में उतारा। हालांकि इस सीट पर वह चुनाव हार गए। यह सीट पिछले 10 सालों से आम आदमी पार्टी के पास थी और यहां से दिल्ली के डिप्टी सीएम रह चुके मनीष सिसोदिया एमएलए बन रहे थे, लेकिन साल 2025 में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई और रवि नेगी विधायक बने। चुनाव में मिली हार के बाद अवध ओझा राजनीतिक गतिविधियों से दूर हो गए और 30 नवंबर को उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की आधिकारिक घोषणा कर दी।
हाल ही में एक पॉडकास्ट में अवध ओझा से पूछा गया कि आम आदमी पार्टी और राजनीति क्यों छोड़ी? इसपर अवध ओझा ने कहा "मेरी थ्योरी मजबूत है, लेकिन प्रैक्टिकल में कमी रह गई। हम किसी भी फील्ड में जाएं, हर चीज के दो पहलू हैं। जैसे जर्नलिज्म का कोर्स करने वाला लड़का जब फील्ड में जाता है तो उसे पता चलता है कि थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों ही अलग हैं। वैसे ही मुझे राजनीति का प्रैक्टिकल पहलू बिल्कुल पता ही नहीं था। मार्क्स और लेनिन को पढ़ना और फिर फील्ड में उतरकर उन बातों को फेस करना, दोनों ही अलग हैं। मेरा थ्योरिकल पार्ट बहुत मजबूत था, राजनीति के सारे कॉन्सेप्ट भी क्लियर थे, लेकिन प्रैक्टिकल पार्ट में कमी रह गई।"
अवध ओझा ने मौजूदा राजनीति को नकारात्मक बताते हुए कहा "अगर हम साल 1951 में हुआ बिहार चुनाव देखें तो शिक्षक और पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर नाई समाज से थे। लेकिन चुनाव के दौरान किसी ने उनका समाज नहीं बल्कि यह देखा कि वह एक शिक्षक हैं। इसीलिए वह चुनाव जीते और बिहार के सीएम भी बने। वह साल 1951 का इंडिया था। जबकि साल 2025 के इंडिया में एक शिक्षक अवध ओझा चुनावी मैदान में बदलावों की पोटली लेकर उतरता है, लेकिन हार जाता है। यह बड़ा नकारात्मक पहलू है।"
अवध ओझा ने कहा कि उन्हें बिहार चुनाव में केसी सिन्हा की हार से तगड़ा झटका लगा। अवध ओझा कहते हैं "मैंने सोचा था कि चलो दिल्ली की जनता ने मुझे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि मैं अभी नया-नया था। इसलिए भविष्य के लिए फिर से तैयारी में जुटा था, लेकिन जब बिहार चुनाव में केसी सिन्हा चुनाव हारे तो यह मेरे लिए शॉकिंग था। डॉ. केसी सिन्हा ने 70 किताबें लिखीं हैं। इसके बाद भी चुनाव में जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।
अवध ओझा आगे कहते हैं "साल 1951 की लोकसभा में एक से बढ़कर एक पढ़े-लिखे नेता पहुंचे, जबकि उस समय पूरे देश की साक्षरता दर मात्र 13 प्रतिशत थी। मुझे ऐसा लगा कि यह दौर ही अलग है। रही बात भागने की तो कुमार विश्वास जैसे पढ़े-लिखे दिग्गज अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता भाग गए। यह इसलिए हुआ कि शायद होमवर्क में कमी रह गई। मैं होमवर्क पूरा करूंगा। इसके बाद इसपर विचार कर सकता हूं, लेकिन फिलहाल अभी डायरेक्ट राजनीति में एंट्री नहीं करूंगा।"
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
09 Dec 2025 02:12 pm


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