Patrika Logo
Switch to English
होम

होम

वीडियो

वीडियो

प्लस

प्लस

ई-पेपर

ई-पेपर

प्रोफाइल

प्रोफाइल

कर्पूर चन्द्र कुलिश जन्म शताब्दी वर्ष : आयु बढ़ानी है तो बाल भाव को टिकाए रखिए

पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चंद्र कुलिश जी के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनके रचना संसार से जुड़ी साप्ताहिक कड़ियों की शुरुआत की गई है। इनमें उनके अग्रलेख, यात्रा वृत्तांत, वेद विज्ञान से जुड़ी जानकारी और काव्य रचनाओं के चुने हुए अंश हर सप्ताह पाठकों तक पहुंचाए जा रहे हैं।

🌟 AI से सारांश

AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

🌟 AI से सारांश

AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

पूरी खबर सुनें
  • 170 से अधिक देशों पर नई टैरिफ दरें लागू
  • चीन पर सर्वाधिक 34% टैरिफ
  • भारत पर 27% पार्सलट्रिक टैरिफ
पूरी खबर सुनें

बालकों के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान के रूप होते हैं। दीन-दुनिया से बेखबर बच्चों की अपनी दुनिया होती है और अपनी ही मस्ती। बच्चों के इसी स्वरूप का सीधा जुड़ाव आनंद भाव से है। यह आनंद भाव यदि कोई जीवन भर बनाए रखे तो वह बालभाव ही अमृतभाव हो जाएगा। इकतीस बरस पहले श्रद्धेय कुलिश जी ने अपने एक आलेख में इसी बालभाव और उसकी अपरिमित शक्तियों का विवेचन किया। बाल दिवस (14 नवंबर) पर प्रासंगिक इस आलेख के प्रमुख अंश:
बा लक का वास्तव मेें स्वरूप क्या है? बालकों में जो अमृत भाव विद्यमान रहता है। वह किसी भी अवस्था में नहीं मिलेगा। उनमें अमृत भाव का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इनमें तीव्र बुद्धि, साहस और अद्वितीय कल्पना शक्ति होती है। वह एक अनोखे स्वप्नलोक में विचरण करता रहता है। तिलस्मी कहानियां और परी कथाएं लिखने के पीछे भी यही भाव है कि बालक स्वप्नजीवी अधिक होता है। वह आपसे कहीं बड़ा होता है। उसका अन्तरजगत बहुत बड़ा होता है।
यह पौगंड अवस्था (लडक़पन) है। इसके बाद तरुणावस्था व किशोरावस्था आती है। बालभाव बहुत कम दिनों तक टिक पाते हैं। लेकिन जो लोग आयु बढऩे के बाद भी इस आनंद को जीवित रख लेते हैं वे नि:संदेह जीवन की सबसे बड़ी शक्ति संजोए हैं। कई लोग मस्तमौला किस्म के होते हैं, जो किसी भी चिंता में, विषाद में, इस भाव को नहीं खोते। आनंद भाव को बनाए रखते हैं और यही बाल भाव है। इस बाल भाव को जो जितना टिकाए रखता है, समझ लीजिए उसकी आयु उतनी ही बढ़ जाएगी। मेरा अभिप्राय इतना ही है कि बालक के अमृतभाव को हम समझें। बालक का एक रूप जहां अमृतभाव है वहीं उसका दूसरा रूप शक्ति पुंज होता है। बालक शक्ति पुंज क्यों माना जाए? इसका कारण यह है कि बालक थकना ही नहीं जानता। आप मेले में जाएंगे तो सबसे आगे, खेल तमाशों में कहिए सबसे आगे और पर्व त्योहारों में सबसे आगे। उधम हो, धूम-धड़ाका हो तो, आग लग जाए तो वह सबसे आगे भागता है। वह जानता ही नहीं कि किसी में कोई भेद है। उसे किसी भी काम में लगा दो, वह इतना आउटपुट देगा जो बड़़े-बड़े लोग नहीं देते। हम उसकी इस अपरिमित शक्ति का कभी अनुमान नहीं कर पाते। इसका एक कारण है। वैदिक विज्ञान की एक दृष्टि है- हमारा चित्याग्नि से निर्माण होता है। पच्चीस वर्ष की आयु तक चित्याग्नि का विकास होता रहता है। बालक के बढऩे के साथ ही उसकी शक्ति उसमें आती रहती है। क्षय होता ही नहीं- कितना ही खर्च कर ले वह थकेगा नहीं। उसकी ऊर्जा की इतनी जल्दी पूर्ति हो जाती है कि अजस्र स्रोत की तरह काम करता रहता है।
बंधन डालने से व्यक्तित्व का दमन
बा लक की शक्ति का पार नहीं। हनुमान जी के बाल्यकाल की पौराणिक कहानियां पढ़ें तो उनमें उस शक्ति का थोड़ा-बहुत परिचय पा सकते हैं। वर्ना बालक की शक्ति को रोकना हमारे बस की बात नहीं है। हां, हम पा सकते हैं उसको यदि उस बाल भाव को सदैव संजोए रखें। बालक पर किसी प्रकार का अनुशासन, बंधन, नियम लागू नहीं होने चाहिए। पांच वर्ष तक की अवस्था को बाल भाव ही माना गया है। इस पौगंड अवस्था में बालक पर किसी प्रकार का अंंकुश ठीक नहीं जबकि आजकल दो-ढाई वर्ष के बच्चे को ही स्कूल भेज देते हैं। यह उचित नहीं है। बालक के व्यक्तित्व का दमन करना हो तो इस अवस्था में उस पर बंधन डालिए, अंकुश डालिए। चाहे पढ़ाई का नहीं, समय पर जाकर एक स्थान पर बैठने का भी अंकुश, अंकुश ही होता है। यह लालित्य को, उसके माधुर्य को नष्ट कर देगा।
(9 फरवरी 1994 को ‘वत्सल भाव और बाल साहित्य’ आलेख के अंश)

बाल साहित्य का अभाव चिंताजनक
बा ल साहित्य चाहे कितना ही समृद्ध क्यों न रहा हो, किन्तु वर्तमान में इसका अभाव चिंताजनक है। इसका कारण यह है कि बाल्यावस्था के प्रति हमारा जैसा दृष्टिकोण होना चाहिए वैसा है नहीं। दूसरा कारण यह भी है कि बाल साहित्यकारों के लिए कोई प्रेरक तत्व नहीं है जो उन्हें इस कार्य में जुड़े रहने के लिए प्रेरित करे। बाल साहित्य से अपना भविष्य जोडऩे के लिए उन्हें कोई सम्बल मिले ऐसी व्यवस्था भी हमारे यहां अभी दिखाई नहीं देती। शिक्षालयों में भी इस प्रकार का दृष्टिकोण देखने को नहीं मिलता। इस स्थिति को सहते रहना ठीक नहीं है।
(कुलिश जी के आलेखों पर आधारित पुस्तक ‘दृष्टिकोण’ से )

राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

अभी चर्चा में
(35 कमेंट्स)

अभी चर्चा में (35 कमेंट्स)

User Avatar

आपकी राय

आपकी राय

क्या आपको लगता है कि यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा?


ट्रेंडिंग वीडियो

टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

User Avatar