AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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खेत ऊपर से भले हरे-भरे दिख रहे हों, लेकिन भीतर मिट्टी का शरीर बीमार पड़ चुका है। रासायनिक खाद की बढ़ती खुराक ने मिट्टी के प्राकृतिक तत्वों को कमजोर कर दिया है। जिले की लगभग 70 फीसदी जमीन का स्वभाव, रंग और बनावट बदल रही है।किसानों के सबसे बड़े साथी कहे जाने वाले कीड़े, केंचुए और माइक्रो-ऑर्गेनिज़्म तेजी से खत्म हो रहे हैं। शुक्रवार को मृदा संरक्षण दिवस है। मृदा संरक्षण दिवस पर कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी अगर मिट्टी को आराम और संतुलन नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में जिले की बड़ी जमीनें खेती लायक नहीं बचेंगी।
जिले की लगभग 5.25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में फसल और सब्जियों की खेती होती है। 2024-25 की मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 4 लाख हेक्टेयर जमीन में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी पाई गई है।
इनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व (माइक्रो न्यूट्रिएंट) हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह स्थिति रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग का सीधा नतीजा है।
छिंदवाड़ा-पांढुर्ना में 21 हजार नमूनों की जांच: जिला मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला ने वर्ष 2025-26 के लिए 49,500 नमूनों के विश्लेषण का लक्ष्य तय किया है।दिसंबर तक 21,349 नमूने लिए जा चुके हैं, जिनकी जांच जारी है। पिछले वर्ष 2024-25 में 14,284 नमूनों में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की स्पष्ट कमी सामने आई थी।
जागरूक किया जा रहा- जिला मृदा परीक्षण केंद्र के सहायक अनुसंधान अधिकारी एस.के. दास के अनुसार छिंदवाड़ा और पांढुर्ना क्षेत्र के 11 विकासखंडों में अलग-अलग लैब काम कर रही हैं। वर्तमान रिपोर्ट मिट्टी की स्थिति को चिंताजनक बताती है। किसानों को उनकी जमीन की कमी के हिसाब से सलाह दी जा रही है।
जिले में उम्मीद की राह प्राकृतिक खेती नजर आ रही है। प्राकृतिक खेती वाला 40 हजार हेक्टेयर इलाका अभी सुरक्षित है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जिले में सबसे सुरक्षित क्षेत्र आदिवासी अंचल है। तामियां, पातालकोट, जुन्नारदेव, हर्रई और अमरवाड़ा के लगभग 40 हजार हेक्टेयर इलाके में किसान आज भी रासायनिक खाद से दूर हैं। यहाँ कोदो-कुटकी और पारंपरिक फसलों की खेती प्राकृतिक तरीके से की जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यही क्षेत्र भविष्य में अच्छी मिट्टी संरचना का मॉडल बन सकता है।
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अधिक रासायनिक खाद से मिट्टी की प्राकृतिक संरचना टूट रही है। मिट्टी का वजन बढ़ रहा है खेत में पानी रोकने और हवा गुजरने की क्षमता घट जाती है।मिट्टी का रंग उजला पड़ रहा है जैविक पदार्थ खत्म हो रहे हैं।कीटनाशक व फफूंदनाशक बहकर तालाबों में पहुंच रहे। नाइट्रोजन की अधिकता जलीय जीवों को नुकसान पहुंचा रही है।वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति आने वाले वर्षों में उपज में गिरावट, फसल की गुणवत्ता खराब होने और जमीन के बंजर होने की दिशा में पहला संकेत है।
‘मृदा परीक्षण रिकॉर्ड के बिना अधिक खाद डालना खतरनाक है। इससे मिट्टी की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। किसानों को वैज्ञानिक अनुशंसाओं के अनुसार ही खाद डालनी चाहिए। विभाग प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास में है।
जितेन्द्र सिंह, उपसंचालक कृषि
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Published on:
05 Dec 2025 12:06 pm


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