Patrika Logo
Switch to English
होम

होम

वीडियो

वीडियो

प्लस

प्लस

ई-पेपर

ई-पेपर

प्रोफाइल

प्रोफाइल

आज का भारत तो पुराने भारत का अल्पांश मात्र

लंबे समय से यह चर्चा चलती रही है कि भारत के इतिहास को विदेशी इतिहासकारों ने विकृत कर परोसने का काम किया है।

🌟 AI से सारांश

AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

🌟 AI से सारांश

AI-generated Summary, Reviewed by Patrika

पूरी खबर सुनें
  • 170 से अधिक देशों पर नई टैरिफ दरें लागू
  • चीन पर सर्वाधिक 34% टैरिफ
  • भारत पर 27% पार्सलट्रिक टैरिफ
पूरी खबर सुनें

भारत के इतिहास के कतिपय महत्वपूर्ण पक्षों को विदेशियों ने विकृत करके प्रस्तुत किया है, यह तो समझ आता है। परन्तु देश के विद्वान भी वैसा ही व्यवहार करें तो यह दास्य वृत्ति का ही प्रमाण समझा जाएगा। भारत के इतिहास के साथ अन्याय करने वाले और जानबूझकर अन्याय करने वाले प्राय: ब्रिटिश इतिहासकार रहे हैं। आर्यों के भारत मेंं बाहर से आने की कल्पना के पीछे भी यही षड्यंत्र है कि इस देश को एक सराय का रूप दे दिया जाए। भारत में राष्ट्रीयता न होने का जो प्रचार किया जाता है उसके पीछे भी यही षड्यंत्र है क्योंकि यहां राष्ट्र राज्य की स्थापना कभी नहीं रही। भारत में राष्ट्र का स्वरूप सांस्कृतिक आधार पर या जीवन पद्धति के आधार पर चला आ रहा है। दुर्भाग्य से हमारी इतिहास की दृष्टि इतनी संकुचित हो गई है कि हम शब्द को प्रमाण भी मानते हैं तो सहायक प्रमाण या गौण प्रमाण मानते हैं। शतपथ ब्राह्मण में अग्नि को भारत कहा गया है और जहां तक भारताग्नि व्याप्त है वहां तक का प्रदेश भारतवर्ष माना गया है। यही वह प्रदेश है जिसे मनुस्मृति में आर्यावर्त कहा गया है। इसके आगे-पीछे का प्रदेश वरुण प्रदेश बताया गया है।

अनेक बातों को हम केवल इसलिए प्रमाण नहीं मानते कि उनके भौतिक प्रमाण नहीं है। कोई खण्डहर, कोई हड्डी का टुकड़ा, कोई धातु का सिक्का या इसी तरह के कोई प्रमाण मिल जाएं तो हम उसे ऐतिहासिक सामग्री मानने को तैयार हैं, परन्तु शब्द को प्रमाण मानने में संकोच करते हैं। चतुर्युगी की हमारी अपनी अवधारणाएं और गणनाएं अवश्य हैं। इस अवधारणा के आधार पर सृष्टि की आयु का निर्धारण भी हुआ है। लेकिन राजाओं के जीवन चरित की घटनाओं का संकलन कर देना ही अभी तक के इतिहास का रूप सामने आया है। राजा ही इतिहास का केन्द्र बिन्दु रहा है, काल नहीं और काल गणना की विधि भी नहीं रही। काल को हम इतिहास का विषय नहीं मानकर विज्ञान का विषय मानते हैं। इतिहासकार काल के स्वरूप को जानकर उसकी गणना विधि को जानने की बजाय अपने ढंग से काल का निर्णय करते हैं। जन श्रद्धा, जनविश्वास और जन-जन की आस्था को इतिहास का विषय ही नहीं मानते।

विविध भाषा, संस्कृति और रहन-सहन के ताने-बानों से एकता के सूत्र में बंधे भारत राष्ट्र का अपना इतिहास और अपनी पहचान रही है। लंबे समय से यह चर्चा चलती रही है कि भारत के इतिहास को विदेशी इतिहासकारों ने विकृत कर परोसने का काम किया है। पिछले दिनों ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा कि भारत की राष्ट्र की अवधारणा पश्चिमी देशों से अलग है, जिसे देश का समानार्थी माना जाता है। श्रद्धेय कुलिश जी के तीस बरस पहले ऐसे ही विचारों से जुड़े आलेख के प्रमुख अंश

पुराने भारत का अल्पांश मात्र

आर्यों के निवास के बारे में विचार करते समय हमें तनिक अपने विश्व मान्य शास्त्रों को देखना होगा। मनु स्मृति कहती है-
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात,
तयोरेवान्तरं गिम्र्योराय्र्यावत्र्त विदर्बुधा:।
अर्थात- पूर्व समुद्र (पीत समुद्र) से पश्चिम समुद्र (भूमध्यसागर जिसे पुराणों में महीसागर कहा जाता है) और दक्षिण में लंका द्वीप तक (लंका वह नहीं जिसे सिलोन या सिंघल दीप कहा जाता है। वह लंका समुद्र में डूब चुकी है।) आर्यावत्र्त की सीमा थी। लंका पृथ्वी का मध्य बिन्दु थी, जिससे ४५ देशांतर पूर्व से ४५ देशांतर पश्चिम तक आर्यावत्र्त की सीमा थी। यहीं तक भरत नामक अग्नि की व्याप्ति है। अत: प्रदेश को भारत वर्ष कहा गया है। आज जो भारत है वह तो पुराने भारत का अल्पांश है। इतिहासकारों की तो यही देन है आज बच्चे इतिहास पुरुषों का नाम तक भूल गए।

सांस्कृतिक महत्व की अनदेखी

इतिहासकार यह भी विचार नहीं करते कि भारत वर्ष के वर्चस्व के जो अवशेष भूमंडल पर यत्र-तत्र उपलब्ध हैं उनकी संगति हमारे इतिहास के साथ क्या है? भारतवर्ष की यह व्याप्ति यूरोप में किंचितमात्रा में अवशिष्ट है लेकिन एशिया में तो वह विपुल मात्रा में हैं। दक्षिण एशिया तो साक्षात प्राचीन भारत का प्रतिरूप है। हिन्देशिया, थाइलैंड आदि देशों में राम आज भी व्यवहार में हैं। हमारे इतिहासकार प्रत्येक अवशेष का मूल्यांकन भले ही करे परन्तु उसे देश के ऐतिहासिक घटनाक्रमों से जोड़कर उसका सांस्कृतिक महत्व प्रस्तुत नहीं करते।

सबको ज्ञान छै

बाकी सबको ग्यान छै,
काँई ठोर-ठिकाण।
आर्य कंडा सूं आइया,
कोई नहीं न जाण।।

राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

अभी चर्चा में
(35 कमेंट्स)

अभी चर्चा में (35 कमेंट्स)

User Avatar

आपकी राय

आपकी राय

क्या आपको लगता है कि यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा?


ट्रेंडिंग वीडियो

टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

User Avatar