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शरीर ही ब्रह्माण्ड – तीन शरीर : तीन ही चिकित्सा

कामना का केन्द्र केवल मन होता है। मन का निर्माण अन्न से होता है। शरीर-मन-बुद्धि-आत्मा के अन्न भिन्न-भिन्न होते हैं और सभी त्रिगुणी (सत्व-रज-तम) रूप होते हैं। ‘जैसा खावे अन्न-वैसा होवे मन।’

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फोटो: पत्रिका

सूर्य जगत का आत्मा है, पिता है। पृथ्वी माता है। सूर्य आदित्य है, पृथ्वी अग्नि है, अन्तरिक्ष वायु-क्षेत्र है। यही रोदसी त्रिलोकी है, अव्यय-अक्षर-क्षर रूप मृत्यु लोक है। यही मन-प्राण-वाक् रूप आत्मा का स्वरूप है। हमारा शरीर इसी की प्रतिकृति है। यह भी कारण-सूक्ष्म-स्थूल तीन स्तरों पर अव्यय-अक्षर-क्षर रूप ही है। कारण शरीर प्राणीमात्र में समान है। इसमें सृष्टि का मन रूप पुरुष रहता है। सृष्टि में एक ही पुरुष, एक ही मन होता है। शेष इसके विकार रूप हैं।

अव्यय पुरुष-श्वोवसीयस मन रूप-जीवन की दिशा तय करता है। यही योग-भोग-रोग का कारण बनता है। यही सृष्टि की ओर दौड़ता है। इसका एकमात्र लक्ष्य ही 'एकोऽहं बहुस्याम्’ है। यही इस भ्रान्ति में (मायाजाल) फंसकर चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। हर योनि की जानकारियां कारण शरीर में रहती हैं। ये ही कामना का कारण बनती हैं। कामना का ही नाम माया है।

कामना का केन्द्र केवल मन होता है। मन का निर्माण अन्न से होता है। शरीर-मन-बुद्धि-आत्मा के अन्न भिन्न-भिन्न होते हैं और सभी त्रिगुणी (सत्व-रज-तम) रूप होते हैं। 'जैसा खावे अन्न-वैसा होवे मन।' अन्न स्थूल भी होता है-सूक्ष्म भी (विचार रूप), किन्तु मन तो सूक्ष्म ही होता है। कामना भी सूक्ष्म ही होती है। दोनों में ही क्रिया नहीं होती, किन्तु अन्न के गुण-दोष विकार रूप में मन को प्रभावित करते हैं- इच्छाएं बदलती हैं। भिन्न-भिन्न अन्न की ओर मन को आकर्षित करती हैं। ये ही भोग-रोग का स्वरूप निर्मित करती है।


अव्यय के केन्द्र में ही अक्षर की प्राणात्मक क्रियाएं कार्य करती हैं। दोनों मिलकर हमारे सूक्ष्म शरीर के रूप में कार्य करते हैं। अक्षर ही परा प्रकृति है, शक्ति है, चेतना है। निमित्त कारण है। इसकी तीन कलाएं—ब्रह्मा-विष्णु-इन्द्र- हमारा हृदय कहलाती हैं। दो कलाओं- अग्नि और सोम के साथ आगे विश्व का निर्माण करती हैं। ये विश्व अग्नि-सोमात्मक कहलाता है। जीवात्मा भी अक्षर प्राण रूप सूक्ष्म भाव में रहता है। हृदय में ही जीव का मन और इच्छाएं पैदा होती हैं।


जीवात्मा स्पन्दनात्मक तत्त्व है, जिस पर सौर मण्डल के सभी ग्रहों-उपग्रहों-नक्षत्रों के स्पन्दनों का प्रभाव पड़ता है। आत्मा ज्योति है, ज्योतिष आत्मा का शास्त्र है। इसमें ही ग्रहों की प्रभाविकता के सूत्र समाहित हैं। आत्मा का यात्रा मार्ग भी चन्द्रमा के माध्यम से, पितरों के प्राणों से प्रभावित रहता है। पृथ्वी और शरीर दोनों पर ये प्रभाव समान रूप से पड़ते हैं। शरीर के प्रत्येक धातु पर किसी न किसी ग्रह का स्वामित्व है। पृथ्वी पर भी किसी न किसी मणि-रत्न की उत्पत्ति का कारण कोई ग्रह विशेष का प्रभाव ही होता है। अत: इनका शरीर की धातु विशेष से सम्बन्ध होना वैज्ञानिक तथ्य है। शरीर और अन्य सभी पार्थिव-प्राकृतिक तत्वों में भी चार वर्ण होते हैं। चाहे देवता हो, या असुर। ये ही रोग और चिकित्सा में प्रभावी होते हैं।


शरीर क्षर पुरुष का रूप है। तीनों भीतर के अदृश्य अंगों (आत्मा-मन-बुद्धि) का दर्पण है। अव्यय से जुड़े प्रारब्ध, अक्षर से जुड़े अधिदैव तथा क्षर से जुड़े आधिभौतिक प्रभावों को शरीर में देखा जा सकता है। स्थूल शरीर तो मूल में अन्नमय कोश ही है। इसके भीतर चार अन्य कोश (प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय) भी होते हैं। अन्न के द्वारा शरीर का पोषण होता है।

