AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोबाइल पर चिपके रहने की लत न केवल बच्चों बल्कि सभी आयु वर्ग के लोगों की मानसिक व शारीरिक सेहत पर विपरीत असर डाल रही है। राजस्थान के जालोर जिले में बहू-बेटियों को कैमरायुक्त मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक का फरमान जारी करने वाले भी भले ही इस तर्क का सहारा ले रहे हैं, लेकिन आज के दौर में जब स्मार्टफोन की उपयोगिता अनिवार्य सी लगने लगी हो, वहां यह प्रतिबंध न केवल सिर्फ महिलाओं को टारगेट करने वाला है बल्कि बेतुका भी है। चिंता की बात यह भी कि समाज सुधार से जुड़े कई सराहनीय फैसले लेने वाली पंचायतें लोगों के निजी जीवन पर असर डालने वाले ऐसे मनमाने फैसले थोपने लगी हैं।
हैरत की बात यह है कि सामाजिक पंचायत में महिलाओं पर यह प्रतिबंध सार्वजनिक समारोहों के साथ-साथ पड़ोसियों के घर ले जाने तक पर लगाया गया है। जबकि घर से बाहर स्वयं को सुरक्षित रखने के दौरान बेहतर तकनीक वाले फोन की उपयोगिता ज्यादा रहती है। इसमें दो राय नहीं कि देशभर में सामाजिक पंचायतें दहेज के लेन-देन व नशे की प्रवृत्ति पर रोक के साथ-साथ बालिकाओं को पढ़ाने की अनिवार्यता जैसे सुधारात्मक फैसले भी लेती हैं। ऐसे फैसले निश्चित ही सामाजिक बदलाव की कहानी कहते हैं। लेकिन आधुनिक दौर में जब शिक्षा का प्रसार हुआ है और महिलाएं तरक्की के नित नए पायदान चढ़ रही हैं, ऐसा फरमान संचार व संपर्क के माध्यमों को सीमित करने वाला तो है ही, महिलाओं को आगे बढऩे से भी रोकने वाला है। विचार करें, कोई भी ऐसे प्रतिबंधात्मक फरमानों को दबाव में महिलाएं मान भी लें तो क्या उनके लिए नए खतरे पैदा नहीं होने लगेंगे? आपातकाल में स्मार्टफोन को मददगार बनाने के लिए, बैंकिंग सेवाओं के इस्तेमाल में और यहां तक कि पढ़ाई-लिखाई में स्मार्टफोन की उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है। प्रतिबंधकारी फरमान न केवल पुरानी सोच का परिचायक है बल्कि उस प्रवृत्ति की ओर भी संकेत करता है जिसमें लोग खुद मुंसिफ बनकर दूसरों पर मनमाने फरमानों की पालना को लेकर दबाव डालते हैं जो कानूनी दृष्टि से भी अनुचित ही है।
समय-समय पर देशभर में अदालतें भी शिक्षण संस्थाओं में स्मार्टफोन रखने पर लगाए गए प्रतिबंधों को अनुचित बताती रही है। सवाल यह भी कि सिर्फ बहू-बेटियों के लिए ही ऐसे प्रतिबंध क्यों? स्मार्टफोन की उपयोगिता समझते हुए इसके खतरों से बचने के उपायों की दिशा में विचार करना होगा। जरूरत स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर आत्म-अनुशासन की है। जरूरत इस बात की है कि स्मार्टफोन को सुविधा के रूप में इस्तेमाल किया जाए, न कि लत के रूप में। आत्म-अनुशासन के बिना तकनीक ज्ञान का माध्यम बनने के बजाय ध्यान भटकाने का साधन बन जाती है। समय, उद्देश्य और सीमाओं के साथ स्मार्टफोन का उपयोग ही स्वस्थ डिजिटल जीवन की बुनियाद है।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
24 Dec 2025 04:45 pm


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