AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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कौन कह सकता था कि मरुभूमि के एक कस्बे बौंली में जन्मे और चाकसू में प्रारंभिक शिक्षा पाने वाले जसदेव सिंह एक दिन अपनी आवाज के दम पर समूची दुनिया में पहचाने जाएंगे? जसदेव सिंह ने कड़े परिश्रम से अपनी वाणी को साधा। मधुर आवाज, साफ-सुथरी शैली, सही उच्चारण, तेज निगाह और धाराप्रवाह गति के संग जसदेव सिंह जब बोलते थे तो उनकी कमेन्ट्री सुनने वालों की सांसे मानो थम जाती थी।
पंजाबी भाषी इस युवक जिसकी मातृभाषा गुरुमुखी थी और बाद में हिंदी का सर्वश्रेष्ठ उद्घोषक बना। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी चारों भाषाओं पर वे समान अधिकार रखते थे। हिंदी के सुविख्यात साहित्यकार डॉ. सरनाम सिंह अरुण ने उन्हें जयपुर के महाराजा कॉलेज में बोलता देख प्रोत्साहित किया। जसदेव सिंह ने स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती गीता बजाज की पुत्री कृष्णा से विवाह किया था। रेडियो पर काम करने का जुनून ऐसा कि पांच मई को शादी और छह मई को सुबह साढ़े पांच बजे आकाशवाणी पहुंच गए। देश-दुनिया के अधिकतर लोग समझते हैं कि जसदेव सिंह खेल के ही उद्घोषक थे। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि उन्होंने गुरु नानक देव के जन्मोत्सव पर पाकिस्तान में ननकाना साहब जाकर कमेन्ट्री की। श्रीमती गांधी और संजय गांधी की अंतिम यात्रा व भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की उड़ान का जीवंत हाल सुनाया। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस परेड का आंखो देखा हाल बरसों तक जसदेव सिंह ही सुनाते रहे। फिराक गोरखपुरी को मिले ज्ञानपीठ अवार्ड की कमेन्ट्री भी की। उन्होंने बरसों दूरदर्शन पर लोकप्रिय कार्यक्रम प्रश्नोत्तरी भी प्रस्तुत किया।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों में सुनील गावस्कर और कपिल देव से उनकी मित्रता थी। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से भी अलंकृत किया। वे दुनिया के पहले उद्घोषक थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अधिवेशन में 16 सितंबर 1988 को ओलंपिक ऑर्डर से नवाजा गया। उनके प्रशस्ति पत्र में लिखा गया कि आप शब्दों की शक्ति को पहचानते हैं और खेलों के लिए उसका सुंदर और सही इस्तेमाल करते हैं।
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जसदेव सिंह को उर्दू - हिंदी की सैकड़ों शायरी व कविताएं याद थीं। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों आलेख लिखे। उन्होंने एक हॉलीवुड फिल्म में अभिनय भी किया। आवाज का यह जादूगर २५ सितंबर को हमेशा के लिए खामोश हो गया।
अशोक राही
लेखक और व्यंग्यकार
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