AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Demonetization: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर 2016 को हुई नोटबंदी सभी को याद है। इस नोटबंदी से देश में 500 और 1000 हजार रुपए के नोटों को पूरी तरह बंद करने के बाद पूरे देश में बड़े नोटों की भारी किल्लत हो गई थी। बैंक हो या एटीएम, हर जगह लोगों की भीड़ बस पैसे तलाश रही थी। लेकिन क्या आपको पता है 2016 से पहले आज ही के दिन 2008 में भी नोटबंदी हो चुकी है। जिसे बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज ही के दिन 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पुरानी डिजाइन के 500 और एक हजार के नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ऐलान किया था। उस समय आरबीआई की तत्कालीन प्रवक्ता किलावाला ने एक बयान में कहा था कि 1996 से वर्ष 2000 तक के श्रृंखला वाले नोटों को बंद कर नए नोट जारी किए जाएंगे।
किलावाला ने इस प्रक्रिया को सामान्य बताते हुए कहा था, "इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यह नियमित प्रक्रिया है। पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक उच्च सुरक्षा उपाय वाले नोट जारी करते रहते हैं।" हालांकि इस नोटबंदी के बाद एकदम कोई भी नोट चलन से बाहर नहीं किया गया था, जिसकी वजह से आम लोगों को 2016 की तरह किसी भी प्रकार की किल्लत का सामना नहीं उठाना पड़ा था। ये पुराने 500 रुपये के नोट वर्ष 1996 में जारी किए गए थे। इसके अलावा 1000 रुपयों के नोटों को इसके दो वर्ष बाद 1998 में जारी किया गया था।
2008 में भी कुछ नोटों को प्रचलन से बाहर किया गया था। हालांकि इसको नोटबंदी से जोड़कर तो नहीं देख सकते हैं लेकिन पुराने छपे नोटों को प्रचलन से बाहर होने की कई लोगों को तब भनक लगी जब वह पुराने नोट के साथ कभी खरीददारी के लिए पहुंचे। उस समय इन नोटों को प्रचलन से बाहर करने की सूचना तो जारी की गई लेकिन, यह सूचना आम जन तक सुलभ तरीके से नहीं पहुंच पाई।
बता दें कि देश में पहली नोटबंदी साल 1946 हुई थी। उस समय देश के अति उच्च मूल्य (पांच हजार रुपए और दस हजार रुपए) के नोट भी चलन में हुआ करते थे। तब भारत के तत्कालीन वायसराय ‘आर्चीबाल्ड वेवेल’ ने 12 जनवरी 1946 में उच्च मूल्य वाले नोटों को बंद करने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसके बाद 26 जनवरी 1946 को देश में चल रहे 10000 रुपये के हाई करेंसी के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया। साथ ही इसी अध्यादेश के माध्यम से आजादी के पहले 100 रुपये से ज्यादा मूल्य के सभी नोटों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस वक्त भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने काले धन को खत्म करने के लिए इसे अपना कदम बताया था।
हालांकि आजादी के बाद भारत सरकार अधिक मूल्य वाले नोटों को फिर से चलन में ले आई थी। इसके बाद 1978 में आजाद भारत की पहली नोटबंदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा की गई। इस नोटबंदी का मकसद देश में काले धन को समाप्त करना और भ्रष्टाचार को रोकना था। तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 16 जनवरी 1978 को देश में चल रहे 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था।
राजद के कई बड़े नेता और तेजश्री यादव की पत्नी ने कहा था कि बिहार में खेल होना अभी बाकि है। ऐसा होने के डर से ही नीतीश कुमार ने अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा के नजदीक चाणक्य होटल में रात को रुकवाया।

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Published on:
28 Aug 2024 04:35 pm


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