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सम्पादकीय : ट्रैफिक सुधार के समग्र प्रयासों को देनी होगी गति

संतोष इस बात पर भी जरूर किया जा सकता है कि तकनीक के इस्तेमाल से अब ‘बड़े लोगों’ का भी चालान होने लगा है।

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बढ़ते सडक़ हादसों के बड़े कारणों में यातायात नियमों की अवहेलना करते हुए वाहन चलाना सबसे ऊपर है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों में यातायात नियमों के उल्लंघन के बढ़ते मामलों के साथ-साथ दंडात्मक कार्रवाई भी बढ़ी है। संतोष इस बात पर भी जरूर किया जा सकता है कि तकनीक के इस्तेमाल से अब ‘बड़े लोगों’ का भी चालान होने लगा है। इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आइटीएमएस) के कैमरों के इस्तेमाल से यह संभव होने लगा है क्योंकि मशीन आम और खास में भेद नहीं करती। पिछले दिनों कर्नाटक के सीएम से सात बार यातायात नियमों की अनदेखी के कारण वसूला गया जुर्माना इसका उदाहरण है।
यातायात नियमों की अवहेलना के लिए जब रसूखदारों पर कार्रवाई होती है तो आम आदमी के मन में संतोष का भाव जरूर आता है। लेकिन चिंता की बात यह भी है कि बेतरतीब यातायात के कारणों की तरफ जिम्मेदारों का कभी ध्यान जाता ही नहीं। ध्यान जाता भी है तो कोई बड़ा हादसा होने पर जांच अभियान के नाम पर खानापूर्ति बनकर रह जाता है। बेतरतीब यातायात देश की प्रमुख समस्याओं में शामिल है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूरु और जयपुर ही नहीं, कोई छोटा-बड़ा शहर-कस्बा इससे अछूता नहीं है। वाहन सवारों का बहुत अधिक समय आए दिन यातायात अवरोध में बीत जाता है। दुर्घटना का खतरा और प्रदूषण की मार है सो अलग। सडक़ों पर वाहनों की भरमार की बड़ी वजह यह भी है कि महानगरों व शहरों में सार्वजनिक परिवहन के साधन नाकाफी हैंं। इसलिए सडक़ों पर निजी वाहनों की भरमार हो गई है। वाहनों की संख्या के मुकाबले बेहतर सडक़ों की पहले से ही कमी है। यही कारण है कि जाम लगने पर आम आदमी रेंगते वाहनों में ही सफर करने को विवश है। दूसरा पहलू यह भी है कि यातायात के नियमों का पालना कठोरता से हो, इस दिशा में भी काम नहीं हो रहा। अकेले बेंगलूरु में पिछले एक साल में यातायात नियमों के उल्लंघन के 52 लाख मामले बने जबकि दिल्ली में यह संख्या 30 लाख रही। बड़ी चिंता यह भी है कि कोई राज्य या शहर इस दृष्टि से आदर्श नहीं है कि कहा जा सके कि अमुक स्थान के बाशिंदे यातायात नियमों की पालना के प्रति सजग हैं। जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली भी जब सिर्फ जुर्माना वसूलने पर केंद्रित होती दिखे तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यातायात संकेतकों, बत्तियां आदि की पुख्ता व्यवस्था क्यों नहीं होती?
अधिकांश शहरों में बहुत से स्थानों पर जरूरत के बावजूद सिग्नल पॉइंट ही नहीं हैं। जहां हैं वे भी एक-दूसरे से तकनीकी तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं। वाहन चालक हर सिग्नल पॉइंट पर रुकने के लिए बाध्य होते हैं। ट्रैफिक सुधार के समग्र प्रयासों को गति देनी होगी। साथ ही यातायात नियमों के उल्लंंघन करने वालों से बिना किसी भेदभाव के सख्ती से पेश आना होगा।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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