शरीर का निर्माण भी माता के शरीर से होता है। जो अन्न माता का होता है, वही सन्तान का होता है। यही अन्न सन्तान के स्वास्थ्य का रक्षक होता है। जब तक यह अन्न उपलब्ध होता है, सन्तान का शरीर स्वस्थ रहता है। अन्न से ही क्रमश: रस-रक्त-मांस-मेद-अस्थि-मज्जा-शुक्र-ओज और मन बनते हैं।


आज अन्न में एक नया दोष आ गया है, जो अनचाहे भी प्रत्येक प्राणी को प्रभावित करता है। दूषित अन्न, दूषित मन, दूषित विचार। इनसे अन्त:स्रावी ग्रंथियों के स्राव भी दूषित हो जाते हैं। जो इनसे जुड़े अंग-विशेष में रोगों को उत्पन्न करते हैं। यह है विकास का उपहार-मानवता को। विज्ञान और शिक्षा का चमत्कार। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। साथ में उन्नत बीज घर-घर में रोग को निमंत्रण दे रहा है। विशेषकर कैंसर को। हर शरीर यातना का केन्द्र बनता जा रहा है। औषधियां निष्प्रभावी हो रही हैं। व्यक्तित्व टूट रहे हैं।

शास्त्रों में उपचार के तीन माध्यम बताए गए हैं—मणि-मंत्र-औषध यानी तीन शरीर, तीन प्रकार की रोगों की श्रेणियां और तीन ही प्रकार के चिकित्सा तंत्र भारतीय चिकित्सकीय परम्परा में वर्णित है। ये ही वैज्ञानिकता है प्राकृतिक स्वरूप की। तीनों ही श्रेणियों के रोग प्रकट तो शरीर में ही होते हैं, जैसे दर्पण में बाह्य स्वरूप दिखाई देता है। शरीर भी जड़ है, दर्पण की तरह। दर्पण की चिकित्सा नहीं होती। जबकि आज हो यही रहा है। आयुर्वेद आयु का शास्त्र है जिसमें सम्पूर्ण ज्ञान का संग्रह है। तीन शरीर, पांच कोश, सप्त गुहा, सप्त धातु, मन-प्राण-वाक्, वात-पित्त-कफ, सत्व-रज-तम, ऋतु-ज्ञान आदि सभी तो उपलब्ध हैं।


शरीर ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। जो बाहर प्रकृति में है, वही भीतर हो रहा है। हमारा शरीर प्रकृति के नियंत्रण में कार्य करता है। श्वास-प्रश्वास, हृदय गति, तापमान, बीज का निर्माण, जीव की यात्रा, पुरुष देह से स्त्री देह में स्थानान्तरण, संस्कार, नई देह का निर्माण, सात पीढिय़ों का सूत्र आदि सभी प्रकृति के नियंत्रण में हैं।


अव्यय के रोग आत्मा से- पुनर्जन्म से- जुड़े होते हैं। प्रारब्ध का अंग होते हैं। इनको काटना/भोगना ही पड़ता है। इनकी चिकित्सा में भक्तियोग/समर्पण भाव, मंत्र आदि सहायक हो सकते हैं। अक्षर के रोग प्रकाश-ध्वनि-रंग-गंध आदि की सहायता से, मणि-रत्नों के उपयोग से ठीक कराए जाते हैं। क्षर या स्थूल शरीर के रोग औषधियों, अन्न व्यवस्था, प्राकृतिक चिकित्सा से दूर किए जा सकते हैं।


चिकित्सा का मूल सिद्धान्त है—शरीर की ग्रहण-क्षमता। यह हर शरीर के गठन एवं प्रकृति के अनुरूप भिन्न-भिन्न होती है। रोग निरोधक क्षमता भी अलग-अलग होती है। एक रोग को पूर्ण रूप से विकसित होने में जितना समय किसी के शरीर को लगता है, उतना ही समय पूर्ण स्वस्थ होने में लगेगा। यही मुख्य भेद है आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में। आज शीघ्र चिकित्सा के लिए इस प्राकृतिक तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया है। जो दवा एक निश्चित क्रम में उस अवयव तक पहुंचती है, उसे तुरन्त वहां पहुंचाने का कार्य होता है। शरीर अब किसी तंत्र पर आश्रित नहीं रहता। उसकी निरोधक क्षमता टूट जाती है। तीनों शरीरों के तंत्र बिखर जाते हैं। भीतर प्राणों से, शब्द-ब्रह्म से जुड़े रोग मृत्युपर्यन्त बने रहते हैं।


शरीर जड़ है। आज इसी की चिकित्सा हो रही है। दवा का प्रभाव दर्पण पर कैसे हो सकता है? इसी कारण 'साइड इफेक्ट' होते हैं। आसपास के अन्य अंग प्रभावित हो जाते हैं। उनको काटना पड़ सकता है। दवा तो फिर भी रोग का निवारण नहीं कर पाएगी।

क्रमश: gulabkothari@epatrika.com

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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